ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

मंगलवार, 24 मार्च 2020

मन का कोना — नर हो न निराश करो मन को ...

                                     


वैश्विक संकट की स्थिति है ।सारे दिन घर में बन्द होकर टी वी , न्यूज़ पेपर, मोबाइल में देख पढ़ कर सबके मन दहशत में हैं । जिस भी फ्रैंड से बात की हर कोई ख़ौफ़ज़दा है ।फेसबुक पर भी कई पोस्ट में हताशा दिखाई दी दहशत है सब तरफ बदहवासी है खुद मैं भी सुकून में नहीं हूँ ।सारे दिन टी वी के आगे बैठी रहती हूँ इस उम्मीद में कि अभी उद्घोषणा होगी कि वैक्सीन आ गया जाकर सब अपने डॉक्टर से लगवा लें ...जबकि जानती हूँ अभी वक्त लगेगा काश मेरा ये दिवा स्वप्न साकार हो जाए!🙏
ज्यादातर लोगों के बच्चे विदेशों में या दूसरे शहरों में पढ़ रहे हैं या जॉब कर रहे हैं उनके लिए मन परेशान है ।देश के हालात भी धीरे-धीरे चिन्ताजनक होते जा रहे हैं परन्तु कुछ बेवकूफों की बेवक़ूफ़ी का खामयाजा सबको भुगतना पड़ेगा ।कई लोगों की पोस्ट और मैसेज पढ़ रही हूँ धीरे- धीरे सब अवसाद में जा रहे हैं तो संभलिए खुद और संभालिए सबको । अपने से जुड़े अशिक्षित व अति उत्साही और अन्धविश्वासी लोगों को मौका मिलने पर समझाएं कि घर पर रहें और आवश्यक सावधानी स्वच्छता का पालन करें ।
ध्यान करिए , प्राणायाम करिए मन शाँत होगा । एन्जायटी से कहीं ऐसा न हो कि आपका बी पी , शुगर बेकाबू हो जाए या दिल पर ज्यादा बोझ पड़ने से दिल गड़बड़ा जाए और आपको डॉक्टर या हॉस्पिटल की जरूरत पड़ जाए । एक तो डॉक्टर्स व हॉस्पिटल स्टाफ पर पहले ही इतना बोझ है कोरोना के चलते और आगे भी उनको कोरोना पीडि़तों को देखना है तो हिम्मत रखिए ।अपना ध्यान रखिए ,अपने बुजुर्गों से बात करिए , हौसला दीजिए उन्हें , बच्चों के साथ गाने गाइए , नाती पोतों को कहानी सुनाइए उनके पापा मम्मी की बचपन की शैतानियाों के किस्से सुनाइए , कविता या कहानी की दो लाइन सुना कर कहिए बाकी तुम पूरी करो  देखिए फिर उनकी कल्पना की उड़ान कैसी ईरान तूरान की मिलाते हैं ।बच्चों से कुछ रेसिपी ट्राई करवाइए हमारे आदी (नाती) ने चीज सैंडविच , कप केक ,फ्रूट सलाद बनाना सीखा है । जब बच्चे खुद बनाते हैं तो खूब गपर-गपर खाते हैं ।बच्चों के साथ इन्डोर गेम खेलिए , यदि लॉन हैतो बैडमिंटन खेलिए (मेरे दामाद ने इन दिनों चार कि० वेट कम किया खेल कर) कुछ जो मन को अच्छा लगे पढ़िए, मित्रों से फोन पर बात करिए एक दूजे का हौसला बढ़ाइए ।देखिए घर में कहीं कभी मंगा कर रखे कलर्स ब्रश रखे हों तो पेंटिंग ही बना डालिए  । नहीं तो गर्म कपड़ों की पैकिंग का काम निबटा लीजिए । अपनी कवर्ड चैक करिए कुछ बहुत अच्छे कपड़े जो ये सोच कर साल दो साल से सेंत रखे हैंकि जब स्लिम हो जाउंगी तब पहनूँगी तो निकाल कर दे दीजिए अपने केयर टेकर्स को और भूल जाइए दो साल में नहीं घटा तो कोई गारंटी नहीं कि आगे भी....।
कभी सितार, हारमोनियम, बाँसुरी, माउथऑर्गन , पियानो,तबला ,कुछ सीखा था जिसे जीवन की आपाधापी में भूल गए थे तो निकालिए ,धूल झाड़िए फिर से जीवन में सुर लाइए कुछ गुनगुनाइए ।अगर लिखने का मन  है या हुनर है तो लिखिए कुछ ।सर्च करिए नेट पर कुछ अच्छी रेसिपी ट्राई करिए आप भी। जैसे आज मैंने तवा फ्राई सब्जी बनाई ।मर्द लोगों को चाहिए कि पत्नियों को कहें अब इस सन्डे ,सैटरडे तुम्हारी छुट्टी और बच्चों के साथ खुद संभालिए किचिन ।बाजार से ग्रोसरी आप खुद लाएं । माली की छुट्टी कर गार्डन में खुरपी चलाइए बच्चों से कहिए पानी दें ।देखिए कितनी ख़ुशियाँ आएंगी घर में सेहत भी बनेगी टेंशन भी कम होगा । सहायकों की छुट्टी होने से आपकी पत्नि पर काम का बोझ आ पड़ा है ऊपर से बढ़िया डिशेज की फ़रमाइश तो जाकर काम में हाथ बंटाइए न ।यदि कोई परिचित या पड़ोसी बुजुर्ग घर पर अकेले रहते हों तो उनकी खबर फोन पर जरूर लेते रहिए और छोटे बच्चों से भी कहिए कि वो भी पूछे संस्कार पड़ेंगे बच्चों में कोई जरूरत हो तो मदद करिए।
