शनिवार, 12 मई 2018

बेटियाँ

बेटियां होती हैं कितनी प्यारी
कुछ कच्ची
कुछ पक्की
कुछ तीखी
कुछ मीठी
पहली बारिश से उठती
सोंधी सी महक सी
दूर क्षितिज पर उगते
सतरंगी वलय सी
आंखों में झिलमिलाते तारे
पैरों में तरंगित लहरें
उड़ती फिरती हैं तितली सी
बरसती हैं बदली सी
फिर एक दिन-
आँचल में सूरज-चॉंद
ऑंगन की धूप छॉंव लेकर
कोमल सी पलकों से रचातीं
सुर्ख बेल-बूटे
फिर उजले से आंगन में 
रोपती हैं जाकर
बड़े चाव से
कुछ अंकुरित बीज
समर्पण के
संस्कार के
ममता के 
दुलार के
और बेटियां इस तरह 
रचती हैं
क्षितिज के अरुणाभ भाल पर
आगाज
एक नन्हीं सुबह का !!!

2 टिप्‍पणियां:

  1. एक साथ कई पोस्ट मत डालिये . एक दो दिन पाठकों को पढ़ने का समय दीजिये . बहुत प्रसन्नता हो रही है आपके इस रूप से रूबरू होकर .

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  2. आपने पढा ...सराहा...अच्छा लगा...आगे ध्यान रखूंगी

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