ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

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गुरुवार, 30 मई 2024

इससे पहले

 ज़िंदगी में कुछ हादसे, कुछ लोग या उनसे जुड़ी बातें या कुछ अफ़सोस ऐसे होते हैं जो सालों बाद भी पीछा नहीं छोड़ते।चाह कर भी भुला नहीं पाते और वे हमारी विचारधारा व जीवनधारा को दूसरी दिशा में मोड़ देते हैं।

लगभग बाइस - तेइस साल पहले मेरा एक माली था मोहन, जो बिल्कुल ही चुप रहता था, बस जितना पूछो उतना जवाब दे देता था। पैंतीस , चालीस के बीच का होगा।कई घरों में काम  करता था। बाकी सहायकों ने बताया कि वो शराब पीता है तो कई बार मैंने उसे समझाया भी । वह सिर झुका कर अपना काम करता जवाब नहीं देता था। चुपचाप आता था और क्यारियों व लॉन में जो भी जितना काम बताओ, करके चला जाता था। अब जो इतना चुप्पा हो उससे कोई कहाँ तक सिर मारे ? फिर उसी समय मैं भी कैंसर जैसी असाध्य बीमारी के चंगुल में फँसकर डॉक्टर व हॉस्पिटल के चक्रवात में फंसी जीवन व मृत्यु के बीच कहीं खड़ी थी। सारा  परिवार स्तब्ध व तनावग्रस्त था। तो मुझे खुद अपनी ही खबर नहीं थी और न ही घर परिवार व सहायकों की। 

एक दिन सहसा खबर मिली कि वो सोते - सोते मर गया। मैं हैरान रह गई। ड्राइवर और बाकी सहायकों से पता चला कि वो खाली पेट शराब पीता रहता था जब भूख लगती तो हमारी क्यारी से तोड़ कर भिंडी या मूली खा लेता , या जामुन बीन कर खा लेता था। "अरे ! कच्ची भिंडी ?और  ये बात तुम लोग मुझे अब बता रहे हो ? तब क्यों नहीं बताया ? या तुम ही खाना खिला दिया करते अंदर से लाकर “ मैं गुस्से और ग्लानि से भर गई। पर अब क्या हो सकता था ? मैं खुद को भी मन ही मन कोस रही थी कि घर में रोज  इतना खाना बनता है, और फ्रिज में  भी बचा हुआ रखा रहता है यदि समय पर पता चलता तो मैं ही उसे रोज कम से कम एक वक्त का तो खाना खिला ही सकती थी। मेरा मन मुझे लानतें भेजता कि मेरे यहाँ काम करने वाला एक कर्मचारी भूखे पेट पी- पीकर मर गया और मुझको खबर भी नहीं हुई…डूब मरो  ! उसका गाँव कहीं पटना के पास था। घर पैसे भेजता होगा और  शराब पीने के बाद इतना पैसा बचता ही नहीं होगा कि पेट भर खाना खा सके। 

उसके बाद से मैं बहुत ज़्यादा सजग हो गई। सभी सहायकों को व उनके परिवार, उनकी सेहत, भूख प्यास सबको ज्यादा पूछती हूँ व मदद भी करती हूँ ।पर वो जो अफसोस है वो अब भी मन को कचोटता है। हमें ज़्यादा संवेदनशील व सजग होना ही चाहिए इनके प्रति। ये लोग पूरब से , नेपाल व पहाड़ों और जाने कहाँ- कहाँ के गाँवों से बेहद गरीबी के मारे आते हैं चार पैसे कमाने के लिए। कई तरह की बीमारियों, अभावों व कुंठाओं से ये जूझ रहे होते हैं। अशिक्षित होने के कारण ज़्यादा सोच- विचार की बुद्धि भी नहीं होती। कई बार जघन्य अपराधों में भी संलग्न हो जाते हैं । इनके जीवन  में मनोरंजन का अभाव रहता है तो ये शराब के उन्माद को ही एन्जॉय करने लगते हैं । इनकी सोच- समझ इतनी वीक हो जाती है कि खुद नहीं निकल पाते इस जाल से। 

यहाँ मेरे लिखने का मक़सद सिर्फ़ यही है कि आप बड़ी- बड़ी समाज सेवा बेशक न करें, कम्बल बाँटकर फोटो भले न छपवाएं पर यदि अपने सहायकों को किसी तरह समझाकर, इलाज कर किसी तरह मदद कर सकें तो ये बहुत बड़ी मानव सेवा है। इस तरह आप न सिर्फ़ इनकी बल्कि इनके परिवार की भी मदद कर सकते हैं। हो सकता है ये आपको जवाब दें, बहस करें, बत्तमीजी भी कर दें , काम छोड़कर जाने की धमकी भी देते हैं। तब बहुत क्रोध आता है कि भाड़ में जाओ फिर। लेकिन तब भी विवेकपूर्वक व धैर्य से इनके सुख- दुख पर नजर रखना और उदार होना हमारा फ़र्ज़ है। हम समर्थ हैं और बौद्धिक स्तर पर भी बेहतर सोच सकते हैं  तो इनकी मदद करनी चाहिए ताकि  फिर हमारा या आपका कोई और मोहन यूँ जिंदगी की लड़ाई न हार जाए।

