डॉ. उषा किरण
पेंटिंग साइज-30”X 30”
मीडियम—मिक्स्ड मीडिया
टाइटिल -"काहे री नलिनी.....”
घिर रहा तिमिर चहुँ ओर
है अवसान समीप
बंजर जमीनों पर
बोते रहे ताउम्र खोखले बीज
बेमानी गठरियाँ पोटलियाँ
ढोते रहे दुखते कन्धों पर
कंकड़ों को उछालते
ढूँढते रहे मानिक मोती
भटकते फिरे प्यासे मृग से ,
मृगमरीचिकाओं में
तो कभी
स्वाति बूँदों के पीछे
चातक बन भागते रहे
उम्र भर
पुकारते रहे इधर -उधर
जाने किसे-किसे
जाने कहाँ- कहाँ
हर उथली नदी में डुबकी मार
खँगालते रहे अपना चाँद
हताश- निराश खुद से टेक लगा
बैठ गए जरा आँखें मूँद
सहसा उतर आया ठहरा सा
अन्तस के मान सरोवर की
शाँत सतह पर
पारद सा चाँद
गा रहे हैं कबीर
जाने कब से तो
अन्तर्मन के एकतारे पर
"काहे री नलिनी तू कुमिलानी
तेरे ही नाल सरोवर पानी......”!!
— डॉ. उषा किरण
पेंटिंग साइज-30”X 30”
मीडियम—मिक्स्ड मीडिया
टाइटिल -"काहे री नलिनी.....”
घिर रहा तिमिर चहुँ ओर
है अवसान समीप
बंजर जमीनों पर
बोते रहे ताउम्र खोखले बीज
बेमानी गठरियाँ पोटलियाँ
ढोते रहे दुखते कन्धों पर
कंकड़ों को उछालते
ढूँढते रहे मानिक मोती
भटकते फिरे प्यासे मृग से ,
मृगमरीचिकाओं में
तो कभी
स्वाति बूँदों के पीछे
चातक बन भागते रहे
उम्र भर
पुकारते रहे इधर -उधर
जाने किसे-किसे
जाने कहाँ- कहाँ
हर उथली नदी में डुबकी मार
खँगालते रहे अपना चाँद
हताश- निराश खुद से टेक लगा
बैठ गए जरा आँखें मूँद
सहसा उतर आया ठहरा सा
अन्तस के मान सरोवर की
शाँत सतह पर
पारद सा चाँद
गा रहे हैं कबीर
जाने कब से तो
अन्तर्मन के एकतारे पर
"काहे री नलिनी तू कुमिलानी
तेरे ही नाल सरोवर पानी......”!!
— डॉ. उषा किरण
गा रहे कबीर जाने कब से ... अंतर्मन की गहराइयों से लिखा है
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएं
हटाएंरश्मिप्रभा जी आप हमेशा मेरे मन को गहराइयों में जाकर पढ़ लेती हैं बहुत शुक्रिया !
बहुत सुन्दर और सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ...आप हमेशा सराह कर प्रोत्साहित करते हैं !
हटाएंसुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका !
हटाएंजेठ की धूप में एकलौते पाकड़ की छाया सी सुकून देती रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत- बहुत आभार आपका !
हटाएंसहसा उतर आया ठहरा सा
जवाब देंहटाएंअन्तस के मान सरोवर की
सहज स्वाभाविक रचना
बहुत धन्यवाद!
हटाएंजी जरूर....बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं👌👌अति उत्तम कृति मैम
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
हटाएं