आज बेटी ने बताया कि उनकी सोसायटी में एक बुजुर्ग डॉक्टर दंपत्ति अकेले रहते हैं बच्चे बाहर हैं उन्होंने अपनी सभी मेड को छुट्टी दे दी है तो कल बेटी और उसकी कुछ फ्रैंड्स मिल कर उनके घर की साफ- सफाई करके आईं और कुछ खाना भी बना कर दे कर आईं  कुछ देर उनसे बात की हाल- चाल पूछा , हिम्मत बढ़ाई कहा कि कोई प्रॉब्लम हो तो हमें बताइएगा । एक और परिवार है जिन्होंने पूरी तरह खुद को घर में बंद कर लिया है क्योंकि उनकी माँ को कैंसर है कैंसर पेशेन्ट की इम्यूनिटी वैसे भी कम होती है तो अपनी दवाइयाँ लेने जाते समय उनसे पूछा और उनकी भी दवाइयाँ व फल लाकर दिए । सुन कर मन भीग गया मैंने खूब शाबाशी दी
भूल जाइए इस समय जाति -पाँति, धर्म बस जरूरतमंदों को मदद करिए । आप जिन मंदिरों में , तीर्थों में भगवान के नाम पर दान देते हैं वो सब वैसे ही बन्द पड़े हैं नर में नारायण देखिए । आपकी मेड, ड्राइवर, माली जो भी आप पर निर्भर हैं इसके अतिरिक्त भी जहाँ कर सकते हैं उनकी मदद करिए ताकि उनके चूल्हे जलते रहें ।बिना पैसे काटे  छुट्टी दें  एक महिने के पैसे एडवांस दें और कहें कि कम से कम आटा,चावल , नमक ,चीनी, पत्ती,दाल चावल, आटा लाकर रख लें या सेलरी से अलग दान समझ कर कुछ पैसे देकर उनकी मदद करें ऐसा करके देखिए कितनी खुशी और शाँति मिलती है ऐसी शाँति किसी पूजा पाठ से भी नहीं मिल सकती। क्योंकि हो सकता है हालात बिगड़ने पर घरों से निकलने लायक हालात न रहें आगे जाकर  ,क्योंकि  लॉक-डाउन से भी रुक नहीं रहे घरों में कुछ बेवकूफ लोग।आलम ये है कि कल टी वी पर देखा कुछ लोग टैटू बनवाने जा रहे थे...मजाक समझ रखा है कुछ लोगों ने वे कोरोना को गंभीरता से नहीं ले रहे तो सरकार को सख्त कदम उठाने ही पड़ेंगे हो सकता है कल आपके शहर में भी कर्फ़्यू लग जाय।
प्रार्थना करिए  ये आपको मानसिक शक्ति , शान्ति देती है और आशावान बनाती है तो आप जिसको भी इष्ट मानते हों प्रार्थना करिए ,चैन्टिंग करिए या जिस भी धर्म के अनुयायी हों अल्लाह, ईशू,नानक जिसमें भी आस्था हो विश्व के लिए पहले प्रार्थना करिए तब अपने और अपने बच्चों के लिए  करिए सामूहिक प्रार्थना में बल होता है ।
सारे विश्व में मौत का तांडव है । इस समय सबसे बड़ी समस्या है खुद को बचाए रखना और अपने देश परिवार समाज को कैसे बचाएं उस पर विचार कर सहयोग करना ।
पैसे बैंकों में रखे रह गए, जमीन जायदाद पड़ी रह गईं , अकूत संपत्ति भी साथ नहीं गईं और हजारों लोग चटापट उठ गए । रह गया सब यहीं रिश्ते मान- अपमान , सम्मान ,प्रशस्ति-पत्र भी !
दूसरी तरह के अमीर बनिए एकांतवास में आत्मनिरीक्षण करिए  । दिल बड़ा करिए ।कभी किसी ने अपमान किया आपका ,आपको हर्ट किया,दुश्मनी ठानी बस यही टाइम है माफ कर दीजिए मन से ।यदि आपकी गल्ती है तो माफी माँग लीजिए ...मन का कबाड़ छाँट दीजिए आशा, प्रेम व प्रार्थना का दीप जलाइए " #अप्प_दीपो_भव”सकारात्मक बनिए । बच्चों को भी ये सब सिखाइए ।ये बवंडर तो थम ही जाएगा एक दिन बहुत कुछ उत्पात मचा कर ।प्रकृति का कहर है थमेगा ही एक दिन पर हमें बहुत कुछ सिखा कर और सीखने का वक्त भी है । देखिए अपने अहंकार को जाँचिए जरा काम करिए उस पर भी।
आखिर में करबद्घ निवेदन है कि मोदी, केजरीवाल,अमितशाह वगैरह को जितनी मन हो बाद में गाली दे लेना पर अभी जो कह रहे हैं , जो पॉलिसी व नियम बना रहे हैं मानने में ही सबकी भलाई है ...मान लो सबके कल्याण की बात है🙏
ये जो कुछ मैं लिख रही हूँ ये आपसे ज्यादा खुद के लिए लिख रही हूँ कि ...उषा किरण संभल जाओ , रुक तो गई ही हो ...संभलो...जरा सोचो...क्योंकि कल हो न हो 🤔
कोरोना लॉक डाउन का हासिल-कुछ फोटो








