तेरे नन्हें पावों की रुनझुन से
झंकारित
तेरी हथेलियों के बूटों से
अलंकृत
तेरी बातों की गुनगुन से
गुँजारित
तेरे पहने रंगों से
झिलमिल
और तेरे हाथों की
चूड़ियों से खनकता है
मेरा घर - आँगन
आँगन के नीम पर झूलते-झूमते
जोर से खिलखिलाती है
और ऊंचा पापा
और ऊँचा
मैं लगा देता हूँ
पूरा जोर अपनी बाजुओं का
अपनी हसरतों का
चाहता हूँ तू हाथ बढ़ा कर
तोड़ लाए अपना इन्द्रधनुष
पर कहीं मन में सहम जाता हूँ मैं
जब देखता हूँ आकाश में झपटते
गिद्धों और चील कौओं को
हाथों का जोर
और मन का उत्साह थक जाता है
मैं चाहता तो हूँ तेरे हौसलों को
परवाज देना
पर मेरे हाथ इतने भी लम्बे नहीं
सुन मेरी बच्ची
तुझे खुद बनना होगा
अपना शक्ति -पुँज
गढ़ना होगा स्वयम्
अपना रक्षा- कवच
और बढ़ानी होगी खुद अपनी पींगें
मैं तो हूँ न साथ सदा
बन कर तेरा
धरती और आकाश
फिर बढ़ाना हाथ और तोड़ लाना
फलक से चमकते सितारे
और सूरज, चाँद
सारे के सारे.....!!!
— उषा किरण
फोटो : पिन्टरेस्ट के सौजन्य से
बहुत सुंदर सृजन।🌻❤️
जवाब देंहटाएंशिवम् जी धन्यवाद
हटाएंबहुत सुन्दर और मार्मिक।
जवाब देंहटाएंरूप-चतुर्दशी और धन्वन्तरि जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपको भी शुभकामनाएँ...धन्यवाद
हटाएंमार्मिक रचना
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