ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

शनिवार, 18 अगस्त 2018

एक बरस बीत गया



2000 में आई फ़ैक्स,दिल्ली  में अटल जी की कविताओं पर “कृति आर्टिस्ट एसोसिएशन “के तत्वाधान में चित्र कला प्रदर्शनी की थी तब बनाई थी उनकी कविता पर यह पेंटिंग -

एक बरस बीत गया

झुलासाता जेठ मास
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया

सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया

पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया
                             #स्व०अटलबिहारीबाजपेयी

शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

नमन




यूँ तो
जाने को ही आता है
हर शख्स यहॉं
पर...
ये कैसा जाना
कि
बसजाना
हर दिल
में .....

-भावपूर्ण श्रद्धांजलि
      नमन
#अटल जी
💐🙏

बुधवार, 8 अगस्त 2018

परिचय


पूंछते हो कौन हूँ मैं
क्या कहूँ
कौन हूँ मैं
शायद...
भगवान का एक
डिफेक्टिव पीस
जिसमें जल,आकाश,हवा
तो बहुत हैं
पर आग और मिट्टी
तो बहुत ही कम...
रंगों की बिसात तो
हर तरफ़ हैं
पर आँकड़ों के हिसाब तो
ग़ायब हैं
उड़ानें बिन पंखों के
भागती हैं रात-दिन
और बचपन से ही
अंदर एक थकी सी बुढ़िया
करती रहती है
खटर-पटर
भीतर ही भीतर धमा- चौकड़ी
एक बच्ची की भी
चलती रहती है आज भी
और जो षोडशी  है
उसके तो पैर ही नहीं टिकते
नए इन्द्रधनुष रचती
नए ख़्वाब बुनती
जाने कहॉं-कहॉं ले जाती है
उड़ा कर मुझे
मुझे तो अपना ख़ुद ही पता नहीं
किसी को पता हो तो बताए
हो सके तो मुझसे
मेरा
परिचय कराए !!
                   -उषा किरण



शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

'' बैजनाथ मंदिर ''--(काँगड़ा )


                                         
 पूर्व निश्चित प्रोग्राम केअनुसार आश्रम के बाद हम लोग काँगड़ा जिले के कस्बे 'बैजनाथ' जो कि पालमपुर से १४ कि मी की दूरी पर है स्थित 'बैजनाथ' मंदिर के लिए निकल लिए जो की हिन्दुओं के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। 
तेरहवीं शताब्दी में बने शिव मदिर को 'बैजनाथ' अर्थात वैद्य +नाथ भी कहा जाता है इसका पुराना नाम ' कीर- ग्राम' था। मंदिर के उत्तर पश्चिम छोर पर `बिनवा ‘ नदी बहती है जो आगे जाकर ब्यास नदी में मिलती है.
कहते हैं कि त्रेता युग में रावण ने घोर तपस्या की और अपने नौ सिर काट कर उनकी आहुति दी जब वो दसवॉं सिर काटने लगा तो शिवजी ने उसका हाथ पकड़ लिया और वर माँगने को कहा रावण ने कहा कि आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूँ  और दूसरा यह कि आप मुझे बलशाली बना दें शिव जी ने तथास्तु कहा और अपने दो शिवलिंग  स्वरूप दो चिन्ह रावण को दिए और कहा कि इनको भूमि पर मत रखना रास्ते में गौकर्ण क्षेत्र (बैजनाथ क्षेत्र) पहुंचने पर एक बैजू नामक  ग्वाले को शिवलिंग पकड़वा कर लघुशंका के लिए चला गया बैजू शिवजी की माया से भार वहन नहीं कर सका और शिवलिंग धरती पर रख कर चला गया और दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए ।दोनों शिवलिंग 'चन्द्रभान' एवम् 'बैजनाथ' नाम से जाने गए शिवजी मंदिर के समक्ष नंदी की मूर्ति है लोगों का विश्वास है कि नन्दी के कान में मन्नत मांगने से पूरी होती है ।हमने जब लोगों को ऐसा करते देखा तो हमने हमने भी नन्दी के कान में अपनी मन्नत माँगी ।मंदिर परिसर में कुछ छोटे मंदिर भी हैं ।
कहते हैं कि द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया था।शेष निर्माण कार्य 'आहुति' एवं 'उनुक' नामक दो व्यापारियों ने १२०४ ई० में पूर्ण करवाया ।यह स्थान शिवराम के नाम से
उत्तर भारत में प्रसिद्ध है ।
वर्ष भर यहॉं पर भक्त-जन एवम् विदेशी पर्यटक दर्शन हेतु आते हैं ।महाशिवरात्रि में हर वर्ष पॉंच दिवसीय राज्य स्तरीय समारोह आयोजित किया जाता है।
मंदिर के साथ बहने वाली `बिनवा खड्ड' पर बने खीर गंगा घाट में स्नान का विशेष महत्व है। लोग स्नान के बाद  पूजा अर्चना करते है।  हम लोग भी पूजा-अर्चना कर जल्दी वापिस लौट लिए क्योंकि तेज धूप के कारण फ़र्श तप रहा था और पैर जल रहे थे। लौटते समय मैंने एक बात पर गौर किया कि कॉंगड़ा के हर मंदिर के निर्माण से  पांडवों के अज्ञातवास का संबंध जुड़ा है ।


