ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

बुधवार, 24 मई 2023

कोकून



क्या कभी सोचा है ?

वे जो अपने कोकून में बन्द हो बुनते रहते हैं गुपचुप रेशमी ताना- बाना

ताकि हम दो पल मिलजुल बैठ सकें सुकून से  रेशमी अहसास के तले

वे जुटाते रहते हैं अपनी ममता, अपना वक्त, अपनी कोमल सम्वेदनाएं

वे गुपचुप तुम्हारी धूप चुरा कर शीतल फुहार में बदल देना चाहते हैं 

उनका मकसद ही है कुछ रेशम-रेशम बुनना, रेशम-रेशम हो जाना…

क्यों डालना है उनको आजमाइश में ?

रहने दो न उनको अपने रेशमी कोकून में गुम


पर नहीं…तुम तो तुम हो 

तुम उनके बुने रेशमी धागों को आजमाते हो…तोड़ते हो….चटाक्

क्योंकि हक है तुम्हारे प्यार का…!

प्यार ? तुम भूल जाते हो कि कोई भी बुनावट ताने-बाने से ही बनती है शक या जोर आजमाइश से नहीं 

याद है न बचपन में रटते थे- 

"रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए 

टूटे से फिर न जुड़े जुडे गाँठ पड़ जाय…!”


इससे पहले कि वे आहत हो समेट लें अन्दर अपने ही अहसासों के 

रेशमी गुच्छे और उनमें मुँह छिपा खुद ही का दम घोंट लें

सुनो आजमाइश करने वालों…

समझो तड़ाक- फड़ाक करने वालों 

ये कोई भवन नहीं जो ईंट गारे से बनता हो

जिसमें लकड़ी सरिए लोहा खपता हो

कोमल रश्मियों से बुना बेहद नाज़ुक वितान है ये

सम्भल जाओ… रुक जाओ…!


रेशम बुनने वाले मन बहुत कोमल होते हैं  

कान लगा कर सुनो ध्यान से उनके मधुर रागिनी में बजते अन्तर्नाद में छिपे विलाप को 

बेशक वे तुम्हारी धूप चुराने का हौसला रखते हों पर धूप से झुलसते वे भी हैं 

पाँव उनके भी  लहुलुहान होते हैं ?

जिन रास्तों से गुजर कर वे तुम तक आए 

बेशक वे फूलों भरे तो न होंगे 

कोई भी रास्ता सिर्फ़ फूलों भरा कब होता है भला ?


तो यदि तुमको प्यार है रेशमी छाँव से तो

रेशम बुनने वाले उनके हाथों को थमने मत देना

इससे पहले कि वे गुम  हो जाएं अपने ही घायल जज़्बातों के बियाबान में 

रुक जाना, थाम लेना बढ़ कर उनके थके  हाथों को 

सहला देना लहुलुहान हुए पैरों को…!

                   —उषा किरण 🍂🌱



गुरुवार, 18 मई 2023

कौसर मुनीर-बेहतरीन महिला गीतकार


किसी नए गाने को सुन कर जब भी मन ठिठक गया, कदम थम गए, कान एकाग्रचित्त हो सुनने लगे तो  सर्च करने पर पाया कि वो गाना कौसर मुनीर का लिखा हुआ है। समकालीन महिला गीतकारों में मैं कौसर मुनीर को सबसे ज़्यादा नम्बर दूँगी। गुलजार साहब के बाद गानों में कविता डालने का काम जितनी ख़ूबसूरती से वे करती हैं लाजवाब हैं।

अगर बॉलीवुड में महिला गीतकारों की बात करें, तो उन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है।50 के दशक में सरोज मोहिनी नैय्यर, माया गोविंद, जद्दनबाई, वहीं 90 के दशक में रानी मलिक और आजकल बॉलीवुड में लगभग 10 महिला गीतकार सक्रिय हैं जिनमें कौसर मुनीर, अन्विता दत्त, प्रिया पांचाल, सोना मोहापात्रा, शिवानी कश्यप, रश्मि विराग प्रमुख हैं. अभी अन्विता, कौसर और रश्मि विराग की जोड़ी को छोड़ दो तो कोई भी महिला लगातार नहीं लिख रही है।