मंगलवार, 17 मार्च 2020

पुस्तक- समीक्षा


दुखां दी कटोरी: सुखां दा छल्ला’
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कभी-किसी की एक रचना ऐसी आती है कि मन करता है उसका लिखा अगला-पिछला सब कुछ एक साँस में पढ़ जाएं।
रूपा पहली बात तो ये कि आपको ख़ूब लिखना चाहिए हम और पढ़ना चाहते ऐसी सुंदर जादू रचने वाली ,सम्मोहित करने वाली कहानियाँ ।
रुपा सिंह  की हंस कथा मासिक में छपी कहानी 'दुखां दी कटोरी: सुखां दा छल्ला’ का चारों तरफ इतना शोर सुना तो रूपा से माँग कर पढ़ी और न सिर्फ़ पढ़ी लगातार दो बार एक ही बार में पढ़ गई कारण था पंजाबी मिश्रित मज़ेदार भाषा की वजह से मज़ा भी आया और कुछ पहली बार पढ़ने में समझने में परेशानी भी हुई और दूसरा सबसे बड़ा कारण था अंत में छल्ले के साथ आखिरी वक्त में उजागर होता बेबे का वो प्रेम जिसको नानाजी बेबे को सात तालों में बन्द करके भी नहीं बाँध पाए ।
कभी मंगेतर रही सुग्गी का बच्ची सहित छल से अपहरण करते एक बार भी पूछा नहीं उसका मन ...बस बाँध लिया साथ जैसे कोई ढोर हो ...पर दिल तो बेबे का छूट गया था न उस पार ।साथ आ गये  उस रिश्ते की ख़ुशबू तो बेबे की साँसों में महकती रही अगर -कपूर सी आख़िर तक ।बेबे गाती रही मगन हो...हंसती रहीं ...बोलती ...गाली देती ताउम्र...।
".....ओय छल्लिया होया वैरी...वतन माहिया हो गया वैरी...सोहणा...वे ढोलणा....।”
धड़कनों की ताल पर गीतों में हंसने -रोने में ढलता रहा दिल का दर्द...गूंजती रही अनकही पीर ।
अंत तक पढ़ते-पढ़तेही एक झटके में जैसे भावना का ,आँसुओं का गुबार फूट पड़ता है और बहा ले जाता है अपने साथ और आप हठात्  दुबारा पढ़ने को विवश हो जाते हैं ।
बाकी सबने पहले ही इतने विस्तार में इतनी सुंदर समीक्षा लिखी है कि मैं क्या लिखूँ ?
बस एक बात है कि मुझे  इसमें एक नहीं दो-दो अनकही पावन प्रेम कहानियाँ नज़र आईं...एक बेबे की और दूसरी जो बेबे की नातिन और तोषी के बीच चलती है ने भी छू लिया ...अंदर तक उदास कर दिया । दूसरी कहानी बेबे के आड़ में छिपती छिपाती सी चलती रहती है बेहद लापरवाह अल्हड़ किशोरी सी ...काँगड़ी में जलती धीमी -धीमी आँच सी सुलगती सी ।
अमृतसर छूटने के बाद उसे लहना सिंह के बहाने जिसकी याद आती रही ......"कभी चाँद देखती तो आकाशगंगा से अमृत के बहते परनाले दिखते जो बगल की छत पर जाकर ठहर जाते...लेकिन अब वहाँ कोई नहीं होता ।केवल यादें ही यादें थीँ ....कौन बता सकता है किसके रौशन तन में मन के अंधेरे कैसे गाढ़े होते हैं ? ...जो पूर्णिमा की रात खीर और चुन्नी थामे चाँदनी में साथ बहता रहा... जो बचपन में कहता मैं भी चौकीदारी करूँगा ...तेरी सुंदर भूतनी की ...जो छल्ले को सीधा करता नाम पढ़ता है 'शमशेर ‘....दोनों साथ पढ़ते हैं ...रोते हैं ..समझते हैं साथ ही छिपा भी जाते हैं बेबे के रिश्ते के साथ अपना भी और सभी की गरिमा पूरी तरह निभा ले जाते हैं ...।
बेबे का अंतिम आर्तनाद “....छल्ला वैरी क्यूँ होया....ओ छल्लिया...” के पीछे कुछ और चाहतें , कुछ और सिसकियाँ भी छिपी रह जाती हैं और छोड़ जाती है हमारे मनों पर एक तीखी सी चिलचिलाती पीली धूप...!!!!!ब




रविवार, 15 मार्च 2020

मन का कोना-स्वास्थ्य सबसे बड़ी नियामत — हरा- भरा सलाद



सबसे ऊपर की छत पर कुछ गमले रखे हैं जिनमें पालक,मेथी, धनिया,पुदीनाऔर लैट्यूस बो देते हैं । इस बार लैट्यूस खूब आया तो उसका सलाद भी खूब बनाया खाया गया । मेरे फेवरिट सलाद की रेसिपी आप लोगों से शेयर कर रही हूँ ट्राई जरूर करें बच्चों को भी पसंद आएगा 👇

सलाद
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-ड्रेसिंग— आधा नींबू का रस, आधा च०शहद, ऑलिव ऑयल छोटी आधी चम्मच, काली मिर्च, सेंधा नमक,ऑरगेनो या मिक्स हर्ब एक चुटकी (ऐच्छिक) सबको अच्छी तरह मिला लिया ।

— लैट्यूस को अच्छी तरह धोकर किसी बर्तन में पानी में कुछ बर्फ के क्यूब डाल कर फ्रिज में थोड़ी देर  के लिए रख दें तो करारे हो जाएंगे

—- फिर सूखा एप्रिकोट , अखरोट, थोड़ी सी ड्राई ब्ल्यू बैरी या कोई भी बेरी( ऐच्छिक) किशमिश भी डाल सकते हैं इन सबको को काट लिया तरबूज़,ख़रबूज़े आदि के बीज डाले ( जो सामान इनमें से उपलब्ध हों वो डाल दें )

