कुछ छूट गए
कुछ रूठ गए
संग चलते-चलते बिछड़ गए
छूटे हाथ भले ही हों
दूरी से मन कब छूटा है
कुछ तो है जो भीतर-भीतर
चुपके से, छन्न से टूटा है
साजिश ये रची तुम्हारी है
सब जानती हूँ मनमानी है
सबसे साथ छुड़ा साँवरे
संग रखने की तैयारी है
हो तेरी ही अभिलाषा पूरी
रूठे मनाने की कहाँ अब
जरा भी हिम्मत है बाकी
सच कहूँ तो अब बस
गठरी बाँधने की तैयारी है
अब सफर ही कितना बाकी है
वे हों न हों अब साथ मेरे
न ही सही वे पास मेरे
हर दुआ में हृदय बसे
वे मेरे दुलारे प्यारे सभी
वे न सुनें, वे ना दीखें
पर उन पर मेरी ममता के
सब्ज़ साए तो तारी हैं…
थका ये तन औ मन भी है
तपती धरती औ अम्बर है
टूटे धागों को जोड़ने की
हिम्मत न हौसला बाकी है
न मेरे किए कुछ होता है
न मेरे चाहे से होना है
न कुछ औक़ात हमारी है
ना कुछ सामर्थ्य ही बाकी है
जो हुआ सब उसकी मर्ज़ी
जो होगा सब उसकी मर्ज़ी
रे मन फिर क्यूँ तड़पता है
मन ही मन में क्यूँ रोता है
संभालो अपनी माया तुम
ले लो वापिस सब छद्म-बन्ध
अब मुक्त करो है यही अरज
ना बाँधना फिर फेरों का बन्ध
हो तेरी इच्छा पूर्ण प्रभु
तेरी ही रज़ा अब मेरी रज़ा
जो रूठ गए या बिछड़ गए
खुद से न करना दूर कभी
बस पकड़े रहना हाथ सदा
संग-साथ ही रहना उनके प्रभु…!!!
— उषा किरण 🍁
फोटो; गूगल से साभार