ताना बाना
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शुक्रवार, 31 मई 2019
कविता— गाँधारी
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जब वे किसी अस्मिता को रौंद जिस्म से खेल विजय-मद के दर्प से चूर लौटते हैं घरों को ही तब चीख़ने लगते हैं अख़बार दरिंदगी दिखाता काँप...
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रविवार, 19 मई 2019
कविता —"सभ्य औरतें”
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चुप रहो ख़ामोश रहो सभ्य औरतें चुप रहती हैं कुलीन स्त्रियाँ लड़ती नहीं भले घर की औरतें शिकायत नहीं करतीं सहनशीलता ही औरत का गहना औ...
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रविवार, 12 मई 2019
कविता- "रूट-कैनाल”
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बरसों से दर्द पाले, दुखते दाँत को- पहले बेहोश किया उसने फिर नुकीले नश्तरों से विदीर्ण कर दीं सारी रूट्स, अब दाँत डैड था दर्द का नामो...
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कविता —" सुन रही हो न “
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सुबह-सुबह रसोई से उठती ताज़े नाश्तों की सुगन्ध को चीर ए सी की लहराती शीत तरंगों और बाथरूम से उठती मादक सुगन्धों को फ़लाँग , पथरीली दी...
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रविवार, 24 मार्च 2019
कविता — " धूप”
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धूप ~~~ सुनहरी लटों को झटक पेड़ों से उछली खिड़की पर पंजे रख सोफ़े पर कूदी और वहाँ से छन्न से कार्पेट पर पसर गई हूँ...उधम...
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गुरुवार, 21 मार्च 2019
स्जमृति रेखाँकन— जब फागुन रँग झमकते थे
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आज हमारी मित्र वन्दना अवस्थी दुबे ने होली के संस्मरण लिखने को कहा है तो याद आती है अपने गाँव औरन्ध (जिला मैनपुरी) की होली जहाँ पूरा ...
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सोमवार, 18 फ़रवरी 2019
कविता— अश्वत्थामा
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~अश्वत्थामा ~ ~~~~~~~ कहो तो पाँचाली अबोध सोए पड़े सुकुमार,अबोध पुत्रों के हन्ता अश्वत्थामा को क्यों क्षमा किया तुमने ? क...
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