रविवार, 8 जून 2025

मन के अंधेरे


पिछले दिनों जापान जाना हुआ तो पता चला कि सबसे ज्यादा सुसाइड करने वाले देशों में जापान भी है।डिप्रेशन एक बेहद खतरनाक बीमारी है।

पिछले दिनों इससे हमारा भी सामना हुआ ।हमारे साथ एक फ़ैमिली रहती है, जिन्होंने मेरा उपन्यास 'दर्द का चंदन’ पढ़ा है वो समझ जाएंगे। उनके छोटे बेटे को एक्यूट डिप्रेशन हो गया। सुन्दर, स्मार्ट और ब्रिलियंट बच्चे की हालत देखकर हम शॉक्ड रह गए। 

कई डॉक्टर्स का ट्रीटमेंट करवाया। काउन्सलिंग अलग से करवाई। हजारों रुपये खर्च करके भी ज्यादा फायदा नहीं हो रहा था। बार-बार सुसाइड करने की कोशिश करता, उसे बचाना मुश्किल हो रहा था। मुझे खुद डिप्रेशन होने लगा। हम लोगों ने हिम्मत नहीं हारी। उसकी टीचर से मिलकर डिस्कस किया। और सबने मिलकर उसको चारों तरफ से अपने दुलार के घेरे में ले लिया।

पहले तो वो हमसे कारण छुपाता रहा। मैं उसको लेकर एक- एक घंटे बैठी रहती। उसे मुझे सुनना अच्छा लगता था। धीरे-धीरे वह खुलकर अपनी सारी बातें बताने लगा। मेरी बेटी और बेटा भी समझाते थे। लेकिन बेटा थोड़ी सख्ती से समझाता था , ताज्जुब ये कि उसे उसी की  डाँट से बहुत अच्छा फील होता था, कहता सबसे अच्छा तो भैया और बुआ ही समझाते हैं । 

-मैंने सबसे पहले उसको खूब लाड़ किया और समझाया कि तुम जैसे भी हो हमारे लिए बहुत कीमती हो।दुनिया में कोई भी तुमको तुम्हारे मम्मी पापा भैया और हम लोगों से ज्यादा प्यार नहीं कर सकता।और ये एक बीमारी है इलाज से ठीक हो जाएगी , इसमें तुम्हारा कोई भी दोष नहीं है। उसको खुलकर सब बताया। 

-मैंने उसको धर्म व आध्यात्म के सहारे थामने की कोशिश की जिसमें भगवद्गीता और पौराणिक कहानियों का सहारा लिया। रेकी दी।उसके मम्मी पापा को भी समझाया कि झाड़-फूंक के चक्कर में मत पड़ना । वो हनुमान जी का भक्त है तो कहा उनका ध्यान करो, मन करे तो हनुमान चालीसा पढ़ लिया करो। 

-जिंदगी कितनी कीमती है , बताया।और कहा वक्त तो तेजी से भाग रहा है , ये वक्त भी निकल जाएगा। कुछ समय बाद तुमको खुद लगेगा कि तुम कितने बुद्धू थे। बस तुम हौसला रखो।कई बार मजाक करती, गुदगुदी करके हँसाती। 

-मैंने उसे कहा चाहें मैं कितनी भी बिजी हूँ, चाहें कहीं भी रहूँ बस एक कॉल पर हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगी, मुझे बुला लेना, जब भी मन परेशान हो। चाहें आधी रात ही क्यों न हो। और वह मुझे बेझिझक कह देता अम्मा बात करनी है आपसे। मैं अपने सब काम छोड़कर उसे सुनने बैठ जाती। कभी मन परेशान होता तो कहता अम्मा घूमने चलें ? मैं गाड़ी निकलवा कर घुमा लाती, कुछ शॉपिंग करवा देती, खिला- पिला लाती तो उसका मूड चेंज हो जाता। कई बार आधी रात को नींद में उसकी मिस्ड कॉल सुनकर  तीसरी मंजिल तक भाग कर गई और संभाला। मैं जितना वक़्त बात करती सामने बैठाकर उसकी दोनों हथेलियों को थामे रहती। मैं साइकियोलॉजिस्ट तो हूँ नहीं पर अपनी सम्वेदना और समझ से जितना सँभाल सकती थी संभालने की कोशिश करती थी।