—-गाजर,मूली, चुकन्दर, बेबी टमाटर या बड़े हों तो बीज निकाल कर चौकोर काट लें ,गाजर ,ककड़ी,खीरे के पीस काट लें ।तीनों रंग की शिमला मिर्च या जो भी उपलब्ध हो उसके क्यूब काट कर बिना ऑयल पैन में कुछ देर गैस पर सौते कर ठंडा कर डाल दें आप चाहें तो कच्ची भी डाल सकते हैं ।लैट्यूस के पत्ते पानी से निकाल कर हाथ से तोड़ लें चाकू से न काटें । कुछ फल तरबूज ,अंगूर ,सन्तरे ( फाँकें छील लें )चैरी, स्ट्रॉबेरी  , रसबरी इनमें से जो भी फल हों काट कर डाल दें । प्याज न डालें ।

—कई बार बच्चे सलाद नहीं खाते हैं तो आप कुछ पास्ता भी उबाल कर मिक्स कर सकते हैं ।टोफू या फैटा चीज या अंकुरित मूँग भी यदि चाहें तो डाल सकते हैं ।(मैं नहीं डालती😊)

—- अब ड्रेसिंग डाल हल्के हाथ से मिला दें । खाने से तुरन्त पहले ही बनाने से क्रन्ची रहेगा ।आप चाहें तो सब सामग्री मिला कर फ्रिज में रख दें ड्रेसिंग खाते समय ही डाल कर टॉस कर दें ।
    नोट: मैंने जो पड़ सकता है सब लिख दिया है यहाँ ,पर जरूरी नहीं आपके पास जो उपलब्ध हो और आपको जो पसंद हो आप डाल सकते हैं
         ये खट्टा-मीठा ,रंग-बिरंगा ,फ्रैश सलाद आपको ताजगी से भर देगा । स्वास्थ्यवर्धक तो है ही पर यदि आप डायटिंग पर हैं तो खाने से पहले जरूर बना कर खाइए 😊



गुरुवार, 12 मार्च 2020

ताना-बाना - पुस्तक- समीक्षा





लेखनी और तूलिका का मिलन...उषा किरण
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 ( लेखिका —ऋता शेखर मधु )

"कहते हैं एक चित्र हजार शब्दों की ताक़त रखता है। ऐसे में अगर चित्रों को दमदार शब्दों का भी साथ मिल जाए, तो फिर इस रचनात्मक संगम से निकली कृति सोने पर सुहागा ही है।" ये शब्द हैं सुविख्यात कवि कुमार विश्वास जी के...ज़ाहिर सी बात है कि आपके मन में भी यह सवाल उठ रहे होंगे कि कौन हैं वह जिनके कर- कमलों को माँ बागेश्वरी से लेखनी और तूलिका , दोनों का वरदान मिला। वे हैं हमारी प्यारी उषा किरण दी।  उनकी सद्य प्रकाशित पुस्तक *'ताना-बाना'* ने जब हमारे घर की चौखट पर कदम रखा तो मैं खुशी से फूली न समायी।  उस पल की अनुभूति को अभिव्यक्त करने के लिए शब्द नहीं मिल रहे...love you उषा दी...झटपट पुस्तक पलटने लगी और सारे चित्रांकन देखकर बस एक ही शब्द निकलता रहा...वाह! फिर उनकी कविताएं, अनुभूतियां, अभिव्यक्ति पढ़ती गयी। चित्र पर कविताएँ थीं या कविताओं पर चित्र...कई बार यह प्रश्न उठता रहा। प्रथम चित्र गणपति को समर्पित है।आंखें, तुण्ड, उदर की बारीकियां मन मोहती रहीं। कविताओं की सँख्या 101...और हर एक कविता के लिए उनके बेमिसाल चित्र।
लेखन की बात करूँ तो प्रथम अभिव्यक्ति *परिचय* अद्भुत है। कवयित्री ने लिखा...*पूछते हो कौन हूँ मैं,क्या कहूँ कौन हूँ? शायद...भगवान का गढ़ा एक डिफेक्टिव पीस- जिसमें जल आकाश हवा तो बहुत हैं पर आग और मिट्टी बहुत कम* सिर्फ इन पंक्तियों की ही व्याख्या की जाए तो भाव की सीमा को शब्दों में बाँधना मुश्किल हो जाएगा। उसके आगे की पँक्तियाँ जाने कितना कुछ समेटने में सफल हैं।
 *सुनी है* कविता में राजस्थान को बहुत खूबसूरती से समेटा गया है। शुरू की चंद पँक्तियाँ अवश्य उत्सुकता जगाएँगी कि आगे क्या लिखा होगा....*सुनी है कान लगाकर उन सर्द, तप्त दीवारों पे दफ़न हुई वे पथरीली धड़कनें,वे काँपती सिसकियाँ और खिलखिलाहटें* ....और कविता के अंत में यह कहना कि ...*वापिस लौट तो आयी पर एक छोटा -सा राजस्थान आ गया है संग मेरी धड़कनों में...! रचनाकार का सृजन के प्रति समर्पण का दर्पण है। एक नन्हीं सी कविता *सब्र* ने एक उपन्यास ही गढ़ दिया है...* थका मांदा सूरज दिन ढले टुकड़े-टुकड़े हो लहरों में डूब गया जब, सब्र को पीते सागर के होंठ और भी नीले हो गए...!* कविता *एक दिन* पर की गई चित्रकारी अद्भुत है। चित्रकार की कल्पनाशीलता की प्रशंसा करनी पड़ेगी। कविता *मन्नत* में उन्होंने प्रभु के सामने जो इच्छाएँ व्यक्त की हैं वह उनके वसुधैव कुटुम्बकम के भाव की झलक दिखा रहा।
कविता *सुन रही हो न* में कवयित्री की संवेदनशीलता मर्म को छू लेने वाली है। नारी विमर्श पर यह कविता नारी को प्रेरित कर रही है कि सशक्त बनने की ओर पहला कदम उसे स्वयं उठाना होगा। कोई उसकी मदद तभी कर सकता है जब वह स्वयं अपनी बेड़ियों को काट डाले। इस अभिव्यक्ति पर किया गया रेखांकन भी सहज रूप से दिल में उतर रहा। किसी दर्द को जीवन से जोड़ देने की कला का परिचय *रुट-कैनाल* में मिलता है। कवयित्री ने दार्शनिक अन्दाज में सटीक लिखा,"एक छोटे दाँत ने सिखा दिया बरसों से पाले दर्दों से मुक्ति का रास्ता"।

