किसी के पूछे जाने की
किसी के चाहे जाने की
किसी के कद्र किए जाने की
चाह में औरतें प्राय:
मरी जा रही हैं
किचिन में, आँगन में, दालानों में
बिसूरते हुए
कलप कर कहती हैं-
मर ही जाऊँ तो अच्छा है
देखना एक दिन मर जाऊँगी
तब कद्र करोगे
देखना मर जाऊँगी एक दिन
तब पता चलेगा
देखना एक दिन...
दिल करता है बिसूरती हुई
उन औरतों को उठा कर गले से लगा
खूब प्यार करूँ और कहूँ
कि क्या फर्क पड़ने वाला है तब ?
तुम ही न होगी तो किसने, क्या कहा
किसने छाती कूटी या स्यापे किए
क्या फ़र्क़ पड़ने वाला है तुम्हें ?
कोई पूछे न पूछे तुम पूछो न खुद को
उठो न एक बार मरने से पहले
कम से कम उठ कर जी भर कर
जी तो लो पहले
सीने पर कान रख अपने
धड़कनों की सुरीली सरगम तो सुनो
शीशें में देखो अपनी आँखों के रंग
बुनो न अपने लिए एक सतरंगी वितान
और पहन कर झूमो
स्वर्ग बनाने की कूवत रखने वाले
अपने हाथों को चूम लो
रचो न अपना फलक, अपना धनक आप
सहला दो अपने पैरों की थकान को
एक बार झूम कर बारिशों में
जम कर थिरक तो लो
वर्ना मरने का क्या है
यूँ भी-
`रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई !’
—उषा किरण🍂🌿
#अन्तर्राष्ट्रीयमहिलादिवस
पेंटिंग- लक्ष्मण रेखा( उषा किरण , मिक्स मीडियम, 30”x30”
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 12 मार्च 2025 को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
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