-अक्सर स्टारमेकर्स पर उसके साथ गाने गाती, साथ वॉक करती। स्कैच बनाने को प्रेरित करती। लूडो, ताश, बैडमिंटन खेलती। जब वो पढ़ता था तो मैं भी साथ में ही चुपचाप अपनी कोई किताब लेकर बैठ जाती। कभी-कभी उसे कुछ सब्जेक्ट पढ़ा भी देती।

-उसकी क्लास टीचर ने भी उसका बहुत साथ दिया। जब भी वो स्कूल में डिप्रेशन में जाता तो उसको लेकर एकांत में जाकर बात करतीं। क्योंकि जब भी उसको स्कूल में पैनिक अटैक आता तो वो टॉयलेट में जाकर हिचकियों से रोता , काँपता और पसीने से भीग जाता था। बल्कि सबसे पहले उन्होंने ही मुझे इसके बारे में बताया था।

-इस सबको अब ढाई साल बीत गए हैं । दवाइयों की डोज कम हो गई है। आजकल उसे गिटार सिखवा रहे हैं । दवाओं से ओवरवेट हो गया है तो जिम भी भेजते है। और अब लगभग ठीक है। टैन्थ में 80% मार्क्स लाया है । हम सबने बहुत शाबाशी दी तो अब खोया आत्मविश्वास लौट आया है। करियर को लेकर बड़े- बड़े सपने देखने लगा है।

-उसका ट्रीटमेंट दिल्ली के मशहूर , काबिल साइकियाट्रिस्ट से चल रहा है । वे प्राय: उससे फोन पर ही बात करते हैं । वे उससे बात करने के बाद हमसे बात करते थे। और कई बार बहुत खुश होकर थैंक्यू बोलते थे कि आप उसको बहुत अच्छी तरह संभाल रही हैं।

-टीन एज बहुत ही नाजुक उम्र होती है। इस उम्र में हार्मोन्स ऊधम मचाते हैं । जिंदगी यथार्थ, कल्पना व भावनाओं के झंझावात में घिरी महसूस होती है। जरा सी भी दिल पर लगी चोट से मानसिक सन्तुलन बिगड़ सकता है। इस समय एक्स्ट्रा अटेंशन, केयर व साथ की जरूरत होती है बच्चों को।

तो यह कहानी शेयर करने के पीछे यही मकसद था कि आजकल के बच्चों के हाथों में मोबाइल है और सब कुछ एवेलेबिल है आज उनको। आप कितने फिल्टर लगाएंगे ? बच्चों को अब डाँटना फटकारना छोड़कर दोस्त बनने का वक्त है। आपसे बेहतर आपके बच्चे को कोई नहीं समझ सकता तो जो काउन्सलिंग आप कर सकते हैं कोई थेरेपिस्ट, काउन्सलर नहीं कर सकता। उसको ज्यादा प्यार और अटेंशन दीजिए। अपने आस-पड़ोस में, क्लास में, रिश्तेदारों में यदि कोई बच्चा दिखे ऐसा तो उसकी मदद करिए, सुनिए उसको। सबसे ज़रूरी है सुनना।इस तरह आप किसी की ज़िंदगी बचा सकते हैं , क्योंकि डिप्रेशन बहुत जानलेवा बीमारी है।इंसान को लगता है जैसे उसे एक अंधेरी गुफा में बन्द कर दिया है और निकलने का कोई रास्ता सूझता नहीं। तो जागरूक रहिए, सतर्क रहिए बच्चों के लिए और खुद के लिए भी। ऐसा हो तो कोई दोस्त, कोई हमदर्द जरूर होता है हमारे पास जिसके कन्धों पर हम अपना सिर टिका सकें…!!

