कैसे थक कर हार जाऊँ
उम्मीदों से बँधा
मन्नतों के धागों से लिपटा
वटवृक्ष हूँ मैं…!!
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-उषा किरण
जब मैं बी ए में पढ़ रही थी तब मेरी फ्रैंड की एक रिश्तेदार जिनसे मेरी प्राय: मुलाक़ात होती रहती थी। जो पढ़ाई में बहुत होशियार थीं और गाना बहुत अच्छा गाती थीं। उनकीशादी और दो बेटियों के होने के बाद खबर सुनी कि उन पर कोई ऊपरी साया है अत: उनको मायके भेज दिया गया। ससुराल में भी झाड़- फूँक करवाई गई, मायके में भी।लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। एक दिन वो मेरे घर आईं दोनों बच्चों व मेरी फ्रैंड केसाथ तो हाल-बेहाल थीं । न तो वो खुद को संभाल पा रही थीं और न ही दोनों छोटी बच्चियों को। बहुत बेचैन देख कर जब मैंने उनसे बात की तो बोलीं कोई गन्दी- गन्दी गालियाँ मेरे बदन पर लिख देता है और दीवार को घूर कर देख कर बोलीं कि देखो वहाँ लिखी है अभी। उनके पति डॉक्टर थे तो फिर बोलीं मेरे पति का नर्स के साथ अफेयर चल रहा है। मैं बी ए में थी और मनोविज्ञान विषय भी लिया था तो मुझे समझ में आ रहा था कि वो मानसिक रोग से ग्रस्त हैं ।मैंने जितनी उम्र व समझदारी थी उनके पेरेन्ट्स से बात की कि उनका इलाज करवाएं। खैर कुछ सालों बाद पता चला कि उनकी डैथ हो गई।एक और किन्ही परिचित का भी सुना था कि अचानक काफी उम्र में उनको कुछ-कुछ दिखाई व सुनाई देता था …अन्त उनका भी सुखद नहीं था।
एक परिचित का बेटा यू एस में अच्छा- भला जॉब करता है लेकिन इंडिया आकर माता- पिता के पास आते ही उसका व्यवहार एब्नार्मल हो जाता है, मारपीट तक करने लगताहै।यहाँ तक कि एडमिट तक करवाना पड़ता है और वही एक बात कि कुछ दिखाई-सुनाई पड़ता है। इलाज के बाद कुछ संभल कर यू एस जाते ही फिर नॉर्मल हो जाता है।
ऐसी और भी बहुत सी कहानियाँ अपने इर्द-गिर्द प्राय: देखी हैं, जहाँ बेवक़ूफ़ी में झाड़-फूँक का सहारा लेकर दिनों-दिन हालत बिगड़ती गई और एक दिन….! हमारे यहाँ वैसेभी अनपढ़ और प्राय: पढ़े-लिखे लोग भी ऐसे केस में प्राय: भूत- प्रेत की व्याधा मान कर झाड़-फूँक तो करवाते हैं पर मनोचिकित्सक को पागल का डॉक्टर मान कर उसके पासनहीं जाते, इलाज नहीं करवाते हैं। कई लोगों को मैं जानती हूँ जिन्होंने समय रहते इलाज करवाया और स्थिति को कन्ट्रोल में कर लिया।
आज फिर किसी अपने के बच्चे में धीरे-धीरे सीजोफ्रेनिया के लक्षण पनपते जान कर गूगल पर अध्ययन किया तो बहुत सारी जानकारी मिलीं जिसमें से कुछ शेयर कर रहीहूँ-
सीजोफ्रेनिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें ये सारे लक्षण पेशेन्ट में मिलते हैं और जो मेरा अनुभव है ये किसी भी उम्र में हो सकती है परन्तु प्राय: ये बीमारी 16 से 30 साल की उम्र में होती है। पुरुषों को ये बीमारी महिलाओं से कम उम्र में हो सकती है। ज्यादातर मामलों में मरीज को इस बीमारी की चपेट में आने के बारे में पता ही नहीं चल पाता है।हालांकि कुछ मामलों में मरीज सिजोफ्रेनिया का शिकार होने के तुरंत बाद ही इसके दलदल में और गहरे धंसता चला जाता है। सिजोफ्रेनिया के मरीज को साए दिखने या फिर किसी के होने का आभास होने की समस्या प्राय: हो सकती है।दोस्तों और परिवारसे खुद को अलग कर लेना, दोस्त या सोशल ग्रुप बदलते रहना, किसी चीज पर फोकस ना कर पाना, नींद की समस्या, चिड़चिड़ापन, पढ़ाई-लिखाई में समस्या होना इसके प्रमुख लक्षण हैं।
सिजोफ्रेनिया के मरीजों को कई बार ऐसी चीजें दिखाई देतीं और महसूस होती हैं जो असल में होती ही नहीं हैं लेकिन उन्हें ये एकदम सच लगता है। कई मामलों में उन्हें चीजों का स्वाद और खुशबू महसूस होने की शिकायत होती है जो वहां होती ही नहीं हैं. सिजोफ्रेनिया के मरीज को कई तरह के गलत यकीन भी होने लगते हैं. जैसे खुद को सताए जाने का भ्रम या फिर अमीर या ताकतवर होने का भ्रम। मरीज को ये भी महसूसहो सकता है कि उनमें दैवीय शक्तियां हैं। हालांकि, मनोचिकित्सकों के पास सिजोफ्रेनिया के मरीजों को होने वाले विचित्र अनुभवों की लंबी लिस्ट होती है। सिजोफ्रेनिया के मरीजों को लगता है कि लोग उसे जबरदस्ती गलत ठहराने की कोशिश कर रहे हैं।