विभिन्न भाव पर रची गयी कुल 101 कविताओं को पढ़कर ही जाना जा सकता है कि कवयित्री में कोमलता, विचार, संस्कार, आक्रोश, प्रश्न, प्यार...हर भाव में लेखनी की प्रखर गूँज है और श्वेत श्याम रेखाचित्र आँखों को सुकून देने वाली कलाकृतियाँ हैं। हार्ड बाइन्ड की पुस्तक आकर्षक कलेवर में है। आगे भी उषा किरण जी की कृतियाँ हमारे समक्ष आएँ , इसके लिए दिल से शुभकामनाएं।
आपका सुनहरी स्याही से अंकित स्वहस्ताक्षरित शुभकामना संदेश एवं साथ में चित्रांकन हमारे लिए अमूल्य हैं 🙏🌹🌹

पस्तक का नाम: ताना-बाना
मूल्य:450/-
प्रकाशक:शिवना प्रकाशन, सीहोर (म0 प्र0)


मंगलवार, 10 मार्च 2020

स्मृति- चित्रण..( फागुन रँग झमकते थे)



आज हमारी मित्र वन्दना अवस्थी दुबे ने होली के संस्मरण लिखने को कहा है तो याद आती है अपने गाँव औरन्ध (जिला मैनपुरी) की होली जहाँ पूरा गाँव सिर्फ चौहान राजपूतों का ही होने के कारण सभी परस्पर रिश्तों में बँधे थे इसी कारण एकता और सौहार्द्र की मिसाल था हमारा गाँव ।प्राय: होली पर हमें पापा -मम्मी गाँव में ताऊ जी ,ताई जी के पास ले जाते थे बड़े ताऊ जी आर्मी से रिटायर होने के बाद गाँव में ही सैटल हो गए थे  होली पर प्राय: ताऊ जी की तीनों बेटिएं भी बच्चों सहित आ जाती थीं और दोनों दद्दा भी सपरिवार आ जाते ,छोटे रमेश दद्दा भी हॉस्टल से गाँव आ जाते ।हवेलीनुमा हमारा घर सबकी खुशबुओं और कहकहों से चहक-महक उठता ।आहा ! गाँव जाने पर कैसा लाड़ - चाव होता था ।याद है बैलगाड़ी जैसे ही दरवाजे पर रुकती तो हम कूद कर घर की ओर दौ़ड़ते जहाँ दरवाजे पर बड़े ताऊ जी बड़ी- बड़ी मूँछों में मुस्कुराते कितनी ममता से भावुक हो स्वागत करते दोनों बाँहें फैला आगे आकर चिपटा लेते  "आ गई बिट्टो ” ।ताई अम्मा मुट्ठियों में चुम्मियों की गरम नरमी भर देतीं ।दालान पार कर आँगन में आते तो छोटी ताई जी भर परात पानी में बेले के फूल डाल आँगन में अनार के पेड़ के नीचे बैठी होतीं ,हम बच्चों को परात में खड़ा कर ठंडे पानी से पैर धोतीं बाल्टी के पानी से हाथ मुंह धोकर अपने आँचल से पोंछ कर हम लोगों को कलेजे से लगा लेतीं ।ताई जी बहुत कम उम्र में ही विधवा हो गई थीं ...ताऊ जी आर्मी में थे जो युद्ध में शहीद हो गए थे ...वे गाँव में या फिर हमारे साथ कभी -कभी रहने आ जातीं और हम सब पर बहुत लाड़-प्यार लुटातीं पर हम पर उनका विशेष प्यार बरसता था ।आँगन में लगे नीबू का शरबत पीकर हम सरपट भागते मिट्ठू को पुचकारते तो कभी गैया के गले लगते कभी कालू को दालान पे खदेड़ते ...दौड़ कर अनार अमरूद की शाखों पर बंदर से लटकते..हंडिया का गर्म दूध पीकर ,चने-चबेने और हंडिया की खुशबू वाले आम के अचार से पराँठे ,सत्तू खा पी कर बाहर निकल पड़ते उन्मुक्त तितली से ।
रास्ते में बहरी कटी बिट्टा के आँगन में लगे अमरूदों का जायजा लेते...बिट्टा बुआ के घर के सामने से डरते -डरते भाग कर निकल ,अपनी सहेली बृजकिशोर चाचाजी की बेटी ऊषा के पास जा पहुँचते।चाचा-चाची से वहां लाड़ लड़वा कर  उषा के साथ और सहेलियों से मिलने निकल जाते ।रास्ते में बबा,चाचा,ताऊ लोगों को नमस्ते करते जाते...'खुस रहो...अरे जे सन्त की बिटिया हैं का ...’  'अरे ऊसा -ऊसा लड़ पड़ीं धम्म कूँए में गिर पडीं हो हो हो ‘गंठे बबा ’देख जोर से हँसते -हँसते हर बार कहते ।गाँव की चाचिएं, ताइएं ,दादी लोग खूब प्यार करतीं ,आसीसों की झड़ी लगा देतीं और हम आठ-दस सहेलियों की टोली जमा कर सारे गाँव का चक्कर लगा आतीं, साथ ही पक्के रंग , कालिख, पेंट का इंतजाम कर लौटते वापिस घर ।