पुरुष प्रधान क्षेत्र में अपनी मौजूदगी मज़बूती से दर्ज करा रही कौसर ने बतौर गीतकार अपने करियर की शुरुआत टेलीविजन शो जस्सी जैसा कोई नहीं के टाइटल ट्रैक से की थी।  उसके बाद उन्होंने फिल्म टशन का सुपरहिट गाना फलक तक के बोल लिखे।  इस गाने के हिट होने के बाद वह हिंदी सिनेमामें जाना-माना चेहरा बन गयी।  तब से अब तक उन्होंने कभी मुड़ कर नहीं देखा। उसके बाद उन्होंने हिंदी सिनेमा की कई सुपरहिट फिल्मों इश्क्जादे, धूम 3, एक था टाइगर जैसी फिल्मों के गानें लिखे। इसके अलावा वह फिल्म इंग्लिश-विन्ग्लिश में बतौर लैंग्वेज कन्सल्टेंट के काम कर चुकी हैं। कौसर मुनीर कविता भी बहुत सुन्दर लिखती हैं उनकी कविताओं के कुछ वीडियो यूट्यूब पर भी सुने एक देखे जा सकते हैं ।

कौसर मुनीर द्वारा लिखे गए सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक  फिल्म पैडमैन (2018) के लिए आज से तेरी है -

आज से तेरी सारी

गलियां मेरी हो गयी

आज से मेरा

घर तेरा हो गया

आज से मेरी सारी खुशियाँ

तेरी हो गयीं

आज से तेरा गम मेरा हो गया…!

स्वानंद किरकिरे के मुताबिक़ "कई बार किसी महिला के लिखे गीत को सुनते वक़्त समझ आता है कि शायद यह एंगल गाने में एक पुरूष डाल ही नहीं सकता था. वो हमारे गीतों को एक नया आयाम देती हैं."

इसी तरह फलक गीत आया। हालांकि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर पिट गई, लेकिन फलक गाना खास रहा। इसी तरह कला फिल्म का गाना फेरो न नजरिया- तो मन मोह लेता है और सभी के मन में घर कर गया। सिरीशा भगवतुला ने इसे विरह में डूबकर गाया है. उन्हें सुनकर लगता है, जैसे उनकी आवाज़ मन के किसी दर्दीले कोने से आ रही हो।

तारों को तोरे ना छेड़ूँगी अबसे

तारों को तोरे ना छेड़ूँगी अबसे

बादल ना तोरे उधेड़ूँगी अबसे

खोलुंगी ना तोरी किवड़िया

फेरो ना नजर से नजरिया…!

 अभी फ़िलहाल तो  जिक्र "मिसेज चटर्जी वर्सेज नार्वे” फिल्म के गाने का- आमी जानी रे बहुत ही मधुर गाना है।इसी फिल्म के दो और गाने शुभो- शुभो और माँ के दिल से भी सुनने लायक है। रानी मुखर्जी कहती हैं कि -"मां के दिल से…उन बेहतरीन गानों में से एक है जिसे मैंने हाल के दिनों में सुना है जो मां-बच्चे के रिश्ते को इतनी खूबसूरती से परिभाषित करता है। पहली बार जब मैंने गाना सुना तो मैं कौसर द्वारा लिखे गए शब्दों से बेहद प्रभावित हुई, मैं केवल अपनी मां और अपने बच्चे तथा एक बेटी से मां बनने तक की अपनी यात्रा के बारे में सोच सकती थी। गाने की पूरी सोच यह है कि मां बच्चे को जन्म देती है या बच्चे मां को जन्म देता है।गाने को अपनी मां को समर्पित करते हुए रानी ने कहा, यह वास्तव में खास है कि यह गाना महिला दिवस पर रिलीज हो रहा है क्योंकि एक महिला के रूप में मेरा जीवन मां बनने के बाद पूरी तरह से बदल गया। मैं इस गाने को अपनी मां को समर्पित करना चाहती हूं, जिन्होंने इतने सालों में मेरे लिए कई कुर्बानियां दी हैं। मातृत्व एक शानदार जीवन शक्ति है और अनंत सकारात्मकता का कार्य है।”

आमी जानी रे

आमी जानी रे

तुमार बोली

तुमार चुप्पि भी रे

आमी जानी रे

आमी जानी रे

तुमार बट्टी भी

तुमार कट्टी भी रे

आमी जानी रे

आमी जानी रे….! 

सुनिए कितना मीठा गाना है❤️

                                       —उषा किरण

खुशकिस्मत औरतें

  ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें जो जन्म देकर पाली गईं अफीम चटा कर या गर्भ में ही मार नहीं दी गईं, ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो पढ़ाई गईं माँ- बाप की मेह...