ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

बुधवार, 4 नवंबर 2020

करवाचौथ

         


   कैलेण्डर में करवाचौथ की तिथि

             ढूँढते देख मुझे

            बाजार से लौटते

करवे , दिया, कलैन्डर ले आए सब

     जानते हैं न भुलक्कड़ हूँ ,फिर

लसड़- पसड़ उसी दिन भूखी प्यासी

             बाजार भागूँगी !

     मेंहदी लगाए देख हाथों में

              समेट दिए कप

             `चाय पी लो तुम

               अब उम्र हो गई

            फल खा लिया करो

       आज रहने देतीं ये अलमारी

        फिर कभी कर लेतीं ठीक !’

       वॉक से लौटते दो चार गेंदे की 

            मालाएं भी उठा लाए

            जानते हैं न त्योहार में

      मन्दिर सजाना पसन्द है मुझे !

 `सुनो आज चाँद पौने आठ निकलेगा’

        सुबह ही पेपर में पढ़ जोर से

                  बता दिया है !

    व्याकुल हो घड़ी निहारते देख मुझे

अमेजॉन पर फ़िल्म `अक्टूबर ‘ लगा दी है

        कब से देखना चाह रही थी !

             चाँद को निकलने में

               है अभी घन्टा भर

    पर छत पर कई चक्कर लगा आए !

अर्घ्य देते, कहानी सुनते, खाते- पीते देख

     तुम्हारा चेहरा कुछ भीग सा गया है

                फिर से कहते हो-

    अब उम्र हो गई फल खा लिया करो

       कहीं तबियत खराब न हो जाए !

        `तुम न बात कितना दोहराते हो

                चल जाता है अभी....’

                    बड़बड़ाती हूँ 

            अगली सुबह चाय पीते

           कुछ सोच कर आँखों की 

            मुस्कान छिपा छेड़ती हूँ-

        `क्यों जी कई बार से देख रही

            ये हर करवाचौथ जो तुम

      कहीं बाहर जाते हो, चक्कर क्या है ?

           झटके से पेपर से मुँह उठा

             घूर कर चेहरा देखते हो

             पुन: पेपर में डुबकी मार

                     बुदबुदाते हो

              तुम भी न...कुछ भी...!

    चाय की ट्रे उठा अँदर जाते कहती हूँ

                   अच्छा सुनो

    आज बच्चों को फोन जरूर कर लेना

                  भूलना नहीं...!

          जाने क्यूँ ऐसा लगता है 

       जैसे व्रत अकेले मेरा नहीं था कल...!!


                                   — उषा किरण

                           काव्य-संग्रह " ताना- बाना” से

18 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 5 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह!करवा चौथ तो हमारे घर नहीं होता लेकिन दूसरे व्रत और ऐसे ही सीन याद आ गए।

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  3. जाने क्यूँ ऐसा लगता है जैसे व्रत अकेले मेरा नहीं था कल -
    प्रेम, स्नेह, समर्पण को दर्शाती सोच ! उम्दा रचना

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  4. करवाचौथ पर उत्साह व प्रेम ..... धैर्य और अधीरता ..... आप दोनों को इस व्रत की ढेरो शुभकामनायें

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  5. इसे ही तो एक दूसरे के प्रति प्यार और समर्पण कहते है।

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  6. वाह !बहुत ही सुंदर हृदय स्पर्शी सृजन।
    सादर

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