पापा नहा-धोकर अपने झक्क सफेद लखनवी कुर्ते व मलमल की धोती में सज सिंथौल पाउडर से महकते मोहर बबा की चौपाल पर पहुँचते जहां उनकी मंडली पहले से ही उनके इंतजार में बेचैन प्रतिक्षारत रहती क्योंकि खबर मिल चुकी होती कि ' सन्त’ आ रहे हैं ।पापा अपनी अफसरी भूल पूरी तरह गाँव के रंग में रंग जाते परन्तु उनकी  नफासत उस ग्रामीण परिवेश में कई गुना बढ़ कर महकती...हमें पापा का ये रूप बहुत मजेदार लगता था ।उधर मम्मी भी हल्का घूँघट चदरिया हटा जरा कमर सीधी करतीं कि गाँव की महिलाओं के झुंड बुलौआ करने आ धमकतीं..सबके पैर छूतीं ,ठिठोली करतीं,हाल-चाल पूँछतीं मम्मी का भी ये नया रूप होता ।मम्मी की भी गाँव में बहुत धाक थी वे पहली बहू थीं जो इतने बड़े अफसर की बिटिया और बीबी थीं और हारमोनियम पर गाना गाती थीं। वे भी गाँव में बहुत आदर-प्यार देती थीं सबको ।
             वस्तुत: हम सभी गांव के खुले प्राकृतिक  माहौल में अपनी -अपनी केंचुली उतार उन्मुक्त हो प्रकृति के साथ एकाकार हो आनन्द में सराबोर हो जाते ।हम भाई-बहन पूरी मस्ती से  सरसों, गेहूँ  और चने के खेतों में उन्मुक्त हो भागते-दौड़ते।कभी आम ,जामुन बाग से तोड़ माली काका की डाँट के साथ खाते तो कभी खेतों में घुस कर  कच्ची मीठी मटर खाते ,कभी होरे आँच पर भूने जाते तो कभी खेत से तोड़ कर चूल्हे पर भुट्टे भूनते  । चने के खेत से खट्टा कच्चा ही साग मुट्ठी भर खा जाते और बाद में खट्टी उंगलियाँ भी चाट लेते । कलेवे में कभी मीठा या नमकीन सत्तू और कभी बची रोटी को मट्ठे मे डाल कर या अचार संग खाने  में जो स्वाद आता था वो आज देशी-विदेशी किसी भी खाने में नहीं मिलता । बरोसी से उतरी दूध की हंडिया को खाली होने पर ताई जी हम लोगों को देतीं जिसे हम लोहे की खपचिया  से खुरच कर मजे लेकर जब खाते तो ताई जी हंसतीं 'अरे लड़की देखना तेरी शादी में बारिश होगी ‘ हम कहते 'होने दो हमें क्या ’ और सच में हमारी शादी में खूब बारिश हुई ,भगदड़ मची तो ताई जी ने यही कहा 'वो तो होनी ही थी हंडिया और कढ़ाई कम खुरची हैं इन्होंने’।
गाँव में कई दिनों पहले से होलिका -दहन की तैयारी शुरु हो जाती...पेड़ों की सूखी टहनियों के साथ घरों से चुराए तख़्त , कुर्सी ,मेज,मूढ़ा,चौकी सब भेंट चढ़ जाते ...बस सावधानी हटी और दुर्घटना घटी समझो  और होली पर भेंट चढ़ी चीज वापिस नहीं ली जाती अगला कलेजा मसोस कर रह जाता...सारी रात होली पर पहरा दिया जाता सुबह पौ फटते ही सामूहिक होली जलाने का रिवाज  होता जिसमें पूरे गाँव के मर्द और लड़के गेहूँ की बालियों को भूनते जल देकर परिक्रमा करते और आंच साथ लेकर लौटते जिसे बड़े जतन से घर की औरतें बरोसी में उपलों में सहेजतीं होली के दिन दोपहर में घर वाली होली जलाने के लिए पर कितने ही पहरे लगे हों कोई न कोई उपद्रवी छोकरा आधी रात ही होली में लपट दिखा देता बस सारे गाँव में तहलका मच जाता लोग हाँक लगाते एक दूसरे को ,लोग धोती , पजामे संभालते ,आँख मलते जल भरा लोटा लेकर लप्पड़-सपड़ भागते  जाते और उस अनजान बदमाश को गाली बकते जाते  ..' अरे ददा काऊ नासपीटे ने पजार दी होरी...दौड़ियो रे ...’गाली पूरे साल दी जातीं उस बदमास को।
