सुनो,
तुम मुझसे जैसे चाहो वैसे
जब चाहो तब और जहाँ चाहो वहाँ
आगे जा सकते हो
तुमको जरा भी ज़रूरत नहीं कि
तुम मुझे कोहनी से पीछे धकेलो या कि
धक्का मार कर या टंगड़ी अड़ा कर
गिराओ या ताबड़तोड़ आगे भागो
या अपने नुकीले नाखूनों से
मेरा मुँह नोचने की कोशिश करो या
जहरीले पंजों से मेरी परछाइयों की ही
जड़ों को खोदने की कोशिश करो
तुमको ये सब करने की
बिल्कुल ज़रूरत ही नहीं
क्योंकि मैं तुमको बता दूँ कि
मैं तो तुम्हारी अंधी दौड़ में
कभी शामिल थी ही नहीं
मैं हूँ ही नहीं तुममें से कोई एक नम्बर
मुझे चाहिए नहीं तुम्हारा वो
चमकीला सतरंगी निस्सीम वितान
तुम्हारी जयकारों से गूँजता जहान
वेगवती आँधियाँ, तूफानी आवेग
आँखों, मनों में दहकती द्रोह-ज्वालाएं,दंभ
तुम हटो यहाँ से ,
मुझे कोसने काटने में
अपना वक्त बर्बाद न करो वर्ना देखो
वे जो पीछे हैं आज, कल आगे बढ़ जाएंगे
तुमसे भी बहुत और आगे
पैरों में तूफान और साँसों में आँधियाँ भरे
वे दौड़े आ रहे हैं…तुम भी भागो…
सुनो, मुझसे तो तुम्हारी प्रतिस्पर्धा या
विवाद होना ही नहीं चाहिए
बिल्कुल भी नहीं
मैं तो एक कोने में खड़ी हूँ कबसे
दौड़ने वाले बहुत आगे निकल गए
दूर बुलंदी पर फहरा रही हैं पताकाएँ
गा रही हैं उनका यशगान ….जय हो
मैं भी खुश हूँ बहुत सन्तुष्ट
अपनी बनाई इक छोटी सी धरती और
छतरी भर आकाश से
साँसें चलने भर हवाएं और
दो घूँट पानी भी हैं पल्लू में
आँखें बन्द कर सुन रही हूँ
अपने अन्तर्मन में बजता सुकून भरा नाद
इससे ज्यादा सुन नहीं सकती
सह नहीं सकती वर्ना मेरे माथे की शिराओं में
बहने लगता है लावा और
तलवों से निकलने लगती हैं ज्वालाएं
बहती नदी से एक दिन चुराया था जो
हथेलियों में थामा वो फूल
कभी का मुरझा कर झर चुका…
बस चन्द बीज बाकी हैं
देखूँ,रोप दूँ इनको भी कहीं,
किसी शीतल सी ठौर…
तो फिर चलूँ मैं भी …!!
—उषा किरण🌼🍃
फोटो: गूगल से साभार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें