ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

सोमवार, 16 मई 2022

पीला

 



पीला रंग पहले पसन्द नहीं था मुझे 

पीला जैसे-

झुलसाती जेठ की धूप

बीमार थकी आँखें

तीखी सी पीड़ा 

जलाता ताप तन-मन का

सब पीला- पीला…!


फिर अचानक मेरी दोस्ती हो गई पीले  से-

देखा जब गुलमोहर की संगत में झूमता

ख़ुशमिज़ाज अमलतास 

ताली बजाकर झूमते सरसों के खेत

पीले शर्मीले नाजुक गुलाब

शरद की राहतों भरी कुनकुनी सी

पीली सुनहरी धूप

और पीताम्बर भी कान्हा  का…!


मुग्ध हो कहा पीले से-

माफ कर दो मुझे 

बहुत अनादर किया तुम्हारा 

हँस कर कहा उसने-

कोई बात नहीं

आदत है हम रंगों को…

गिरगिट तो यूँ ही हैं बदनाम 

हम तो रोज ही  देखते हैं 

रंग  बदलते इंसानों को

चलो एक और सही…!

                            —उषा किरण

22 टिप्‍पणियां:

  1. -पीले रंग की नापसंदी से पसंदीदा बनने की कहानी और इंसान का गिरगिरिट की तरह रंग बदलना ...... काफी करारा मारा है ।।

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    1. खुद को ही लपेटा है वैसे….बहुत शुक्रिया 😊

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  2. मेरी रचना को चुनने का बहुत शुक्रिया 🙏

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  3. वाह ! यदि रंगों को जुबान होती तो वे भी पसंद नापसंद जाहिर करते अपनी।
    वैसे हर रंग बदलने में माहिर इंसान रंगों के मामले में बड़ा नखरे करता है।

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    1. सही कहा आपने…बहुत शुक्रिया!

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  4. सही उदाहरण दिया गिरगिट तो यूँ ही बदनाम है, इंसान तो उससे ज्यादा मुखौटे लगाए रहता है। सुंदर रचना।

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  5. रेखा जी बहुत शुक्रिया कविता को मन से पढ़ने के लिए 😊

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  6. मेरी रचना का चयन करने के लिए हृदय से आभार !

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  7. पसंद नापसंद भी मनोदशा पर निर्भर करता है हमारे ...रंग ने भी सही कहा गिरगिट से रंग बदलते हैं हम इंसान...
    बहुत सुन्दर सृजन।

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  8. पीला रंग हो या नीला आँखों को जो भा जाये ,मन को जो लुभा जाये वही श्रेष्ठ लगता है।
    गिरगिट भी सोचते होंगे न क्या सचमुच मनुष्य हमारी तरह रंग बदलते हैं या हम गिरगिट मनुष्यों से बेहतर हैं...।
    सुंदर,सारयुक्त अभिव्यक्ति ।

    सादर।

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    1. सच है , हमारे टेस्ट बदलते रहते हैं …गिरगिट से ज्यादा इंसान रंग बदलता है…शुक्रिया!

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  9. कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना... बहुत ही बढ़िया सृजन।

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    1. अमृता जी आपने एक ही पंक्ति में सब कह डाला…शुक्रिया

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  10. संयोग ही है कि आज सुबह की सैर के मध्य अमलताश का पीत पाँवड़ा देखा तो कुछ यही भाव उपजे।रोचक और मनभावन रचना उषा जी।हार्दिक बधाई 🙏🙏🌺🌺

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    1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. रेणु जी, वाकई आजकल सड़क किनारे अमलतास की छटा देखने लायक है ….पीले पाँवडों का सौन्दर्य दर्शनीय है….बहुत आभार 😊

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  11. वाह वाह!सुंदर अभिव्यक्ति

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