आजकल आसमान में रोशनी कुछ ज्यादा है
हाथ छुड़ाकर हड़बड़ी में
लोग दौड़ कर सितारे बनने की
जाने कैसी होड़ में शामिल हुए जा रहे हैं ?
धरा पर अँधेरा है या है तीखी पीली धूप
नहीं होता आँखें खोलने का साहस
न ही कुछ देखने या पढ़ने का
एक तेज झपाका जोर से पड़ता है
जैसे जोर से गाल पर कोई चाँटा जड़ता है
दुख सिर्फ़ यही नहीं कि वे चले गए
दुख ये भी है कि चार काँधों पर नहीं गए
न मन्त्र थे, न विलाप, न चंदनहार
बिना कुछ कहे- सुने ऐसे कौन जाता है
विदाई के बिना बोलो तो
यूँ भी भला कोई जाता है
सन्नाटों का कफन ओढ़े
निकल जा रहे हैं लोग चुपचाप
मौन है, नदियाँ, सागर, सारी कायनात
धरती भी मौन है मौत का तांडव जारी है
पीछे हाँफती पसलियों में चीखें घुटती हैं
ॐशान्ति...विनम्र श्रद्धांजलि लिखते
थरथराती हैं लाचार उँगलियाँ
रुको बस, बहुत हुआ...अब और नहीं
तितर-बितर हुआ...जो टूट-फूट गया
बहुत कुछ सहेजना, समेटना बाकी है
पर पहले साँसें तो संभल जाएं
जरा तूफान तो थम जाए
जरा होश तो आए
भूल जाओ अब भी
सारा द्वेष, ईर्ष्या व क्रोध
पुरानी रंजिशें, आरोप-प्रत्यारोप, प्रतिशोध
तुम्हारी निर्ममता का सही वक्त नहीं ये
हाथ बढ़ा लगा लो सबको गले
हौसला रखो...हौसला दो
दोस्त, दुश्मन की लकीरें मिटा दो
पीली धूपों पर शीतल चन्दन के फाहे रखो
अब भी न समझे तो कब समझ पाओगे
माना कि ये वक्त बहुत निर्मम है तो क्या
इन्सानियत को भूल
दाँत बाहर निकाल भेड़िये बन जाओगे
हौसले पस्त हैं...सारे सपने कहीं छिप गए हैं
एक दिन सब ऐश्वर्य, सम्पदा, तेरा-मेरा
यहीं तो छूट जाएंगे, निशानियाँ रह जाएंगी
और...हाथ छूट जाएंगे
बस एक ही आशा,एक ही प्रार्थना
अपनों को काँपते कलेजे से भींच
हाथ बाँध,आसमान पर टिकी हैं आँखें
बेसुध से होंठ बुदबुदाते हैं-
सर्वे भवन्तु सुखिन:,सर्वे सन्तु निरामया ...
हौसला रखो, आशाओं के दिए जलाए रखो
नफरत के आगे प्रेम को हारने मत देना
हम सब फिर मुस्कुराएंगे
मिल कर उम्मीदों के, प्रेम-गीत गाएंगे
धरा पर भी एक दिन दीवाली होगी
देखना...वो सुबह जल्द ही जरूर आएगी !!
— उषा किरण
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29 -5-21) को "वो सुबह कभी तो आएगी..."(4080) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
नमस्कार कामिनी जी...मेरी रचना का चयन करने का बहुत आभार🙏
हटाएंवाह🌻👌
जवाब देंहटाएंबहुत आभार !
हटाएंवर्तमान हालातों का सजीव वर्णन किया है आपने आदरणीया उषा जी।
जवाब देंहटाएंमीना जी बहुत धन्यवाद!
