पीला रंग पहले पसन्द नहीं था मुझे
पीला जैसे-
झुलसाती जेठ की धूप
बीमार थकी आँखें
तीखी सी पीड़ा
जलाता ताप तन-मन का
सब पीला- पीला…!
फिर अचानक मेरी दोस्ती हो गई पीले से-
देखा जब गुलमोहर की संगत में झूमता
ख़ुशमिज़ाज अमलतास
ताली बजाकर झूमते सरसों के खेत
पीले शर्मीले नाजुक गुलाब
शरद की राहतों भरी कुनकुनी सी
पीली सुनहरी धूप
और पीताम्बर भी कान्हा का…!
मुग्ध हो कहा पीले से-
माफ कर दो मुझे
बहुत अनादर किया तुम्हारा
हँस कर कहा उसने-
कोई बात नहीं
आदत है हम रंगों को…
गिरगिट तो यूँ ही हैं बदनाम
हम तो रोज ही देखते हैं
रंग बदलते इंसानों को
चलो एक और सही…!
—उषा किरण
-पीले रंग की नापसंदी से पसंदीदा बनने की कहानी और इंसान का गिरगिरिट की तरह रंग बदलना ...... काफी करारा मारा है ।।
जवाब देंहटाएंखुद को ही लपेटा है वैसे….बहुत शुक्रिया 😊
हटाएंदिनांक ---- 17 मई
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चुनने का बहुत शुक्रिया 🙏
जवाब देंहटाएंवाह!गज़ब कहा 👌
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत आभार आपका अनीता जी !
हटाएंवाह ! यदि रंगों को जुबान होती तो वे भी पसंद नापसंद जाहिर करते अपनी।
जवाब देंहटाएंवैसे हर रंग बदलने में माहिर इंसान रंगों के मामले में बड़ा नखरे करता है।
सही कहा आपने…बहुत शुक्रिया!
हटाएंसही उदाहरण दिया गिरगिट तो यूँ ही बदनाम है, इंसान तो उससे ज्यादा मुखौटे लगाए रहता है। सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंरेखा जी बहुत शुक्रिया कविता को मन से पढ़ने के लिए 😊
जवाब देंहटाएंमेरी रचना का चयन करने के लिए हृदय से आभार !
जवाब देंहटाएंपसंद नापसंद भी मनोदशा पर निर्भर करता है हमारे ...रंग ने भी सही कहा गिरगिट से रंग बदलते हैं हम इंसान...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन।
बहुत धन्यवाद सुधा जी 😊
हटाएंपीला रंग हो या नीला आँखों को जो भा जाये ,मन को जो लुभा जाये वही श्रेष्ठ लगता है।
जवाब देंहटाएंगिरगिट भी सोचते होंगे न क्या सचमुच मनुष्य हमारी तरह रंग बदलते हैं या हम गिरगिट मनुष्यों से बेहतर हैं...।
सुंदर,सारयुक्त अभिव्यक्ति ।
सादर।
सच है , हमारे टेस्ट बदलते रहते हैं …गिरगिट से ज्यादा इंसान रंग बदलता है…शुक्रिया!
हटाएंकहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना... बहुत ही बढ़िया सृजन।
जवाब देंहटाएंअमृता जी आपने एक ही पंक्ति में सब कह डाला…शुक्रिया
हटाएंसंयोग ही है कि आज सुबह की सैर के मध्य अमलताश का पीत पाँवड़ा देखा तो कुछ यही भाव उपजे।रोचक और मनभावन रचना उषा जी।हार्दिक बधाई 🙏🙏🌺🌺
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंरेणु जी, वाकई आजकल सड़क किनारे अमलतास की छटा देखने लायक है ….पीले पाँवडों का सौन्दर्य दर्शनीय है….बहुत आभार 😊
हटाएंवाह वाह!सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंओंकार सिंह जी बहुत धन्यवाद!
हटाएं