किसी के पूछे जाने की
किसी के चाहे जाने की
किसी के कद्र किए जाने की
चाह में औरतें प्राय:
मरी जा रही हैं
किचिन में, आँगन में, दालानों में
बिसूरते हुए
कलप कर कहती हैं-
मर ही जाऊँ तो अच्छा है
देखना एक दिन मर जाऊँगी
तब कद्र करोगे
देखना मर जाऊँगी एक दिन
तब पता चलेगा
देखना एक दिन...
दिल करता है बिसूरती हुई
उन औरतों को उठा कर गले से लगा
खूब प्यार करूँ और कहूँ
कि क्या फर्क पड़ने वाला है तब ?
तुम ही न होगी तो किसने, क्या कहा
किसने छाती कूटी या स्यापे किए
क्या फ़र्क़ पड़ने वाला है तुम्हें ?
कोई पूछे न पूछे तुम पूछो न खुद को
उठो न एक बार मरने से पहले
कम से कम उठ कर जी भर कर
जी तो लो पहले
सीने पर कान रख अपने
धड़कनों की सुरीली सरगम तो सुनो
शीशें में देखो अपनी आँखों के रंग
बुनो न अपने लिए एक सतरंगी वितान
और पहन कर झूमो
स्वर्ग बनाने की कूवत रखने वाले
अपने हाथों को चूम लो
रचो न अपना फलक, अपना धनक आप
सहला दो अपने पैरों की थकान को
एक बार झूम कर बारिशों में
जम कर थिरक तो लो
वर्ना मरने का क्या है
यूँ भी-
`रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई !’
—उषा किरण🍂🌿
#अन्तर्राष्ट्रीयमहिलादिवस
पेंटिंग; सुप्रसिद्ध आर्टिस्ट प्रणाम सिंह की वॉल से साभार
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत आभार!
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.03.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4365 दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति सभी चर्चाकारों की हौसला अफजाई करेगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
बहुत आभार!
हटाएंवाह-वाह....!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना|
बहुत आभार !
हटाएंवाह ! बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी
हटाएंमार्मिक सृजन।
जवाब देंहटाएंनारी मन में आजीवन चलने वाले अंतर द्वन्द का सराहनीय चित्रण। सच मरी जाती हैं वे।
किसी के पूछे जाने की
किसी के चाहे जाने की
किसी के कद्र किए जाने की
चाह में औरतें प्राय:
मरी जा रही हैं... वाह।
ऐसी ही एक लघुकथा मैंने भी लिखी है वज्राहत मन आप पढ़ेंगी मुझे ख़ुशी होगी।
सादर
जी आपकी कहानी ज़रूर पढ़ना चाहूँगी…मेरी कविता की सराहना कर उत्साह बढ़ाने का बहुत शुक्रिया 🙏
हटाएंबेहद खूबसूरती से टांके गए शब्द...वाह उषा जी...सीने पर कान रख अपने
जवाब देंहटाएंधड़कनों की सुरीली सरगम तो सुनो
शीशें में देखो अपनी आँखों के रंग
बुनो न अपने लिए एक सतरंगी वितान
और पहन कर झूमो
स्वर्ग बनाने की कूवत रखने वाले
अपने हाथों को चूम लो...वाह
अलकनन्दा जी आपका दिल से बहुत आभार…🙏
हटाएं