अपनी एक कविता पहले भी शेयर कर चुकी हूँ आज फिर शेयर कर रही हूँ-

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-इससे पहले-


इससे पहले कि फिर से

तुम्हारा कोई अज़ीज़

तरसता हुआ दो बूँद नमी को

प्यासा दम तोड़ दे

संवेदनाओं की गर्मी को

काँपते हाथों से टटोलता

ठिठुर जाए और

हार जाए  जिंदगी की लड़ाई

कि हौसलों की तलवार

खा चुकी थी जंग...


इससे पहले कि कोई

अपने हाथों चुन ले

फिर से विराम

रोक दे अपनी अधूरी यात्रा

तेज आँधियों में

पता खो गया जिनका

कि काँपते थके कदमों को रोक

हार कर ...कूच कर जाएँ

तुम्हारी महफिलों से

समेट कर

अपने हिस्सों की रौनक़ें...


बढ़ कर थाम लो उनसे वे गठरियाँ

बोझ बन गईं जो

कान दो थके कदमों की

उन ख़ामोश आहटों  पर

तुम्हारी चौखट तक आकर ठिठकीं

और लौट गईं चुपचाप

सुन लो वे सिसकियाँ

जो घुट कर रह गईं गले में ही

सहला दो वे धड़कनें

जो सहम कर लय खो चुकीं सीने में

काँपते होठों पर ही बर्फ़ से जम गए जो

सुन लो वे अस्फुट से शब्द ...


मत रखो समेट कर बाँट लो

अपने बाहों की नर्मी

और आँचल की हमदर्द हवाओं को

रुई निकालो कानों से

सुन लो वे पुकारें

जो अनसुनी रह गईं

कॉल बैक कर लो

जो मिस हो गईं तुमसे...


वो जो चुप हैं

वो जो गुम हैं

पहचानों उनको

इससे पहले कि फिर कोई अज़ीज़

एक दर्दनाक खबर बन जाए

इससे पहले कि फिर कोई

सुशान्त अशान्त हो शान्त हो जाए

इससे पहले कि तुम रोकर कहो -

"मैं था न...”

दौड़ कर पूरी गर्मी और नर्मी से

गले लगा कर कह दो-

" मैं हूँ न दोस्त….मैं हूँ !!”

                          — डॉ० उषा किरण

( संकोच के साथ लिखी ये पोस्ट। अम्मा कहती थीं कि कुछ अच्छा काम करो तो बताना चाहिए जिससे औरों को भी प्रेरणा मिलती है🙏)

चित्र; गूगल से साभार

सोमवार, 2 जून 2025

जापान मेरे चश्मे से

  



एकदम साफ- सुथरा अनुशासित शहर। न सड़कों पर कूड़ा न सड़कों पर चीख- पुकार मचाते लोग।कई अन्य देशों की यात्राओं में देखा लोग यहाँ तक कि बच्चे भी फल के छिलके या ख़ाली रैपर हाथ में पकड़कर रखते हैं और हर दो कदम पर लगे डस्टबिन में ही कूड़ा डालते हैं । लेकिन यहाँ तो सड़कों पर कहीं दूर- दूर तक डस्टबिन नजर ही नहीं आता तब भी सड़कें एकदम साफ- सुथरी नजर आती हैं, ये तो वाकई कमाल है, पता चलता है लोग कितने अनुशासित हैं, अपने शहर को प्यार करते हैं तो अपनी ज़िम्मेदारी भी समझते हैं उसके प्रति।हम दो शहरों क्योटो और टोक्यो में रहे। 

