रेल की पटरियों पर बदहवास रोती चली जा रही दीप्ति के पीछे एक भिखारिन लग गई।
- ए सिठानी तेरे कूँ मरनाईच न तो अपुन को ये शॉल, स्वेटर और चप्पल दे न…ए सिठानी …!
दीप्ति ने शॉल, स्वेटर और चप्पल उसकी तरफ उछाल दिए। भिखारिन और तेजी से पीछा करने लगी।
- ऐ सिठानी ये चेन और कंगन भी दे न…भगवान भला करेंगे…!
पल भर सोच कर दीप्ति ने चेन और कंगन भी उसके हवाले किए और तेज कदमों से पटरी के बीच चलने लगी। सहसा उसने मुड़ कर देखा, भिखारिन सब कुछ पहन खुशी से मस्त हो नाच रही थी…ताली बजा रही थी, ठहाके लगा रही थी।
दीप्ति के कदम रुक गए…भिखारिन और तनुजा के चेहरे आपस में गडमड हो रहे थे।पति देवेश और तनुजा के रोमान्टिक मैसेज , बूढ़े पापा- मम्मी के विलाप सब आँखों के आगे फिल्म की तरह घूम गए।भिखारिन की जगह ठहाके लगाता तनुजा का चेहरा आँखों के आगे घूम गया।
आँसू पोंछ कर, दीप्ति दृढ़ कदमों से वापिस लौट पड़ी।गनीमत थी सब गहरी नींद सोए पड़े थे। उसने देवेश की ओर एक उपेक्षित दृष्टि डाली, उसकी तरफ पीठ कर रजाई ऊपर तक खींच कर आँखें मूँद लीं ।
— उषा किरण
आपकी लिखी रचना सोमवार. 20 सितंबर 2021 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
मेरी रचना को साझा करने का बहुत धन्यवाद संगीता जी 🙏
हटाएंबेहद गहन भाव उकेरे है आपने ऊषा जी।
जवाब देंहटाएंस्त्री का संवेदनशील मन अपने सबसे भरोसेमंद रिश्ते का छल बर्दाश्त कैसे करे, जीवन को हारने की प्रबल इच्छा होती हैं किंतु उसकी उदारता ही उसके अस्तित्व से उसका परिचय करवाती है।
सस्नेह।
बहुत गहराई से पढ़ी आपने …बहुत धन्यवाद श्वेता जी !
हटाएंबहुत संवेदनशील लघुकथा । इस स्थिति में मन कितना आहत होता होगा जो मर जाने के लिए कदम बढ़ा लेता है फिर भी कहीं न कहीं दृढ़ता का परिचय भी मिला और गलत कदम उठाने से बच गयी दीप्ति । । लेकिन जेवन में संघर्ष करना ही होगा ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता जी !
हटाएंहर किसी को समझ में नहीं आनेवाली कहानी
जवाब देंहटाएंमन का द्वंद..
आभार..
सादर..
यशोदा जी वाकई ? क्या स्पष्ट नहीं हो रही ?
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-9-21) को "बचपन की सैर पर हैं आप"(चर्चा अंक-4194) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
मेरी रचना को लिंक की चर्चा के लिए चयन का बहुत शुक्रिया कामिनी जी !
हटाएंअन्तर्सम्बन्धों का छल का हल मृत्यु नहीं ही होना चाहिए । मर्मस्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंजी आत्महत्या कोई हल नहीं और जिंदगी से बढ़कर कुछ अनमोल नहीं…बहुत शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंइतनी भी जल्दी क्या है मरने की...छल करने वाले के मन की क्यों करना।सही फैसला लिया दीप्ति ने...अब हिसाब बराबर करना बाकी है
जवाब देंहटाएंबहुत ही संवेदनशील हृदयस्पर्शी लघुकथा।
सुधा जी आभार !
हटाएंकभी-कभी वे भी जीवन की सच्ची सीख समझा देते हैं जिन्हें लोग दूर से भी देखना पसंद नहीं करते
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी प्रस्तुति
सही बात है !
हटाएंगहन लघुकथा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सन्दीप जी !
हटाएंबहुत ही सुंदर लघुकथा
जवाब देंहटाएंआभार मनोज जी !
हटाएंछल से दिल तो दुखता है लेकिन जीवन परेशानियों के आगे हार मानने का उनसे जूझने का नाम है... सुंदर संदेश देती लघु-कथा...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विकास जी
हटाएंधन्यवाद विकास जी
हटाएंधन्यवाद विकास जी
हटाएंभिखारन ने लोलुपता और छल भरे रिश्तों की असलियत समझाई पर बुद्धि ने सही समय पर संभाल लिया |बहुत अनमोल है जीवन | नारी का औदार्य एक अवसर सदैव देता है | गहन रचना |
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