'चेक गणराज्य’ की राजधानी, एक सांस्कृतिक शहर है `प्राग’, जो शानदार स्मारकों से सुसज्जित है। प्राग एक समृद्ध इतिहास के साथ मध्य यूरोप का एक राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र रहा है।
यह एक ऐसा देश है जो संगीत और कला के प्रति पूरी तरह समर्पित है।मुझे यह इसलिए भी बहुत पसन्द आया , क्योंकि यहां हर कदम पर कला के दर्शन होते हैं ।इसे बागीचों और उद्यानों का शहर भी कहा जाता है। इसके अलावा यह शहर बीयर के लिए भी मशहूर है। यहां दुनिया की सबसे अच्छी बीयर बनाई जाती है।
हमने पहले ही दिन विन्टेज कार का टूर ले लिया था जिससे हमें शहर के बारे में काफ़ी जानकारी मिल गई थी।हमारी कार जिधर से गुजर रही थी लोग पॉइंट आउट कर रहे थे, वीडियो बना रहे थे ,हमें भी तो मजा आ रहा था।
यहां के पुराने कस्बे व गाँव बेहद ही खूबसूरत हैं। साथ ही प्राग कैसल में भव्य सेन्ट वाइटस कैथेड्रल चर्च , आर्ट गैलरी, संग्रहालय भी देखे । चेक गणराज्य की सबसे लंबी नदी, वल्टावा पर बना चार्ल्स ब्रिज पर घूमने का आनंद भी लिया।ऐतिहासिक 600 साल पुराने चार्ल्स ब्रिज से हमने प्राग किले की जलती लाइट का अभूतपूर्व नजारा देखा। 600 साल पुराने ओल्ड टाउन स्क्वैयर में बेहतरीन ऐतिहासिक स्मारक और इमारतें आज भी संरक्षित हैं । चौक के बीच में धार्मिक सुधारक `जान हुस ‘ ( Jan Hus) की भव्य मूर्ति है। चर्च ऑफ़ अवर लेडी बिफोर टिन ( Church of Our Lady before Tyn) , एस्ट्रोनॉमिकल क्लॉक का जादुई करिश्मा देखा , जहाँ हर घंटे पर कुछ हलचल हो रही थी। ( मैंने इस पर विस्तृत पोस्ट पीछे वाली पोस्ट में लिखा है)। किंस्की पैलेस में नेशनल गैलरी का कला- संग्रहालय देखने का अनुभव भी काफी सुखद रहा।
यूरोप में सबसे सुविधाजनक है जगह- जगह पर साफ-सुथरे टॉयलेट का होना। कई जगह कुछ पेमेन्ट करके आप इस सुविधा का लाभ ले सकते हैं। तो अपनी पॉकेट या पर्स में कुछ सिक्के रखना न भूलें।यहाँ पर कोरूना करेन्सी चलती है परन्तु अधिकांशत: यूरो ही चलता है।
खाने- पीने के लिए साफ- सुथरे रेस्तराँ व कैफे की भरमार है।थाई, मैक्सिकन, चाइनीज, इटैलियन, वियतनामी और इंडियन खाने का भी हमने मजा लिया। इंडियन रेस्तराँ कई थे और वहाँ का खाना अच्छा था। मसाला इंडियन रेस्तराँ, इंडियन बाई नेचर, एकान्त रेस्तराँ आदि।एकान्त रेस्तराँ के बिजनौर वाले भैयाजी ने कॉम्पलीमेन्टरी हम सबको एक- एक कटोरी खीर दी तो मजा आ गया। 😊बाकी हर दिन सुबह- शाम स्वादिष्ट जिलाटो आइस्क्रीम के डिफ्रेंट फ्लेवर खा- खाकर हमारा दो- तीन किलो वेट और बढ़ ही जाना था , इसमें कुछ आश्चर्य नहीं ।जबकि पैदल घूमना खूब होता था।
मौसम तो बहुत मज़ेदार था। सुबह- शाम हल्की ठंड और दोपहर हल्की गर्म हो जाती थीं । कभी-कभी हल्की बारिश, बादल मौसम खुशगवार रखते थे और यात्रा को सुखद बनाए हुए थे और पूरा परिवार जब साथ हो तो घूमने का आनन्द कई गुना बढ़ जाता है।
— उषा किरण