मेरी बहुत प्रिय, बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न सखी Sheetal Maheshwari की पेन्टिंग ने मुझे आज इस कदर आन्दोलित कर दिया कि आज के चित्र पर कविता बह निकली ।लगता है शीतल ने आजकल कायनात को ही ओढ़- बिछा रखा है…वो ही हमजोली है , और वही गुरु। ध्यान से देखिए इन चित्रों में शीतल की रूह साँस लेती सुनाई पड़ेगी…एक रूहानी अहसास गुनगुनाता है इनमें। काली-सफेद इन डिजिटल पेंटिंग्स में आपको रात की कालिमा पर चाँदनी की ,निराशा पर आशा की , मौन पर संगीत की विजय दिखाई देगी।
साहित्य, संगीत, कला की भागीरथी में वे सतत डुबकी मार कुछ नायाब रचती हैं ।मात्र कुछ ही वर्षों पूर्व शुरु हुई कला यात्रा में शीतल ने जाने कितनी डिजिटल पेंटिंग्स में अपना विस्तार किया…कुछ पुस्तकों के आवरण पृष्ठ बनाए तो एकाध में कथा- चित्रण (स्टोरी इलस्ट्रेशन ) भी रचे।यहाँ ये बता दूँ कि शीतल ने कहीं भी विधिवत कला-प्रशिक्षण नहीं लिया है।
वेबसाइट रेडियोप्लेबैकइंडिया पर भी इन्होंने कुछ कहानियों को अपनी आवाज दी है।
वे खुद भी गाती हैं और कविताएं भी लिखती हैं लेकिन कई साथी कलाकारों के गानों को चित्रों से सजाकर बेहद सुन्दर वीडियो यूट्यूब पर डालती रहती हैं। Rashmi Prabha जी ने मेरी पुस्तक ' ताना- बाना’ पर कई दिनों तक बेहद शानदार तरीके से अपने भाव व्यक्त किए तो शीतल ने उनको भी सुन्दर चित्रों से सजा कर कई सुन्दर वीडियो में ढालकर यूट्यूब पर जड़ कर प्यार बरसाया…अभीभूत हो गई दोनों सखियों के इस प्यार पर…नशा सा तारी है आजतक…और इससे ज्यादा क्या चाहे कोई अपनी किसी किताब का मूल्य या कोई अवार्ड ?
जहाँ सबको अपनी पड़ी रहती है वहीं दूसरों की प्रतिभा पर टॉर्च मारना कोई शीतल से सीखे।
वो शान्त नहीं बैठ सकती …उसके बेचैन क्रिएटिव माइन्ड में कुछ न कुछ तो कुलबुलाता ही रहता है। उनका चमत्कारिक उत्साह हैरान करता है। प्यार से कहती हूँ - `यार कितनी उपजाऊ है तोहार खोपड़िया 😂’
तो आप भी सुनिए इनके चित्रों में चाँदनी और भावों की जुगलबन्दी…!!
शीतल के आज के चित्र पर मेरी कविता-
रोज रात को-
कभी चाँद मुझे ओढ़ता है
और कभी मैं उसे pop
कभी चाँदनी बरसती है मुझ पर
और कभी मैं उस पर
तारों की जगमग पायल पहनती हूँ कभी
तो कभी वे शामिल कर लेते हैं हाथ पकड़कर
मुझे छुप्पमछुपाई में
और तमाम रोज इस तरह हो जाती है
रात करिश्माई हम दोनों के खेल में
सुबह आते है फिर कड़क सूरज हैड मास्टर
डंडा दिखा हड़काते है , चश्मे के ऊपर से झाँकते हैं -
`एई ऊधम नहीं
घालमेल कतई मंज़ूर नहीं ‘
और हमें अपनी अलग- अलग कक्षा में मुँह पर उंगली रख बैठा जाते हैं…!!
— उषा किरण
🍃☘️🌱🍁🌿🌱🍀
असमंजस ..
में है देहरी..
कदमों की आहट पर
उस पार
सपनों की लौ दिखाऊं
या नीले अंधकार की राह बतलाऊं
— शीतल माहेश्वरी
फिर एक गीत याद आया " मिलो न तुम तो हम घबराए,मिलो तो आंख चुराए"