`अरे वाह पकौड़ी! वाह मजा आ गया !’
`आओ अनुभा, देखो ये देवेश और बच्चे तुम्हारे ही किस्से सुना- सुना कर हंसा रहे थे अभी ।’
`अरे भाई- साहब एक नहीं जाने कितने किस्से हैं …मेरे कपड़े नहीं पहचानतीं, दो साल हो गए नई गाड़ी आए लेकिन अब तक अपनी गाड़ी नहीं पहचानतीं…और तो और इनको तो अपनी गाड़ी का रंग भी नहीं याद रहता…नहीं मैं शिकायत नहीं कर रहा लेकिन हैरानी की बात नहीं है ये …?
'अरे ….ये तो कमाल हो गया, तुमको अपनी गाड़ी का रंग भी याद नहीं रहता ? अनुभा तुम अभी तक भी उतनी ही फिलॉस्फर हो ?…हा हा हा…!’
अनुभा ने मुस्कुरा कर इत्मिनान से प्लेट से एक पकौड़ी उठा कर कुतरते हुए कहा-
`हाँ नहीं याद रहता…तो इसमें हैरानी की क्या बात है ? अपनी- अपनी प्रायर्टीज हैं भई…कपड़े, गाड़ी, कोठी, जेवर पहचानने में ग़लती कर सकती हूँ भाई - साहब क्योंकि उन पर मैं अपना ध्यान जाया नहीं करती…पर पूछिए, क्या मैंने रिश्ते और अपने फर्ज पहचानने और निभाने में कोई चूक की कभी…? ये सब कैसे याद रहे क्योंकि मेरा सारा ध्यान तो उनको निभाने में ही जाया हो जाता है…खैर…और पकौड़ी लाती हूँ!’
अनुभा तो मुस्कुरा कर खाली प्लेट लेकर चली गई लेकिन कमरे में सम्मानजनक मौन पसरा हुआ छोड़ गई ! भाई- साहब ने देखा देवेश की झुकी पलकों में नेह व कृतज्ञता की छाया तैर रही थी।
— उषा किरण
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (03-09-2021) को "बैसाखी पर चलते लोग" (चर्चा अंक- 4176) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
मीना जी , बहुत आभार
हटाएंबहुत अच्छी लघुकथा है यह उषा किरण जी। जीवन का एक महत्वपूर्ण संदेश अंतर्निहित है इसमें। अभिनन्दन आपका।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका!
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद!
हटाएंबहुत ही सुंदर संदेशप्रद लघुकथा
जवाब देंहटाएंरिश्तों के प्रति अपने फर्ज एवं अपने कर्तव्य के निर्वहन में लगे रहने वाले ऐसी छोटी-मोटी चीजों की परवाह नहीं करते।
धन्यवाद सुधा जी!
हटाएंएक कड़वा सच उकेरती कहानी है. कहानी के अंत में सकारात्मक प्रतिक्रिया देख सुखद लगा.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शिखा !
हटाएंसुंदर लघुकथा । बहुत शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अमृता जी !
हटाएंसारयुक्त लघुकथा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनिल जी !
हटाएंबहुत सुंदर लघुकथा
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका !
हटाएंबहुत कुछ कह दिया लघु कथा ने।
जवाब देंहटाएंसुंदर।
धन्यवाद बहुत-बहुत!
हटाएंजो सामने दिख रहा उसजे तो सभी पहचान लेंगे , लेकिन रिश्तों के प्रति सचेत रहना और उन्हें संभालना आसान नहीं ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सकारात्मक लघु कथा ।
धन्यवाद संगीता जी !
हटाएंबहुत सुन्दर! स्त्री के गृहिणी रूप के प्रति स्नेह व सम्मान की गहन अनुभूति हृदय पर छोड़ गई आपकी यह रचना उषा जी👍!
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार गजेन्द्र जी !
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