जापान को "सूर्योदय का देश" कहा जाता है क्योंकि यह पूर्वी एशिया में स्थित है और पृथ्वी के चारों ओर घूमते समय सूर्य की पहली किरणें जापान में ही पड़ती हैं. इसे "निप्पॉन" (या निहोन) भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है "सूर्य की उत्पत्ति". जापान चार बड़े और अनेक छोटे द्वीपों का एक समूह है।ये द्वीप एशिया के पूर्वी समुद्रतट, यानी उत्तर पश्चिम प्रशांत महासागर में स्थित हैं।

क्योतो जापान के यमाशिरों प्रांत में स्थित नगर है।क्वामू शासन काल में इसे 'हे यान जो' अर्थात् 'शांति का नगर' की संज्ञा दी गई थी। ११वीं शताब्दी तक क्योतो जापान की राजधानी था और आज भी पश्चिमी प्रदेश की राजधानी है। क्योटो छोटा धार्मिक शहर है जबकि टोक्यो पूरी सजधज सहित महानगर। दोनों शहरों की संस्कृति में साफ़ फर्क नजर आया।वैसा ही जैसे हमारी मुम्बई और मथुरा में नजर आता है। क्योटो में ज्यादातर टैक्सी ड्राइवर काफी बुजुर्ग मिले लेकिन टोक्यो में बनिस्बत यंग। लड़की हमें कहीं भी टैक्सी ड्राइवर नहीं मिलीं जैसी कि सिंगापुर, लंदन या यू एस में आम है। यहाँ पर बुजुर्ग काफी उम्र तक काम करते हैं और प्राय: अकेले ही शॉपिंग करते व घूमते मिल जाएंगे। 

जो प्योर वेजीटेरियन हैं उनको अपने साथ कुछ व्यवस्था करके ही जाना चाहिए । जगह- जगह आपको छोटे- बड़े रेस्टोरेंट खूब मिलेंगे लेकिन हर जगह चिकिन, मटन, बीफ़, फिश, प्रॉन, पोर्क के बेक होने की चिरांध हवा में तैरती मिलेगी।जापान में एक चीज़ का बहुत क्रेज दिखा वह है हरे रंग का माचा। माचा आइसक्रीम, माचा ड्रिंक, माचा चाय, माचा कैंडी क्या नहीं मिलेगा जबकि उसका टेस्ट कुछ कड़वा कसैला सा होता है परन्तु एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होने के कारण बहुत लोकप्रिय है। वैसे तो वीगन फूड के नाम पर आपको राइस विद वेज करी , वेज सुशी, जापानी काँजी, पास्ता, नूडल्स व पित्जा वगैरह मिल ही जाएगा। भूखे तो नहीं ही रहेंगे। मैकडोनल भी सभी जगह हैं पर फ्रैंच फ्रायज के अलावा तो क्या ही मिलेगा। कुछ इंडियन रेस्टोरेंट भी हैं जहाँ बहुत टेस्टी खाना मिला। बेकरी आइटम्स की बहुत वैरायटी होती है और बहुत टेस्टी भी। वैसे भी हम इंडियन विदेशों में थेपले तो ले ही जाते हैं अपने साथ😊

वहाँ के लोगों में एक मासूमियत दिखाई देती है। लोगों का व्यवहार बहुत ही सहयोगात्मक दिखा। किसी से कोई शॉप या रास्ता पूछो तो वह अपने हाथ का काम छोड़कर आपके साथ दूर तक साथ चल देगा।कमर से झुक कर इतनी बार अभिवादन करेंगे कि लगता है इनकी कमर दुख जाती होगी।होटल व रेस्टोरेंट में सभी का व्यवहार बहुत विनम्र व सहयोगी रहा। लेकिन अनुशासन व नियमों के मामले में कुछ ज्यादा ही कड़क ।बस वहाँ ज़्यादातर वोग जापानी लैंग्वेज में ही बात करते हैं , इंग्लिश कम ही लोग जानते हैं ।हमें कई जगह एप का सहारा लेना पड़ा ।प्राय: हर होटल में हरेक के लिए नाइट सूट या कीमोनो रूम में होता था।हमने ठाठ से नाइट गाउन की जगह कीमोनो पहनकर अपना ये शौक पूरा किया। 

