बुधवार, 30 मई 2018

लाल पीली लड़की --(भाग 1 )





      सब्‍जी लगाकर रोटी का कौर मुंह में रख उसने चबाकर निगलने की कोशिश की, पर तालू से ही सटकर रह गया। पानी के घूँट से उसे भीतर धकेल दूसरा कौर बनाते - बनाते उसका मन अरूचि से भर उठा । आलू-मटर की सब्जी खत्म हो गयी थी और मूली की ही बची थी।

उसे सहसा याद अाया--- जिस दिन मम्‍मी घर में मूली की सब्‍जी बनाती थीं वो चिढ कर खाना ही नहीं खाती थी  चाहे मम्‍मी लाख कहतीं कि उन्‍होंने और भी सब्जियां बनायी हैं। विनय को मूली ही पसंद थी। उसके फायदे वह चट उंगलियों पर गिनवा सकते थे। अवश-सी संयोगिता को सिर्फ सुनना ही नहीं पडता था, हर दूसरे दिन मूली या शलजम की सब्जी बनानी पडती थी।
संयोगिता को सहसा खिसियानी-सी हंसी आ गयी अपनी बेबसी पर। तोंद पर बनियान चढाये आराम से हाथ फिराते, दियासलाई की  तीली से अन्तिम दाढ को मुंह फाडकर कुरेदते विनय ने अधमुंदी  आंखों से उसकी ओर एकटक ताकते तीली सामने कर गौर से देखते हुए पूछा, `क्यों क्या याद आ गया, क्यों हंस रही हो ‘?
वह हडबडा गयी। उसे पता था, जब तक विनय जवाब नहीं पा लेंगे, पूछते जायेंगे।
'क्या बात है आखिर ?'   
'बात क्या है?'
'आखिर पता तो चले ?'
'फिर भी' 
इससे पहले कि यह सिलसिला शुरू होता, वह प्लेट उठाकर चल दी, 'कुछ नहीं काफी देर तक रसोई में  खटर-पटर करती रही। जैसे सभी आम औरतें रात में थके लस्त-पस्त शरीर घसीटती, पसीने, प्याज और मसाले से गंधाती करती है।
कमरे के दरवाजे पर खडे होकर एक पल को दहशत फिर उभरी । पर्दे से झांककर देखा, विनय सो चुके थे। आश्वस्त हाेकर वह धीरे-धीरे कमरे में जाकर आराम-कुर्सी पर पसर गयी। क्या पता यदि विनय जाग रहे होते तो फिर हांक लगाते शायद।
'तुमने बताया नहीं, तुम क्यों हंसी थीं ?'
एक पल को संयोगिता को लगा शायद आज वह यह बर्दाश्त नहीं कर पाती, पर तुरन्त ही वह एक व्यंग्य भरे अाश्चर्य से दग्ध हो उठी कि दस-बारह वर्षों बाद भी आज तक खुद से ऐसे किसी साहस या उत्तेजना की आशा रखती हैं ?
सच ! यह अनुभव उसके लिए एकदम आकस्मिक था और किसी हद तक रोमांचक भी..
                                                                                                                                क्रमश:

4 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार शुरुआत है कहानी की. आज फिर से पोस्ट की क्या?

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  2. आगाज बढ़िया है, आगे का इंतज़ार है. कुछ टाइपिंग की गलतियां दिख रहीं, सुधार लीजिए.

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