                                                                 











मुक्ति


आओ सब
वहॉं लगो लाइन में
बही लेकर बैठी हूँ
बड़े जतन से दर्ज किए थे
जो हिसाब-किताब....
किसने कब दंश दिया
किसने की दगा
किसने मारे ताने
सताया किसने
रुलाया किसने
इल्ज़ाम लगाए किसने
किसने दिए उलाहने
संकट की घड़ी...
किसने दिया नहीं साथ
मंगल बेला में बोलो तो
क्यूँ नहीं गाए गीत
जब मन छीजा तो
किसका कंधा नहीं था पास
फाड़ रही हूँ पन्ना-पन्ना...
ये इसका
ये उसका
और
ये तेरा...
आओ...कि ले जाओ सब..
मुक्त हुए तुम
मुक्त हुई मैं
रिक्त करो मेरा मानसरोवर
और सुनो जाते जाते बंद कर जाना
वे दसों दरवाज़े
उड़ने दो मेरे राजहंसों को
अब ...उन्मुक्त...!!

      —उषा किरण 
रेखाँकन; उषा किरण 





शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

" चामुण्डा देवी मंदिर “(काँगड़ा )


आश्रम जाकर खाना खाकर हम लोग सो गए शाम को पाँच बजे पवन की गाड़ी से मैं,कान्ता जी,भारती और एक कान्ता जी की फ्रैंड चामुण्डा देवी के दर्शन को निकल लिए और पन्द्रह मिनट में ही पहुँच गए .
हिमाचल-प्रदेश को देव-भूमि भी कहा जाता है.पूरे हिमाचल में २००० से भी ज़्यादा मंदिर हैं इनमें से एक चामुण्डा मंदिर भी प्रमुख  है .यह भी प्रमुख शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है.यह मंदिर ७०० साल पुराना है कहते हैं यहाँ सती माँ  के चरण गिरे थे.मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने एवं मन्नत मानने से मनोकामना पूर्ण होती है.देश भर से असंख्य श्रद्धालु प्रतिवर्ष दर्शन को आते हैं.यह मंदिर धर्मशाला से पन्द्रह कि०मी० दूरी पर बंकर नदी के किनारे स्थित है पर जब हम लोग गए तब नदी लगभग सूखी हुई थी यहाँ की प्रकृतिक सुषमा मनमोहक  है.
यह मंदिर माता काली को समर्पित है चण्ड-मुण्ड के संहार के कारण ही माता का नाम 'चामुण्डा' पड़ा.जब-जब भी दानवों के कारण कोई संकट  धरती पर आया तब-तब मॉं ने दानवों का संहार किया.मंदिर के बीच वाले भाग में प्राय: लोग ध्यान लगाते हैं .कुछ लोग ब्रह्म गंगा तथा मंदिर के पास स्थित कुंड में स्नान कर दर्शन करते हैं.प्रमुख प्रतिमा को शुचिता के कारण ढंक कर रखते हैं. मंदिर के पीछे एक पवित्र गुफा है जिसमें शिवलिंग स्थापित हैं.मंदिर के मुख्य द्वार के पास हनुमान जी तथा भैरों नाथ की प्रतिमा है. हनुमान जी को माता का रक्षक माना जाता है.
मंदिर जाकर हमने प्रसाद लिया और लाइन में लग गए काफी भीड़ थी सामानान्तर  दो लाइन चल रही थीं.
दर्शन करके हम बाँए साइड से बाहर निकले वहां बड़ी सी हनुमान जी की मूर्ती   थी वहां हमने फोटो खिंचवाईं नीचे ब्रह्म गंगा बह रही थीं पर बिल्कुल सूखी हुई सी. मैंने और भारती ने वहां से आम पापड़ खरीदे।
गाड़ी में गाना बज रहा था...
रत्नों सी सुण रत्नों
तेरियां गला दाँ मारया
के पौणाहारी
जोगी हो गया
जोगी हो गया,वैरागी हो गया...
मुझे पवन ने बताया ये बाबा बालकनाथ का भजन है.
हम रास्ते से कुछ डाइट नमकीन ख़रीदते हुए वापिस आश्रम की तरफ़ प्रस्थान कर गए.
                                                                         
#कांगड़ाहिमाचलप्रदेशयात्रा-5                                                          क्रमशः
          

गुरुवार, 12 जुलाई 2018

"श्री १००८ बगलामुखी बनखण्डी मंदिर” (कांगड़ा)



