बहुत मुश्किल था
एकदम नामुमकिन
वैतरणी को पार करना
पद्म- पुष्पों के चप्पुओं से
उन चतुर , घात लगाए, तेजाबी
हिंसक जन्तुओं के आघातों से बच पाना...!
हताश- निराश हो
मैंने आह्वान किया दैत्यों का
हे असुरों विराजो
थोड़ा सा गरल
थोड़ी दानवता उधार दो मुझे
वर्ना नहीं बचेगा मेरा अस्तित्व !
वे खुश हुए
तुरन्त आत्मसात किया
अपने दीर्घ नखों और पैने दांतों को
मुझमें उतार दिया
परास्त कर हर बाधा
बहुत आसानी से
पार उतर आई हूँ मैं !
अब...
मुझे आगे की यात्रा पर जाना है
कर रही हूँ आह्वान पुन:-पुन:
हे असुरों आओ
जा न सकूँगी आगे
तुम्हारी इन अमानतों सहित
ले लो वापिस ये नख,ये तीक्ष्ण दन्त
ये आर - पार चीरती कटार
मुक्त करो इस दानवता से
पर नदारद हैं असुर !
ओह ! नहीं जानती थी
जितना मुमकिन है
असुरों का आना
डेरा डाल देना अन्तस में
उतना ही नामुमकिन है
उनका फिर वापिस जाना
मुक्त कर देना ...!
बैठी हूँ तट पर सर्वांग भीगी हुई
हाथ जोड़ कर रही हूँ आह्वान पुन:-पुन:
आओ हे असुरों आओ
मुक्त करो
आओ......मुक्त करो मुझे
परन्तु....!
—उषा किरण
फोटो: गूगल से साभार
मुक्ति की प्रार्थना ही सरल है मुक्ति इतनी भी सहज संभव नहीं।
जवाब देंहटाएंसस्नेह
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २३ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत सुन्दर
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