शनिवार, 2 दिसंबर 2023

यादों के गलियारों से

 


अम्माँ- ताता नैनीताल की लास्ट पोस्टिंग के बाद  मैनपुरी में अपने चाव से बनवाए सपनों के घर में जाकर बस गए।मैनपुरी के पास ही हमारा गाँव था तो वहाँ रह कर नाते- रिश्तेदारों से मिलना- जुलना होता रहता और खेती- बाड़ी पर भी निगाह रहती। कुछ सालों बाद अम्माँ को लगने लगा था कि बच्चों से बहुत दूर हो गए और वो ज्यादा समय बच्चों के साथ रहने को तड़पती थीं । हम सब छुट्टियों में बारी-बारी या एक साथ भी जाते रहते।वो चाहने लगीं कि मैनपुरी का मकान बेच कर मेरठ या दिल्ली जाकर रहें। क्यों कि उनका व ताताजी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था और मेडिकल सुविधाओं का मैनपुरी में बहुत अभाव था, लेकिन ताताजी इसके लिए तैयार नहीं थे। 


कभी-कभी वे कुछ दिनों के लिए हम लोगों के पास रहने आ जाती थीं, तब वे बहुत सुकून महसूस करतीं। उनको खूब बातें करने का शौक था। मेरठ में आइस्क्रीम विद सोडा , पाइनएप्पल आइस्क्रीम, गोकुल की बेड़मी पूड़ी व आलू की सब्ज़ी बहुत पसन्द आते पर हम डर- डर कर कम ही खिलाते- पिलाते क्योंकि वे हार्ट की व शुगर की पेशेन्ट थीं। 


उनके अचानक हार्ट फेल से जाने के बाद न जाने कितने अफ़सोस हम लोगों को घेरे रहे कि ये करते वो खिलाते, यहाँ घुमा लाते, कुछ और सुन लेते उनकी बातें ।


वे बहुत ही उदासी  भरे दिन थे।अम्माँ जा चुकी थीं और उनके जाते ही घर श्रीहीन हो बिखर गया। ताताजी भैया के पास आकर रहने तो लगे थे , दीदी दूसरे मकान में दिल्ली शिफ़्ट हो गईं । लेकिन धीरे-धीरे ताताजी घोर डिप्रेशन में चले गए। उन्होंने इवनिंग वॉक पर जाना बन्द कर दिया और डॉक्टर की सलाह पर जो ब्रांडी लो ब्लड प्रैशर के लिए दवा की तरह थोड़ी सी लेते थे उसकी मात्रा बढ़ गई। बात वैसे ही कम करते थे अब और चुप्पी में घिर गए। खाने-पहनने का शौक समाप्त सा हो गया। 


भैया सारे दिन कोर्ट और उसके बाद क्लाइन्ट की मीटिंग से थका- हारा रात तक आता भी तो बहुत कम देर उनके  साथ बैठ पाता क्योंकि तब तक उनके सोने का टाइम हो जाता था।


भैया का छोटा बेटा पृथ्वी जरूर सारे दिन बाबा- बाबा करता उनके कमरे में चक्कर लगाकर उनका मन बहलाता रहता था। भैया ने बहुत कोशिश की कि सोसायटी में रहने वाले बुजुर्गों से मेलजोल करवा दे पर उन्होंने साफ मना कर दिया।


हम सब भाई - बहन बहुत परेशान थे कि किस तरह उनको खुशी दें और अंधेरों से बाहर निकालें। मनोचिकित्सक को दिखाएं पर सब प्रयासों में असफल होने पर हताश- निराश हो दुखी होते।आज वो नहीं हैं तो बहुत दुखी होता है मन कि काश उनके जीवन की सन्ध्या इतनी उदासी से भरी न होती।


अम्माँ को प्रस्थान किए लगभग सत्ताइस और ताताजी को बीस साल हो गए आज लगभग मैं भी उसी उम्र के आसपास हूँ । ताताजी की स्थिति याद करके पूरी कोशिश करती हूँ कि  खुशी का हर पल अपने नाम करूँ और उसके अहसास बच्चों के साथ शेयर करूँ । 


बच्चे बढ़िया खिलाते-पिलाते हैं तो मैं खूब चाव से ललक से खाती हूँ, ये नहीं सोचती कि कोई लालची कहेगा।घुमाने के प्रोग्राम बनाते हैं तो मना नहीं करती। खूब देश- विदेशों की यात्राएं करवा दी हैं बच्चों ने, वर्ना टीचिंग में हमारे लिए इतना एफोर्ड करना मुश्किल था। पहली विदेश यात्रा मेरे पति को हमारे दामाद ने करवाई, वे अपने साथ लंदन ले जाना चाह रहे थे तो वे ख़ुशी- खुशी उनके साथ गए बिना बेटे , दामाद के फर्क का विचार किए। 


जितना हो सकता है अपनी काया , देश और उम्र के हिसाब से फैशन करती हूँ । बेटी और बहू मुझे बढ़िया ब्रान्डेड परफ़्यूम, कपड़े, बैग, मेकअप और ब्यूटी टिप्स देती हैं तो सब यूज व फॉलो करती हूँ । हम दोनों नए जमाने की नई जानकारियों, म्यूजिक , फिल्म, साहित्य, गार्डनिंग व न्यू लाइफ़ स्टाइल में पूरी दिलचस्पी लेते हैं। मनपसन्द चाट, आइस्क्रीम , थाई, मैक्सीकन, चाइनीज की नई रेसिपी ट्राई करते हैं और टेस्ट डेवलप करते हैं ।


हैल्थ चैकअप, कोलेस्ट्रॉल,विटामिन, कैल्शियम जैसा वो कहते हैं मैं और मेरे पति सबका ध्यान रखते हैं…मैं चाहती  हूँ कि बच्चों को हमारे जाने के बाद ये अफसोस न रहे कि वे हमारे लिए कुछ कर न सके।बेटे- बहू विदेश में हैं पर दूरी का अहसास ही नहीं होता। मीरा रोज वीडियो कॉल पर मीठी- मीठी बातों से दादा- दादी का मन बहलातीं हैं।


अब तक जीवन में जो भी सुख- दुख झेले पर अब मैं चाहती हूँ कि उन परछाइयों से परे जब तक हम हैं स्वस्थ व प्रसन्न रहें जिससे हमारे बाद में बच्चे हमें इसी रूप में  याद करें।

                                               —उषा किरण 

फोटो: Gold Coast Road, Melbourne( Australia)

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