हिमाचल प्रदेश ऋषि-मुनियों की तपस्थली रही है यहां बहुत प्राचीन मंदिर संथित  हैं ...हमने पहली बार बगलामुखी मॉं का नाम सुना था ।इस मंदिर का नाम " श्री १००८ बगलामुखी बनखण्डी मंदिर  है " यह  मंदिर ज्वालाजी से बाइस किलोमीटर दूर  कोटला कस्बा ,ग्राम बनखण्डी में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ मंदिर है ।कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों द्वारा एक ही रात में की गई थी भगवान कृष्ण के कहने पर इसकी स्थापना कर सर्वप्रथम यहां विशेष पूजा भीम व युधिष्ठिर ने शक्ति प्राप्त करने एवं युद्ध पर विजय प्राप्त करने के लिए की थी इन देवी की उपासना एवं हवन करवाने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है एवं कष्ट व भय से मुक्ति तथा वाक्सिद्धि प्राप्त होती है ,कुछ धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि यहां सर्वप्रथम आराधना ब्रह्मा व विष्णु ने तत्पश्चात परशुराम ने की थी और कई शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी ।
हिन्दू पौराणिक कथाओं में दस महाविद्याओं  की देवी में से एक मॉं बगलामुखी का आठवां स्थान माना गया है इन्हें माता पीताम्बरा भी कहा जाता है ...ये स्तम्भन की देवी हैं सारे ब्रह्मान्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती  ।कहते हैं कि समुन्द्र में छिपे राक्षस का वध करने हेतु मॉं ने बगुला का रूप धारण किया था इसी से बगलामुखी नाम पड़ा यहां मॉं का पीत वस्त्र, पीत आभूषण एवं पीले ही फूलों की माला से श्रंगार किया जाता है भक्त लोग भी पीले रंग के फूल ही अर्पित करते हैं । मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने जाते हैं जो क्रमश: दतिया,नलखेड़ा,(म०प्र०) तथा कांगड़ा(हि०प्र०) में स्थित है जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है ।
'बगलामुखी जयंती’ पर यहां मेले का भी आयोजन किया जाता है जिसमें अन्य देशों के विभिन्न राज्यों से लोग आकर कष्टों के निवारणार्थ हवन,पूजा-पाठ करवाते हैं ।वर्षों से प्रतिवर्ष असंख्य श्रद्धालु अन्य अवसरों पर भी यहां दर्शन को आते रहे हैं ।
नगरकोट के महाराजा संसारचन्द कटोच भी प्राय: इस मंदिर में आकर आराधना करते थे ।देश के कई नेता यहां आकर अनुष्ठान- पूजा करवाते रहे हैं ।मंदिर के अंदर कई हवन कुंड हैं जिनमें हवन-अनुष्ठान चलते रहते हैं