हटाएंकाश ये सुबह जल्दी ही आये । जो हो रहा है उसका सजीव चित्रण ।
जवाब देंहटाएंन जाने ये अंधेरा कब छटेगा ।
अच्छी आशावादी रचना ।
आमीन....धन्यवाद संगीता जी ...वैसे ये कल आपसे बात करने के बाद ही लिखी...प्रेरणा आप ही हैं 🥰😍
हटाएंदुख सिर्फ़ यही नहीं कि वे चले गए
हटाएंदुख ये भी है कि चार काँधों पर नहीं गए
न मन्त्र थे, न विलाप, न चंदनहार
बिना कुछ कहे- सुने कौन जाता है
विदाई के बिना बोलो तो
यूँ भी भला कोई जाता है
ये पढ़ते हुए लगा था मुझे कि शायद मेरी भावनाओं को उतार दिया है । लेकिन ये भी तो न जाने कितने लोग सह चुके हैं । सब कुछ बस जैसे ज़ेहन में समाता जा रहा ।
बस प्रभु अब दया करें 🙏
हटाएंबेचारे आसमान ने क्या किया है। ये तो धरती वालों का ही किया धरा है।
जवाब देंहटाएंकिसने क्या किया नहीं पता ...बस कोई अब सब ठीक कर दे ...यही प्रार्थना है🙏
हटाएंमिल कर उम्मीदों के, प्रेम-गीत गाएंगे
जवाब देंहटाएंधरा पर भी एक दिन दीवाली होगी
देखना...वो सुबह जल्द ही जरूर आएगी !! अवश्य ऐसा ही होगा।
आमीन🙏....जल्दी ही सबकी प्रार्थनाएँ सफल हों ...धरा पर फिर खुशहाली हो 😊
हटाएंसामयिक रचना बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार उर्मिल जी 😊
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआलोक जी आपका बहुत आभार...जब आप बहुत को दो बार लिखते हैं तो बहुत प्रोत्साहन मिलता है ...पुन: आभार🙏
हटाएंहौसला रखो, आशाओं के दिए जलाए रखो
जवाब देंहटाएंनफरत के आगे प्रेम को हारने मत देना
हम सब फिर मुस्कुराएंगे
मिल कर उम्मीदों के, प्रेम-गीत गाएंगे
धरा पर भी एक दिन दीवाली होगी
देखना...वो सुबह जल्द ही जरूर आएगी !!
बहुत ही उमदा और सटीक रचना!
हमारे ब्लॉग पर भी आइएगा आपका स्वागत है🙏🙏
मनीषा जी आभार आपका!
हटाएंसामायिक परिस्थितियों का दृश्य चित्र उकेरा है आपने हृदय स्पर्शी रचना,साथ ही आशा का सुंदर संदेश।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
बहुत धन्यवाद!
हटाएंहौसला रखना है और अपने मूल से जुड़कर अपनी जड़ों को सींचना है, यही वक्त है जब भारतीयता और मानवीयता को पूरी तरह से एक होना है. सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंयही वक्त है जब भारतीयता और मानवीयता को पूरी तरह से एक होना है....बहुत सही बात...धन्यवाद अनीता जी😊
हटाएंबहुत सुंदर,ऐसी ही सुबह की कामना है
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका !
हटाएंबहुत आभार आपका !
हटाएंहौसला रखो, आशाओं के दिए जलाए रखो
जवाब देंहटाएंनफरत के आगे प्रेम को हारने मत देना
हम सब फिर मुस्कुराएंगे
मिल कर उम्मीदों के, प्रेम-गीत गाएंगे
धरा पर भी एक दिन दीवाली होगी
देखना...वो सुबह जल्द ही जरूर आएगी !!
हृदय स्पंदनों को झंकृत करती अभिव्यक्ति
बलबीर जी बहुत धन्यवाद आपका !
हटाएंसकारात्मक संदेश देती उत्कृष्ट रचना।
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जी हृदय से आभार 😊
हटाएंनमस्ते.....
जवाब देंहटाएंआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की ये रचना लिंक की गयी है......
दिनांक 27 मार्च 2022 को.......
पांच लिंकों का आनंद पर....
आप भी अवश्य पधारें....
जरूर आयेगी। सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंफिर से पढ़ना और उस समय के साथ गुज़रना मन को भिगो गया । सुबह आते आते फिर कहीं छुप जाती है ।।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी मैं तो इस कविता को लिख कर भूल ही गई थी…आपने कहाँ से खोद निकाली😊…ईश्वर करे वैसा समय अब कभी न आए🙏
हटाएंधन्यवाद संगीता जी ! मैं तो इस कविता को लिख कर भूल ही गई थी’ आपने कहाँ से खोद निकाली ? भगवान करे वैसा वक्त फिर कभी न आए😔🙏
जवाब देंहटाएं