ताना बाना
मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले
तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं
और जब शब्दों से भी मन भटका
तो रेखाएं उभरीं और
रेखांकन में ढल गईं...
इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये
ताना- बाना
यहां मैं और मेरा समय
साथ-साथ बहते हैं
मंगलवार, 21 अप्रैल 2020
कविता— कितने मुजरिम ढूँढोगे...?
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कविता
तूलिका और लेखनी के सहारे अहसासों को पिरोती रचनाओं की राह की एक राहगीर.
शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020
कविता— एक दिन
~~~~~~
तुम तो
नफरत की सिलाइयों से
अपनी बदबूदार सोच का
एक मैला सा स्वेटर बुनो
क्योंकि
तुम्हें क्या मतलब इससे
कि देश मेरा जल रहा है
कराह रहा है
बंट रहा है
तड़प रहा है
भूखा है
डरा हुआ है
मर रहा है
तुम तो बस अपनी
अँधेरी परिधि की हद में
आत्ममुग्ध हो
गर्वोन्मत्त हो थोड़ा सा भौंह उठा
हल्के से मुस्कुराओ
और फिर से शुरु हो जाओ
क्योंकि-
तुम्हें क्या फर्क पड़ता है कि-
देश मेरा जल रहा है
सिसक रहा है...
तुम तो बस अपनी बदबूदार सोच से
नफरत की सिलाइयों से
एक मैला सा स्वेटर बुनो
पहनो और
सो जाओ !
लेकिन वे जो हैं न
अपनी छोटी -छोटी हथेलियों में
सूरज उगाए बढ़ रहे हैं
बुन रहे हैं एक रोशनी का वितान
वे ही बचा ले जाएंगे अपनी उजास
मेरे देश को
पूरे विश्व को
और मानवता को भी
तुम देखना एक दिन....!!!!
— उषा किरण
फोटो:गूगल से साभार
नफरत की सिलाइयों से
अपनी बदबूदार सोच का
एक मैला सा स्वेटर बुनो
क्योंकि
तुम्हें क्या मतलब इससे
कि देश मेरा जल रहा है
कराह रहा है
बंट रहा है
तड़प रहा है
भूखा है
डरा हुआ है
मर रहा है
तुम तो बस अपनी
अँधेरी परिधि की हद में
आत्ममुग्ध हो
गर्वोन्मत्त हो थोड़ा सा भौंह उठा
हल्के से मुस्कुराओ
और फिर से शुरु हो जाओ
क्योंकि-
तुम्हें क्या फर्क पड़ता है कि-
देश मेरा जल रहा है
सिसक रहा है...
तुम तो बस अपनी बदबूदार सोच से
नफरत की सिलाइयों से
एक मैला सा स्वेटर बुनो
पहनो और
सो जाओ !
लेकिन वे जो हैं न
अपनी छोटी -छोटी हथेलियों में
सूरज उगाए बढ़ रहे हैं
बुन रहे हैं एक रोशनी का वितान
वे ही बचा ले जाएंगे अपनी उजास
मेरे देश को
पूरे विश्व को
और मानवता को भी
तुम देखना एक दिन....!!!!
— उषा किरण
फोटो:गूगल से साभार
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तूलिका और लेखनी के सहारे अहसासों को पिरोती रचनाओं की राह की एक राहगीर.
गुरुवार, 9 अप्रैल 2020
कविता —ना कहना
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