मंगलवार, 17 नवंबर 2020

खिलाड़ी



रे खिलाड़ी 

ये कैसी बिसात 

ये कैसी बाजी..?


तन का तेल 

रूह की बाती 

सब कुछ जला

सब निछावर कर

औरतें हरती है तमस

लाती है उजास

और उस उजास में 

देखभाल कर

तुम बिछाते हो

बिसात !


बिछी बिसात पर 

बिठाती हैं वे 

पूरे दिल से

लूडो की गोटियाँ 

सब रंग की

लाल, पीली, नीली, हरी

भाग्य की डिब्बी में डाल

टिकटिकाती रहती है 

पासा  ताउम्र !


तीन- दो- पाँच

या छै: पाकर ही

रहती है खूब मगन 

और चतुर - सुजान

मंजे खिलाड़ी 

तुम बिठाते हो

उसी बिसात पर 

गोटियाँ शतरंजी

खेलते हो चालें शातिर...!


वो जान ही नहीं पाती 

इस भेद को

साज़िशों के तहत

एक- एक कर

उसकी सारी गोटियाँ

पीट दी जाती हैं !


प्यार के नाम पर 

उसके हिस्से आते हैं

जाने कितने भ्रम 

कितने झूठ 

कुछ धूप

और कुछ घुप्प अँधेरे !


काँच पर चमकते 

सतरंगी आभास को 

हर्षित हो

इन्द्रधनुष जान 

आँजती है आँखों में !


शह और मात के बीच 

फंसी औरतें

हाशियों पर बैठी

पाले रहती हैं 

जाने कितने भ्रम 

अनगिनत ...!!

                           - उषा किरण


फोटो . पिन्टरेस्ट से साभार

3 टिप्‍पणियां: