सोमवार, 14 मई 2018

सलीका

घिरे आते तिमिर को उसने
डर कर धूरते कहा
“क्या होगा कल बच्चों का”
उसके कमजोर कांपते हाथों को
अपनी पसीजी हथेली में थाम
सजल नयन मैंने कहा-
“वही... जो होना है 
क्‍या सोचते हो तुम
क्‍या ये तुमसे पलते हैं “!
उंगली उठाकर मैंने अनंत को देखा
फिर, थोडा सा हंसकर कहा
“यह सब पहली बार तो नहीं 
न जाने कितनी नावों में
कितनी बार... “?
उसने आसमानी उंचाइयों को
अदब से देखा
अाश्‍वस्‍त हो मुस्‍कुराया
और इस तरह
सारी उम्र जीने का सलीका तुमसे सीख कर भाई
तुम्‍हें मरने का सलीका 
सिखा रही थी
मैं !!!




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