वे नियम कायदों को बहुत सख्ती से फॉलो करते हैं, शायद इसी कारण वहां पर क्राइम बहुत कम है। म्यूजियम व आर्ट गैलरी में आप अपने बैग से निकालकर भी पानी नहीं पी सकते, आप रूम से बाहर जाकर ही पी सकते हैं । वर्ना मुस्तैद खड़ा स्टाफ आकर आपको कान में धीरे से मना कर देगा। मार्केट में आप शॉप पर ही आइसक्रीम खाइए चलते- चलते रास्ते में नहीं खा सकते। सड़क पर चलते समय जोर से कोई नहीं बोलता। कोई भी गाड़ी का हॉर्न नहीं बजाता। वे शहर में गाड़ी बहुत इत्मिनान से चलाते हैं , पैदल क्रॉस करने वालों के लिए इंतजार करेंगे, ओवरटेक भी नहीं करते। एक बार हमारे टैक्सी ड्राइवर ने हल्का सा ही हॉर्न बजा दिया तो सब उसको ऐसे घूरकर देखने लगे जैसे जघन्य अपराध कर दिया हो।

जापान की समृद्धि के पीछे जापानियों की अथक मेहनत साफ झलकती है। सुना है कि वहां के युवा अब शादी के बंधन से कतराने लगे हैं। काम व प्रमोशन की होड़ में कौन झंझट में फंसे ? ये भी सुना कि लोग घरों में चूहे पालते हैं और उनको बच्चों की तरह पालते हैं। कई लड़कियों को बेबी कैरियर में खूबसूरत छोटे-छोटे डॉग्स को सीने से लगाकर  दुलारते देखा।क्योटो मे स्टिक लगे फ्रोजन खीरे भी खूब बिकते दिखे।

यह जानकर बेहद दुख हुआ कि जापान में सबसे ज्यादा लोग आत्महत्या करते हैं, निश्चित ही उनमें युवाओं की संख्या अधिक होगी। क्योटो पर तो धर्म का प्रभाव बहुत अधिक है…तब भी ? वह धर्म कैसा जो साहस , आशा व शक्ति का संचार न करे। वह समृद्धि किस काम की जिससे लोग तनाव, अकेलापन व असुरक्षित महसूस करें ? जीवन में बैलेंस होना बहुत जरूरी है आप सिर्फ भौतिकवादी होकर कैसे सुखी रह सकते हैं । इतना प्यारा देश, इतने प्यारे लोग…दुआ है काश इस काली छाया से बाहर निकल सकें…आमीन!!!

किसी देश की नब्ज पर हाथ रखना है तो इतिहास से ज्यादा जरूरी है वहाँ का साहित्य पढ़ा जाए। मन हुआ कुछ जापानी कविता  पढ़ने का तो गूगल बाबा ने बताया 'Matsuo Basho’की लबसे प्रसिद्ध हाइकु है-'द ओल्ड पॉन्ड’-

Furuike ya 

kawazu tobikomu 

mizu no oto


The old pond- 

a frog jumps in,

sound of water.

(पुराना तालाब...

पानी की आवाज़ में 

एक मेंढक कूदता है।)

क्या सिर्फ इतना भर अर्थ है इसका ? 

या यह कि, पुरानी मान्यताओं के तालाब में कुछ नवीन खुशी की तलाश में भटके हुए लोग पुन: छलांग लगा रहे हैं, यही या कुछ और…कभी भी किसी कृति का एक अर्थ नहीं होता …सोच रही हूँ, खंगाल रही हूँ क्या कारण हो सकता है इस हाइकू को इतना पसंद किए जाने के पीछे…आप भी सोचिए हम भी सोचते हैं…अभी काफी कुछ बाकी है…फिलहाल सायोनारा👋!!