इस मंदिर के परिसर में मॉं लक्ष्मी,कृष्ण, हनुमान,भैरव तथा सरस्वती मॉं की प्रतिमा भी स्थापित हैं आदमकद शिवलिंग  भी हैं यहां पर ..इसके अतिरिक्त...नवरात्री में यहां भारी भीड़ रहती है बेलपत्रआंवला,नीम ,पीपल के वृक्ष परिसर में हैं ।
परिसर में बनी दुकान से प्रसाद लिया और एक दोने में बिक रहे पीले गेंदे के फूल लेकर पूजा कर बाहर आए बहुत तेज धूप और बेहद गर्मी थी ,मैंने मंदिर में बिक रही दो आइस्क्रीम खरीदीं और टीन के शेड के नीचे बैठ कर मजे से मैंने और कान्ता जी ने खाईं फिर बाहर निकल कर गाड़ी में बैठ वापसी के लिए रवाना हो गए ।हमने  रास्ते से खूब सारे फल खरीदे कैम्प में हमें फल नहीं मिलते थे तो रास्ते में हम लीची,आलूबुखारा , आम खाते रहे और गपियाते रहे ।मैंने पवन से पूंछा कि ' तुम्हारे कांगड़ा में देवता नहीं पूजे जाते क्या ‘ तो उसने कहा`नहीं हमारे कांगड़ा में देवी की पूजा करते हैं और शिव जी तथा भैरों की पूजा करते हैं ।
     दरअसल मेरे साथ एक फैमिली लगभग बीस साल से रहती है वो लोग पौड़ी गढवाल से हैं  और एक मेड थी उत्तरांचल से ये लोग हर दम हजारों रुपये उधार मांग कर गांव जाते थे यह कह कर कि देवताओं को पूजा देनी है और फिर बकरे की बलि देकर उनका ओझा या पंडित कुछ पूजा करता था फिर सारे गांव की दावत होती थी ...उनकी बातों से पता चलता था कि उनके देवता मृत पूर्वज ही होते हैं जो प्रेत बन कर नाराज होने पर इनको सताते हैं और खुश होने पर मदद करते हैं ।मैं कई बार समझाती थी कि भगवान की पूजा करो ,हनुमान जी,शिवजी या देवी मॉं की ।इतनी मेहनत से कमाया पैसा क्यों बर्बाद करते हो कुछ साल बाद उनकी समझ में आया और अब वे भी भगवान को मानते हैं परन्तु उनके किस्से इतने डरावने और मजेदार होते थे कि एक पुस्तक तो लिखी जा सकती है ।
पवन ने हमसे कहा कि यदि आप चाहो तो शाम को चामुन्डा देवी के दर्शन कर सकती हैं आश्रम से पन्द्रह मिनट की दूरी पर है तो हमने कहा कि ठीक है पांच बजे आ जाना हम चलेंगे और  करीब डेढ बजे हम वापिस आश्रम आ गए
                                                                                                                                                   क्रमश:

#कांगड़ाहिमाचलप्रदेशयात्रा-4






मुँहबोले रिश्ते

            मुझे मुँहबोले रिश्तों से बहुत डर लगता है।  जब भी कोई मुझे बेटी या बहन बोलता है तो उस मुंहबोले भाई या माँ, पिता से कतरा कर पीछे स...