सिजोफ्रेनिया के लक्षणों की पहचान करना आमतौर पर मुश्किल हो जाता है. डॉक्टरों का कहना है कि सिजोफ्रेनिया कई वजहों से हो सकता है जैसे कि बायोलॉजिकल, जेनेटिक या फिर सामाजिक स्थिति. कुछ स्टडीज में सिजोफ्रेनिया के मरीजों के मस्तिष्क संरचनाओं में कई तरह की असामान्यताएं दिखने को मिली हैं।
सिजोफ्रेनिया के कुछ मरीज एक काल्पनिक दुनिया में रहते हैं।वास्तविक दुनिया से दूर इनके अलग विचार होते हैं. इसकी वजह से इनकी भावना, व्यवहार और क्षमता में बदलाव आ जाते हैं. ये लोग अपने भावनाओं को सही तरीके से व्यक्त नहीं कर पाते हैं.जिंदगी से इनकी दिलचस्पी खत्म हो जाती है। किसी भी बात को लेकर ये बहुत ज्यादा भावुक हो जाते हैं।
सिजोफ्रेनिया के मरीजों को आमतौर पर एंटीसाइकोटिक दवाएं दी जाती हैं।कुछ मरीजों को खास थेरेपी की जाती है ताकि मरीज अपने तनाव से बाहर आ सके। कुछलोगों को इससे बाहर लाने के लिए सोशल ट्रेनिंग दी जाती है।वहीं कुछ गंभीर मामलों में मरीज को अस्पताल में भर्ती करके इलाज करना पड़ता है. कुछ ख़ास लक्षण हैं-
यह आवश्यक नहीं कि हर रोगी में यह सभी लक्षण दिखाई पड़ें, इसलिए यदि किसी भी व्यक्ति में इनमे से कोई भी लक्षण नज़र आए तो उसे तुरंत मनोचिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए।अन्य बीमारियो की तरह ही यह बीमारी भी परिवार के करीबी सदस्यों में अनुवांशिक रूप से जा सकती है ।मस्तिष्क में रासायनिक बदलाव या कभी-कभी मस्तिष्क की कोई चोट भी इस बीमारी की वजह बन सकती है।
इस बीमारी से पीड़ित इंसान वास्तविक और काल्पनिक वस्तुओं को समझने की शक्ति खो बैठता है और उसकी प्रतिक्रिया परिस्थितियों के अनुसार नहीं होती है। दुनिया में सिजोफ्रेनिया के रोगी लगभग एक फीसदी हैं। वहीं भारत में सिजोफ्रेनिया से जूझ रहे मरीज़ों की संख्या लगभग 40 लाख है। इस बीमारी का इलाज नहीं करवाने वाले 90 फीसदी लोग भारत जैसे विकासशील देशों में देखे जा सकते हैं जिनमें गरीबी और जानकारी के अभाव में अस्पताल जाने से बचने की आदत रहती है।
सिजोफ्रेनिया का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि आपकी स्प्लिट पर्सनैलिटी है या फिरआपको मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर है। हालांकि कई बार ऐसे लोग सामाजिक मनोवृत्ति का शिकार हो जाते हैं। सही उपचार या रोगी की देखभाल में कमी रोग कोबढ़ाने का काम करती है। सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है, जिसमें व्यक्ति को निरंतर अंतराल पर दौरे पड़ते हैं। अच्छा समर्थन, थेरेपी और उपचार से ऐसे लोगों के व्यवहार में बहुत सुधार दिखाई दे सकता है और वे हेल्दी जीवन जी सकते हैं।कुछ मानसिक बीमारियों के लक्षण मिलते-जुलते होते हैं तो कृपया एक के लक्षण के आधार पर स्वयम् बीमारी तय न करें किसी योग्य मनोचिकित्सक की परामर्श शीघ्र लें और उपचार करवाएं।इस बीमारी के बारे में जागरूक रहने तथा दूसरों को जागरूक करना बहुत आवश्यक है।
यदि आपके आस-पास भी कोई ऐसा व्यक्ति हो तो कृपया उसके घर वालों को बताइए इस बीमारी के बारे में ताकि वे झाड़-फूँक न करवा कर सही इलाज जल्दी शुरू कर सकें।पेशेन्ट यदि मैच्योर है तो उसे डॉक्टर के पास ले जाना बहुत मुश्किल होता है तो ऐसे में कोई और पारिवारिक व्यक्ति हाल बता कर दवाइयाँ लाकर इलाज चालू कर सकता है,क्योंकि मेरी जानकारी जहाँ तक है कि कुछ लिक्विड दवाइयाँ होती हैं जो खाने -पीने में मिला कर दी जा सकती हैं लेकिन किसी योग्य मनोचिकित्सक की राय से ही दें।
यदि आप मनोचिकित्सक हैं या और कुछ महत्वपूर्ण जानकारी रखते हैं इस बीमारी से संबंधित, तो कृपया जनहित में शेयर ज़रूर करें…धन्यवाद !!
(फोटो व जानकारी गूगल से साभार!)