दूसरे दिन सुबह से ही होली का हुड़दंग शुरु हो जाता ।घर की औरतें पूड़ी-पकवान बनाने में जुट जातीं ।हम बच्चे भाभियों को रँगने को उतावले रसोई के चक्कर काटते तो बेलन दिखा कर मम्मी और ताई जी धमकातीं...'अहाँ कढाई से दूर...’पर हम दाँव लगा कर घसीट ले जाते भाभियों को जिसमें रमेश दद्दा हमारी पूरी मदद करते साजिश रचने में और फिर तो क्या रंग ,क्या पानी ,क्या गोबर ,क्या कीचड़ ...बेचारी भाभियों की वो गत बनती कि बस ! लेकिन बच हम भी नहीं पाते ,भाभियाँ  मिल कर हम में से भी किसी न किसी को घसीट ले जातीं तो बालकों की वानर सेना कूद कर छुड़ा लाती और फिर जमीन पर मिट्टी गोबर के पोते में भाभियों की जम कर पुताई होती....हम सब भी कच्चे गीले फ़र्श पर फिसल कर धम्म- धम्म गिरते ।गाँव में हुड़दंगों की टोली निकलती गली में ढोल लटका गाते बजाते...गाँव में भाँग -दारू -जुए का जोर रहता सो  बहू -बेटियाँ  घर में या अपनी चौपाल पर ही खेलतीं बाहर निकलना मना था ...हाँ क्यों कि सभी की छतें मिली होती थीं तो वहाँ से छुपते -छिपाते सहेलियों और उनकी भाभियों से भी जम कर खेल आते।
दोपहर नहा-धोकर बरोसी से रात को होली से लाई आग निकाल कर उससे आँगन में होली जलाई जाती जिसमें छोटे छोटे उपलों की माला जलाते और घर के सभी सदस्य नए-नकार  कपड़ों की सरसराहट के बीच होली की परिक्रमा करते जाते और गेहूँ की बालियों को हाथ में पकड़ कर भूनते जाते। खाना खाकर फिर शाम होते ही पुरुष लोग एक दूसरे के घर मिलने निकल जाते और हम बच्चे भी निकल पड़ते अपनी - अपनी टोलियों के साथ...सारे गाँव में घूमते जिसके घर जाओ वहाँ बूढ़ी दादी या काकी पान का पत्ता और कसी गोले की गिरी हाथ में रख देतीं ।सबको प्रणाम कर  रात तक थक कर चूर हो लौटते और खाना खाकर लाल -नीले -पीले बेसुध सो जाते रंग छूटने में तो हफ़्ता  भर लग ही जाता था ।
कभी - कभी होली पर हम लोग ननिहाल मुरादाबाद भी जाते थे  पचपेड़े पर नाना जी की लकदक विशाल मुगलई बनावट वाली कोठी जाने का विशेष आकर्षण होती थी जहाँ मामाजी के पाँच बच्चे, मौसी के चार और चार भाई बहन हम सब मिल कर मुहल्ले के बच्चों के साथ खूब होली की मस्ती करते थे।हमें याद है कि कुछ वहीँ के स्थानीय लोग हफ्ते भर तक होली खेलते थे वो हफ्ते भर तक न नहाते थे न ही कपड़े बदलते थे ।ढोल -बाजा गले में लटका कर सबके दरवाजों पर आकर बहुत ही गन्दी गालियाँ गाते थे पर कोई बुरा नहीं मानता था...हमें बहुत बुरा लगता था और हैरानी होती थी कि कोई कुछ बोलता क्यों नहीं उनको ?
आज भी होली पर वे सभी स्मृतियाँ सजीव हो स्मृति-पटल पर फाग खेलती रहती हैं...अब दसियों साल से गाँव और मुरादाबाद नहीं गए...कोई बचा ही कहाँ अब ...जिनसे वो पर्व और उत्सव महकते-दमकते थे लगभग वे सभी तो अनन्त यात्राओं पर निकल चुके हैं ...वो लाड़-चाव, वो डाँट , वो प्यार भरी नसीहतें सब सिर्फ स्मृतियों में ही शेष हैं अब ।
आप सभी स्वस्थ रहें और आनन्द -पूर्वक सपरिवार होली मनाते रहें पर ध्यान रखें किसी का नुकसान न हो भावनाएँ आहत न हों...सद्भावना व प्यार परस्पर बना रहे...आप सभी को होली की बहुत -बहुत शुभकामनाएँ .🙏
फोटो :गूगल से साभार

