ताना बाना
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सोमवार, 26 नवंबर 2018
परछाईं
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थक जाती है कभी अपनी ही परछाईं हमसे दौड़ती रहती है सारा दिन करती है पीछा कभी हमारी हसरतों का हमारी प्यास का तो कभी हमारी आस का हमारे...
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शब्द
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आसमान की खुली छाती पर नन्हीं उँगलियों से पंजों के बल उचक कर लिखती रहती शब्द अनगिनत तो कभी बाथरूम की प्लास्टर उखड़ी दीवारों ...
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सोमवार, 27 अगस्त 2018
राखी
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लो बांध लिए बहनों ने भाइयों की कलाइयों पर प्यार के ,आशीष के रंगबिरंगे धागे... मना कर उत्सव पर्व लौट गए हैं सब अपने-अपने घर रोकी हु...
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शनिवार, 18 अगस्त 2018
...ढ़लने लगी सॉंझ
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एक और अटल जी की कविता जिस पर यह पेंटिंग बनाई थी एग्जीबीशन के लिए... जीवन की ढलने लगी सांझ उमर घट गई डगर कट गई जीवन की ढलन...
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एक बरस बीत गया
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2000 में आई फ़ैक्स,दिल्ली में अटल जी की कविताओं पर “कृति आर्टिस्ट एसोसिएशन “के तत्वाधान में चित्र कला प्रदर्शनी की थी तब बनाई थी उनकी ...
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शुक्रवार, 17 अगस्त 2018
नमन
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यूँ तो जाने को ही आता है हर शख्स यहॉं पर... ये कैसा जाना कि बसजाना हर दिल में ..... -भावपूर्ण...
बुधवार, 8 अगस्त 2018
परिचय
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पूंछते हो कौन हूँ मैं क्या कहूँ कौन हूँ मैं शायद... भगवान का एक डिफेक्टिव पीस जिसमें जल,आकाश,हवा तो बहुत हैं पर आग और मिट्टी तो...
8 टिप्पणियां:
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