मंगलवार, 10 जुलाई 2018

"ज्वाला देवी मंदिर “


बृजेश्वरी देवी मंदिर से चल कर लगभग एक घंटे में हम ज्वालामुखी मंदिर पहुंच गए ड्राइवर ने कहा आप यहां से ऑटो कर लें तो सीधे ऊपर पहुंचा देगा हमने एक ऑटो वाले से बात की और उसने हमें ऊपर पहुंचा दिया प्रसाद लेकर हम मंदिर में पहुंचे बहुत भीड़ थी किसी तरह अंदर जाकर दर्शन किए ।
ज्वाला देवी को ज्वालामुखी ,नगरकोट और जोतावाली मॉं का मंदिर भी कहा जाता है यहां पर मां की पावन ज्योति एक पहाड़ी चट्टान से प्रज्वलित हुई है। इनकी पूजा मॉं की ज्योतियों में की जाती है मान्यता है कि यहां दर्शन करने से सभी कामना पूरी होती है पाप नष्ट होते हैं और मुक्ति मिलती है ।
कांगड़ा घाटी से तीस कि०मी० दक्षिण मेंस्थित है यह मंदिर इक्यावन शक्तिपीठों में शामिल है ...इस स्थान पर सती मॉं की जीभ गिरी थी इस स्थान पर मॉं के दर्शन ज्योति के रूप में होते हैं इसमें नौ ज्योतियां प्रज्वलित  हैं इनको महाकाली,अन्नपूर्णा ,चंडी,हिंगलाज,विंध्यवासिनी,महालक्ष्मी,महासरस्वती,अंबिका,अंजी-देवी के नाम से जाना जाता है ! 
मंदिर के पास ही एक जगह 'गोरख डिब्बी ‘है देखने पर लगता है कि गर्म पानी है ,छूने में ठंडा 
लगता है इस मंदिर का प्राथमिक निर्माण राजा भूमिचन्द ने करवाया था बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचन्द ने 1835 में इसका पुनर्निर्माण करवाया ।
इस मंदिर से जुड़ी किंवदन्ति है कि एक ग्वाले की गाय दूध नहीं देती थी एक दिन जंगल में उसका पीछा किया तो ग्वाले ने देखा कि गाय सारा दूध एक दिव्य कन्या को पिला देती है ग्वाले ने यह बात राजा को बताई राजा ने सत्य की जांच करने के बाद उस स्थान पर मंदिर बनवा दिया।एक और कथा प्रचलित है कि भक्त ध्यानु मॉं का परम भक्त था एक बार वह मॉं के दर्शन के लिए भक्तों के साथ जा रहा था रास्ते में उन्हें मुगल सेना ने पकड़ लिया अकबर ने पूंछा कि 'तेरी मॉं में क्या शक्ति है ‘तो ध्यानु ने कहा कि `मेरी मॉं संसार की रक्षा करने वाली है ‘अकबर ने उसके घोड़े का सिर कलम करके कहा `किअगर तेरी मॉं में शक्ति है तो घोड़े को फिर से जिंदा करके दिखाए ‘कहते हैं कि ध्यानु की विनती से मॉं ने घोड़े का सिर फिर से जोड़ दिया ,यहां बिना तेल बाती बरसों से ज्योति जल रही हैं ...अकबर ने इस ज्योति को बुझाने की भी बहुत कोशिश की पर नाकाम रहा तब अकबर ने श्रद्धावनत हो सोने का छत्र चढाने की कोशिश की पर वह छत्र किसी दूसरी धातु में परिवर्तित हो गया वह छत्र आज भी मंदिर में मौजूद है ।अंग्रेजों नेभी काफी कोशिश की कि इस ज्योति का इस्तेमाल बिजली बनाने के काम में लिया जाए पर असफल रहे ।लोगों का कहना है यह ज्वाला चमत्कारी रूप से निकलती है प्राकृतिक रूप से नहीं वर्ना तो यहां मंदिर की जगह बड़ी -बड़ी मशीनें लगी होतीं ।
दर्शन करके हमने ऑटो वाले को फोन किया वो हमें लेकर नीचे आ गया घड़ी देखी मात्र दस बजे थे हमने  गाड़ी में बैठ कर ड्राइवर से पूंछा कि `पास में और कोई देवी हैं ‘उसने कहा `हां बगुलामुखी देवी हैं आधे घंटे में पहुंच जाएंगे ‘हमने कहा `ले चलो पर प्यास और भूख लगी है तो पहले हमें किसी होटल या रस्टोरेन्ट में ले चलो ‘उसने कहा कि `ठीक है मंदिर की तरफ ही चलते हैं रास्ते में किसी ढाबे पर रोक कर खा पी लेंगे ‘हमने कहा `चलो ठीक है ‘रास्ते में एक छोटा सा साफ सुथरा ढाबा मिला हम उतर गए मैंने पूंछा कि `खाने को क्या मिलेगा ‘उसने कहा `खाना ‘इतनी सुबह हमारा मन खाने का नहीं हुआ उसको कहा'आलू का परांठा और चाय बना दो ‘उसने मना कर दिया बोला 'नहीं नहीं हम परांठा नहीं बनाते बस रोटी बना देंगे वर्ना तो हम बस चावल ही देते हैं हमने कहा'ठीक है फिर वही खिलाओ भई ‘हम बैठ गए ड्राइवर को भी बुला लिया वो तीन थाली लाया दाल ,कढी,चावल, रोटी थोड़ा बहुत खा पीकर पूंछा कितने रुपये ? उसने कहा `सौ रुपये ‘तो मैं उसका मुंह देखने लगी इतना सस्ता ? खैर सौ पर कुछ एक्स्ट्रा पैसे रख कर हम आगे चले । 
कान्ता जी ने आम पापड़ निकाला और हम उसे चटकारे लेकर खाने लगे ड्राइवर ने पहाड़ी गाने लगा दिए कान्ता जी स्वयम् चम्बा से हैं तो वो मुझे उन गानों का मतलब समझाती रहीं ..कांगड़ी बोली पंजाबी बोली से बहुत मिलती जुलती है...कान्ता जी से पूंछ कर एक हिमाचली गाना लिखा...
"पारलिया बनिया मोर जे बोले
अम्मा पूछदी सुण धिए मेरिए 
दुबली इतनी तू किया करी होई हो
पारली बणिया मोर जे बोले हो
अम्माजी ने मोरे निंदर गवाई हो
सद ले संदूकी जो सद ले शकारी जो
धीए भला एह तों मोर मार गिराणा हो
मोर नी मारणां मोर नी गवाणा हो
ओह अम्मा जी एहतां मोर पिंजरे पवाणा हो...”
ठंडी पहाड़ी हवा,आम पापड़ और पहाड़ी लोक संगीत  और भक्ति भाव ने मिल कर मन प्रसन्नता से भर दिया... और हम मां की जय बोल आगे के लिए प्रस्थान कर गए...

#कांगड़ाहिमाचलप्रदेशयात्रा- 3









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