स्वास्थ्य सबसे बड़ी नियामत—- स्वस्थ रहें जागरूक रहें

समझदारी।
                               
यूँ ही लंदन में एयर पोर्ट पर चलते-चलते न्यूज़ पेपर उठा लिया और एक न्यूज़ पढ़ कर आश्चर्य- चकित हो गई ।कभी कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों के लिए हम भारतीय सीधे पेशेन्ट को इंगलैंड या अमेरिका ले जाने की बात करने लगते थे जैसे कि वहाँ सारे डॉक्टर्स धन्वन्तरि ही हैं और हमारे सब बेवक़ूफ़ ।पर इंसान से गल्ती या लापरवाही कहाँ नहीं हो सकती ? अब तो विदेशों में भी ख़ूब ऐसे केस सुनने में आते हैं और हमारे भी डॉक्टर चिकित्सा के क्षेत्र में किसी से पीछे नहीं हैं ।28 वर्षीय Ms Sarah Boyle जब बेटे को फ़ीड करवा रही थीं तो उन्होंने नोटिस किया कि वो राइट ब्रैस्ट से नहीं पीता था डॉक्टर को शक हुआ कि शायद ट्यूमर की वजह से टेस्ट चेंज हो गया है उसने टैस्ट करवाया तो पता चला कि उसे असाध्य triple negative breast cancer है ।
Royal Stoke University Hospital in Stoke-on-Trent, England में डबल मस्टकटमी और रिकन्स्ट्रक्टिव सर्जरी और सारी कीमोथेरेपी के बाद सात महीने के इलाज के उपरान्त डॉक्टर कहते हैं कि उसे कैंसर नहीं है Sarah ख़ुशी से रो पड़ीं तब डॉक्टर्स ने बताया कि सच तो ये है कि उनको कभी कैंसर था ही नहीं ।वे हैरान रह गईं ।
कीमो की वजह से समाप्त हो गए बाल व आई ब्रो हालाँकि दुबारा आ गए हैं पर शीशे में देखती हैं तो ख़ुद को बदला हुआ सा महसूस करती हैं और आज भी सर्जरी व कीमो के साइड इफ़ेक्ट झेल रही हैं हालाँकि हॉस्पीटल ने अपनी गल्ती मानी है कि बायप्सी की ग़लत रिपोर्ट देने की वजह से ऐसा हुआ और अब वे एक्स्ट्रा प्रिकॉशन्स लेते हैं ये इंसानी गल्ती है और वे डॉक्टर हरसंभव Sarah की मदद के लिए तैयार रहते हैं ।परन्तु जो क्षति Sarah की हो चुकी है उसका क्या ?उसकी पूर्ति कभी नहीं हो सकती । डॉक्टर्स को ये शक था कि शायद अब वो दुबारा माँ नहीं बन पाएगी कीमों की वजह से उनकी प्रजनन क्षमता पर असर पड़ेगा लेकिन अब वो एक और सात माह के बेटे की माँ हैं।
           इस न्यूज़ को प्रकाश में लाने का मेरा एक ही मक़सद है कि इंसानी गल्ती या लापरवाही कहीं पर किसी से भी हो सकती है ऐसे कई केस इंडिया में भी हुए हैं जब किसी को कैंसर नहीं था और उसका ऑपरेशन और कीमोथेरेपी दे दी गई ।कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है उस व्यक्ति के लिए जिसने बिना बातशारीरिक,मानसिक,आर्थिक पीड़ा झेली जिसे वो बीमारी है ही नहीं उसे वो इलाज की सारी मुसीबतें झेलनी पड़ीं किसी एक की गल्ती की वजह से । कीमोथेरेपी कोई साधारण इलाज नहीं है कीमोथेरेपी के साइड इफ़ेक्ट सालों साल के लिए शरीर पर दुष्प्रभाव छोड़ जाते हैं ।
मेरी एक फ्रैंड के हस्बैंड को डॉक्टर ने कैंसर बताया तो वो उनको बॉम्बे ऑपरेशन के लिए ले गईं पर ऑपरेशन से ठीक पहले दूसरी रिपोर्ट आ गई जो निगेटिव थी और वो इस त्रासदी को झेलने से बच गए ।
अत: कैंसर यदि डायग्नोस होता भी है तो मेरा सुझाव है कि अन्य किसी अच्छी पैथोलॉजी लैब से दुबारा अवश्य स्लाइड टैस्ट करवा लें तब इलाज शुरू करें ।जागरूक रहना अच्छा है और दूसरों की गल्तियों व अनुभवों से सीख लेना



मन का कोना—अन्तर्राष्ट्रीय चाय दिवस

               

चाय दिवस भी होता है ये आज पता चला...हमारे तो सारे ही दिवस चाय दिवस ही हैं ...अम्माँ बताती थीं जब वो छोटी थीं तो मामाजी कहीं से चाय की पत्ती लाए थे अंग्रेज मुफ़्त में बाँट रहे थे ...(कुछ लोगों का कहना था कि देश का सत्यानाश करने को 😅)...खैर तो मामाजी ने पूरे ताम- झाम से थ्री पॉट चाय बनाई ...घड़ी देख कर चाय सिंझाई गई...और सबको बड़ी नफासत से पिलाई जो दो कौड़ी की लगी । वो ही अम्माँ बाद में सुबह -सुबह लगभग केतली भर चाय मामा जी के साथ पी जातीं...मामी जी को तो हर घंटे चहास लगती सारे दिन कटोरी में चाय बनातीं ...न जाने क्यों ? दरअसल चाय किस क्वालिटी की है उससे ज़्यादा असर इस बात का होता है कि वो किसके साथ पी जा रही है ...किसी आत्मीय के साथ गुनगुनी बातों संग गर्म चाय के मिठास भरे सिप अन्दर तक तृप्ति व ऊष्मा का अहसास कराते हैं ।गाँव जाने पर चूल्हे पर औटती चाय मिलती काढ़ा टाइप अदरक और गुड़ वाली , धूँए की खुशबू वाली ...बटलोही भर चाय बना कर चूल्हे से अंगारे  निकाल उस पर रख दी जाती और जो आता उसमें से धधकती चाय गिलास या कुल्हड़ में दी जाती...एक दिन मैंने गुड़ की बना कर देखी ...जरा मजा नहीं आया कसैली सी लगी सारी फेंकनी पड़ी । शायद गाँव वाली उस चाय में वो टेस्ट कोई खास गुड़ का था या गाँव की मिट्टी की ख़ुशबू और अपनों के प्यार की मिठास  का ...।दुनिया जहान की एक से एक उम्दा ,तरह- तरह की चाय पीने पर भी कभी-कभी वो ही गाँव वाली चाय की हुड़क उठती है  तो कुल्हड़ मंगा कर उसमें चाय पीकर संतोष करना पड़ता है...गौरव अवस्थी की ये कविता जैसे मेरे ही मन की बात है ।

मुँहबोले रिश्ते

            मुझे मुँहबोले रिश्तों से बहुत डर लगता है।  जब भी कोई मुझे बेटी या बहन बोलता है तो उस मुंहबोले भाई या माँ, पिता से कतरा कर पीछे स...