बुधवार, 19 फ़रवरी 2025

दादी



मैंने अपने बाबा दादी को नहीं देखा । बाबा को तो ताता जी( पापा) ने भी नहीं देखा जब वे कुछ महिने के थे तभी उनका स्वर्गवास हो गया था। ताताजी की परवरिश दादी ने ही की। सारी उम्र उनकी अलमारी में सामने ही दादी की फोटो रहती थी। उनका जिक्र होते ही ताता की आँखें नम हो जाती थीं ।

सुना है कि वे बहुत दबंग व बुद्धिमान थीं। घर में और गाँव में भी सब उनसे डरते थे या कहें लिहाज करते थे। गाँव में यदि कोई मसला होता था तो लोग उनको बुला ले जाते थे और वे जो फैसला करती थीं वो सर्वमान्य होता था। हमारे ताता जी भाइयों में सबसे छोटे थे। गाँव में अम्माँ पहली बहू थीं जो पढ़ी लिखी थीं और अफसर की बेटी थीं । हारमोनियम पर गाने गाती थीं और बहुत सुन्दर थीं। सुना है तब बहुत लम्बे बाल और सुर्ख गाल थे उनके और हमारी दादी की सबसे प्यारी बहुरिया थीं वे।

दादी जब बीमार हुईं तो उन्होंने बता दिया था कि वे पूर्णमासी को चली जाएंगी क्योंकि सपने में बाबा बता गए थे बेटों की सेवा का थोड़ा सुख और ले लो फिर पूर्णमासी को हम साथ ले जाएंगे।

पूर्णमासी वाले दिन सुबह से दादी की तबियत में बहुत सुधार था। सब चैन की साँस ले रहे थे। लेकिन दादी ने शोर मचा दिया कि जल्दी खाना बनाओ और सब लोग जल्दी खा लो। खाना बनते ही सबसे पहले जो युवा सेवक घर के काम के लिए नियुक्त था कहा पहले इसे खिलाओ। बोलीं मैं चली गई तो तुम सब तो रोने-धोने में लगे रहोगे ये बेचारा भूखा रह जाएगा। वो मना करता रहा पर अपने  सामने बैठा कर उसे खूब प्रेम से खिलाया -पिलाया फिर सबको कहा तुम सब भी जल्दी खाओ।

सबके खाना खाने के कुछ देर बाद ही साँस उखड़ने लगी और उन्होंने सदा के लिए अपनी आँखें मूँद लीं । ऐसी पुण्यात्मा थीं हमारी दादी। बेशक मैंने उनको नहीं देखा परन्तु ताउम्र मेरे मन में उनके लिए विशेष सम्मान रहा। उनको मेरा शत- शत नमन🙏

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अभी मीरा ( मेरी पोती) ने दादी कहना सीखा है …ये सम्बोधन मुझे अन्दर तक तृप्त करता है। मुझे दादी नहीं मिलीं पर मैं बनी मीरा की दादी…भगवान का लाख शुक्रिया 🙏😊

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

प्रेम



कह देना

इतना आसान होता है क्या ?

किसी से कह देने से पहले 

जरूरी होता है खुद से कहना

और जब दिल सुनना ही न चाहे

बार- बार एक ही जिद-

प्रेम कहा नहीं,जिया जाता है

प्रेम कहा नहीं,ओढ़ा जाता है

प्रेम कह देने से मर जाता है 

प्रेम पा लेने से सड़ जाता है

प्रेम है तो उसे बहने दो

गुप्तगोदावरी सा अन्तस्थल में…

और यदि तुमको प्रेम है मुझसे 

तो तुम भी न कहना 

प्रेम यदि है तो मौन रहो

कुछ न कहो 

प्रेम में हो जाना चाहता  है मन 

खुद गुलमोहर 

या कि अमलतास !

बस उसे चुपचाप 

खुद पर बीत जाने दो

बिल्कुल किसी मौसम की तरह...!!

    —उषा किरण 🌼🌿

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

चेहरा




अचानक से जब मिलकर कोई

परिचित सा  मुस्कुराता है 

बतियाता है…

तो चौंक जाती हूँ 

उलझन में सोचती हूँ 

कैसे …कैसे पहचाना मुझे 

तब धीरे से याद दिलाती हूँ 

एक चेहरा भी है तुम्हारे पास

मैं हैरानी से शीशे के सामने जाकर

खड़ी हो जाती हूँ 

बादलों की धुंध में डूबे उस चेहरे को

देर तक घूरती हूँ 

और पूछती हूँ खुद से 

क्या वाकई….??

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— उषा किरण 🍃

फोटो; गूगल से साभार