                            —🌸🌿उषा किरण



बुधवार, 13 मार्च 2024

यादों के गलियारों से


मेरी कितनी ही दोस्त हैं पर हम कभी भी एक दूसरे के घर रहने के लिए नहीं जाते। हमारी अम्माँ की बचपन की एक दो सहेलियाँ थीं और ताताजी के भी दो तीन दोस्त थे जहाँ कभी हम उनके घर और कभी वो लोग हमारे यहाँ सपरिवार दो- चार दिनों के लिए छुट्टियाँ मनाने आते थे।ऐसे ही कभी-कभी मौसी के यहाँ तो कभी मामाजी के यहाँ भी जाते थे। कोई फालतू टशन नहीं, बहुत सहजता से हम दोनों परिवार पानी में शक्कर से घुल जाते थे।आज प्राय: घरों में एक या दो बच्चे होते हैं और वे अपने ही घरों की परिधि में सिमटे रहते हैं। वे कहाँ जानते हैं अपने खिलौने, अपना स्पेस, अपना रूम,अपनी चॉकलेट और अपने माता-पिता का प्यार- दुलार भी शेयर करना…एक-दूसरे को बर्दाश्त करना। 


हम चार भाई बहन और चार- पाँच उनके बच्चे मिलकर खूब धमाल मचाते थे। खेल-कूद होते तो लड़ाई- झगड़े भी चलते ही रहते थे।ताताजी और अम्माँ भी अपनी कम्पनी में खूब बातें व हंसी मजाक करते। ताश, कैरम भी चलता।वे अपने बचपन की शरारतें हम बच्चों को सुनाते तो हमें भी बहुत मजा आता था। इत्तेफाक से सभी बड़े- बड़े अफसर थे तो आर्थिक परेशानी नहीं थी, काम तो औरतों पर बढ़ जाता था परन्तु नौकर- चाकर, अर्दली भी होते जो घर के काम में हाथ बटाने के साथ- साथ बाजार से दौड़- दौड़ कर रबड़ी, जलेबी, इमरती,समोसे, आम, लीची, आइस्क्रीम वगैरह लाते रहते और जम कर खिलाई- पिलाई के दौर भी चलते रहते।


वीरेन्द्र चाचाजी तो सगे चाचा जैसा प्यार करते थे और ताताजी से विशेष लगाव था उनका। कुछ तेरा- मेरा जैसा भाव ही नहीं था। गोरे चिट्टे चाचाजी बहुत सुन्दर थे और आदर्शवादी भी थे। काफी स्कोप होने पर भी कभी एक रुपये की भी रिश्वत नहीं ली कभी।चाचीजी बहुत स्वादिष्ट खाना बनाती थीं और उन जैसे करेले तो कभी कहीं नहीं खाए। चाचीजी और अम्माँ खूब बतियाती थीं और चाची जी स्नेह  भी बहुत करती थीं ।


ताताजी के गुजर जाने के बाद एक दो बार चाचाजी से मिली तो वे "मेरा यार मुझे अकेला छोड़ कर चला गया” कहकर ताताजी को याद करके बच्चों की तरह फूट - फूट कर रो पड़े । मैंने आजतक दो दोस्तों में इतना प्यार नहीं देखा। चाचाजी खुद सिगरेट नहीं पीते थे लेकिन ताताजी की सिगरेट उनके हाथ से लेकर कभी-कभी देवानन्द के स्टाइल में सुट्टे आंगन में साथ में चारपाई पर लेट कर बड़ी मस्ती में लगाते थे। उनका स्वभाव  बहुत हंसमुख था। दोनों ने साथ- साथ पढ़ाई की थी तो खूब किस्से सुनाते थे-

"अरी तेरा बाप तो मेरी नकल करके पास होता था।” हम एक स्वर में चिल्लाते "झूठ…झूठ “ तो खूब हंसते और फिर असली किस्सा सुनाते -" अरी तेरा बाप था टॉपर। एग्जाम से एक दिन पहले मैं तो आठ बजे ही लम्बी तान कर सो गया। मेरा यार आया तो मुझे झिंझोड़ कर बोला पढ़ता क्यों नहीं बे ? मैंने कही अबे जिधर से भी किताब खोलू हूँ नई सी ही लगे है, तो पढ़ने से क्या फायदा? इसने कुछ क्वेश्चन लिख कर दिए कि ले इसे याद कर ले पास है जाएगा ।जब एग्जाम में पेपर देखा तो मेरे छक्के छूट गए, मैंने तेरे बाप की कॉपी छीन ली…ये अरे रे रे करता रह गया मैंने कही पहले मेरा लिख, तुझे टॉप करने की पड़ी है यहाँ पास होने के लाले पड़े हैं…हा हा हा ।”

ऐसे किस्सों की भरमार रहती उनके पास।चाचीजी और अम्माँ में भी खूब बनती थी।

दोनों दोस्त जरूर अब ऊपर जाकर फिर मिल गए होंगे और उनकी मस्ती बदस्तूर जारी होगी…।अम्माँ भी उनमें ही जा मिली होंगी।उनकी मस्ती देख हंसती रहती होंगी।चाचीजी की कई दिनों से कोई खबर नहीं है …!!



खुशकिस्मत औरतें

  ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें जो जन्म देकर पाली गईं अफीम चटा कर या गर्भ में ही मार नहीं दी गईं, ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो पढ़ाई गईं माँ- बाप की मेह...