केसरी फाइल-2
रक्तरंजित इतिहास का वह काला पन्ना जिस पर जलियांवाला बाग हत्याकांड के कितने ही शहीदों का बलिदान दर्ज है की पृष्ठभूमि पर बनी 'केसरी फाइल-2’ मूवी शहीदों को दी गई एक सच्ची श्रद्धांजलि है। जरूरी है कि अंग्रेजों के जुल्म और देशभक्ति के ऐसे इतिहास के दस्तावेजों को हम आने वाली पीढ़ी के सामने पुरज़ोर तरीके से रखते रहें ताकि ये विस्मृति के गर्त में दफ़्न न हो जाए, इन पर चढ़े श्रद्धा सुमन कभी भी मुरझा न पाएं। हमारे अन्दर वह जोश व होश हमेशा कायम रहे कि फिर कोई आक्रांता हम पर यूँ अंधाधुंध गोलियाँ बरसाकर न चला जाए।
करण सिंह त्यागी द्वारा निर्देशित और करण जौहर और अदार पूनावाला द्वारा निर्मित, जलियांवाला बाग हत्याकांड की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में सी शंकरन नायर द्वारा लड़े गए ऐतिहासिक केस को दिखाया गया है।
सी. शंकरन नायर के पोते रघु पलात और पुष्पा पलात की लिखी किताब 'द केस दैट शुक द एम्पायर' से प्रेरित इस फिल्म की कहानी करण सिंह त्यागी और अमृतपाल बिंद्रा ने लिखी है। करण सिंह त्यागी क्योंकि स्वयं पेशे से वकील रहे हैं तो कानून की भाषा, दाँव पेच, द्वन्द फंद से खूब परिचित होने के कारण उन्होंने इस फ़िल्म की कहानी बहुत खूबसूरती व रोचकपूर्ण तरीके से बुनी है। पूरी फिल्म में कथानक में कसावट है।दो घंटे पन्द्रह मिनिट तक फिल्म की कहानी करुणा, क्रोध और रोमांच , देशभक्ति के जज़्बे को बनाए रखने में कामयाब होती है। एक मिनिट को भी बोर नहीं होने देती और शनैः- शनै: अन्याय के खिलाफ दर्शकों का क्रोध बढ़ता जाता है।
सी. शंकरन नायर के किरदार को अक्षय कुमार ने निस्संदेह बखूबी निभाया है। लगातार देशभक्ति के सशक्त रोल निभाने के कारण पूर्व इमेज से अक्षय कुमार बाहर निकले हैं । दूसरी ओर, आर माधवन ने भी ब्रिटिश वकील नेविल मैककिनले की भूमिका में बहुत दमदार अभिनय किया है।। शंकरन की साथी वकील दिलरीत गिल की भूमिका में अनन्या पांडे भी प्रभावशाली लगी हैं।अनन्या पान्डे की अभिनय प्रतिभा पहली बार इस फिल्म में उभर कर आई है। वे हमेशा की तरह मात्र सजावटी गुड़िया नहीं लगीं अपितु चेहरे व बडी़- बडी़ आँखों से उनके आन्तरिक भावों के उतार-चढ़ाव खूबसूरती से दर्ज हुए हैं ।फिल्म की शुरुआत में जलियांवाला बाग में पर्चे बांटता नजर आने वाला बच्चा परगत सिंह का रोल करने वाले कृष राव का किरदार एवम् एक्टिंग दिल को छू गई। आप उसको कभी भी भूल नहीं पाएंगे।वह अपने छोटे से किरदार से पूरी फिल्म पर छा गया है।
कुल मिलाकर कह सकते हैं कि इस चुस्त-दुरुस्त , खूबसूरत फिल्म के निर्देशक करण सिंह त्यागी काबिले तारीफ हैं कि उन्होंने सभी किरदारों को सही जगह पर फिट ही नहीं किया है अपितु कब किस किरदार को कहां और कैसे उपयोग में लाना है इसका भी खूब ध्यान रखा है।
कम्पोजर शाश्वत सचदेव ने 'ओ शेरा- तीर ते ताज' गाने से फिल्म में रोमांच व देशभक्ति के जज़्बे को बढ़ाने का काम किया है। फिल्म का एक और खूबसूरत गाना 'खुमारी' - (बेक़रारी ही बेक़रारी है…) जिसे परंपरागत और आधुनिकता को जोड़ने वाले संगीत को बनाने के लिए लोकप्रिय मशहूर गायिका कविता सेठ और उनके बेटे कनिष्क सेठ ने बनाया है।'खुमारी' ट्रैक में आधुनिकता और क्लासिक दोनों के फ्यूजन का अद्भुत जादू रचा है। इस गाने में मसाबा गुप्ता की पहली बार ऑन स्क्रीन म्यूजिकल परफॉर्मेंस चौंका देती है।
तो जाइए बच्चों के साथ सिनेमा हॉल में जाकर देखने लायक मूवी है , क्योंकि इसकी सिनेमैटोग्राफी बेहद शानदार है और हर दृश्य दिल को छूता है
अक्षय कुमार ने सही कहा है शुरू के दस मिनिट की मूवी मिस मत करिएगा, टाइम से जाइएगा और मेरा सुझाव है कि आखिर तक रुकिएगा आखिर तक यानि कि आखिरी शब्द स्क्रीन पर आने तक…।वैसे भी इसका अन्त बहुत दमदार है, जो आपको जोश से भर देगा।
यह फिल्म अंदर तक झकझोर देती है और हमें दर्द में डूबी देशभक्ति की भावना से रंग जाती है। कुछ दर्द बहुत पावन होते है। हमें अपने देश, उसके इतिहास, आज की आजादी और शहीदों पर गर्व करने की वजह देती है यह फिल्म।
करन सिंह त्यागी की स्वतंत्र रूप से बनाई यह पहली फ़िल्म है। उनमें अपार संभावनाएं नजर आती हैं। यू एस में लगी अच्छी खासी जॉब छोड़कर उनका फिल्म निर्माण का रिस्क लेना जाया नहीं गया। उनसे उम्मीद है कि वे आगे भी इसी तरह की सार्थक फिल्में बना कर स्वस्थ व सार्थक मनोरंजन समाज को देते रहेंगे। उनको बधाई देते हुए मैं उनके उज्वल भविष्य की कामना करती हूँ ।
— डॉ. उषा किरण