ठसाठस भरी बस के आते ही भीड़ उसकी तरफ लपकी। दीपक ने दोनों हाथों के घेरे में सुलक्षणा को लेकर किसी तरह बस में चढ़ाया और जैसे ही एक सीट खाली हुई सीट घेर कर निश्चिंत हो बहन को बैठा लम्बी साँस ली और खुद रॉड पकड़ कर बीच में खड़ा हो गया।
दोनों भाई-बहन ममेरे भाई की शादी से लौट रहे थे।शादी में सारी रात जागने के कारण सुलक्षणा को कुछ ही देर में झपकी आ गई।सहसा उसकी झपकी टूटी तो सामने दृष्टि पड़ते ही हतप्रभ रह गई। दीपक के ठीक सामने एक लड़की खड़ी थी जो काफ़ी असहज महसूस कर रही थी।बार- बार गुस्से में मुड़ कर दीपक को देख रही थी ।
-आप थोड़ा पीछे हटिए प्लीज !
सुलक्षणा ने हैरानी से देखा कि भैया पीछे हटने की जगह और सट कर खड़े हो गए। उनके चेहरे के लम्पट-भाव देख वह हैरान थी।ये भैया का कौन सा नया रूप देख रही थी आज ?
उसका मन जुगुप्सा से भर उठा ।
सहसा वो झटके खड़ी हुई और दीपक के सामने खड़ी लड़की से बोली।
- आप यहाँ मेरी सीट पर बैठ जाइए !
- थैंक्यू…कह कर लड़की ने आराम से सीट पर बैठ कर चैन की साँस ली। सुलक्षणा उस लड़की की जगह भाई के सामने रॉड पकड़ कर खड़ी हो गई। दीपक अचकचा कर एक कदम पीछे हट गया। सभी की निगाहें दीपक पर जमी थीं और दीपक की निगाह बस के फर्श पर।
— उषा किरण
अपनी बहन की हिफाज़त और दूसरी लड़की के लिए लम्पटगिरी । बहन ने सही आईना दिख दिया ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता जी
हटाएंउम्मीद करते हैं आप अच्छे होंगे
जवाब देंहटाएंहमारी नयी पोर्टल Pub Dials में आपका स्वागत हैं
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धन्यवाद
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 12 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत ही प्रेरक लघुकथा! हर लड़की को सुलक्षणा की तरह बनने की जरूरत है गलत करने वाले को एहसास कराने की जरूरत है कि वो गलत कर रहा है! फिर वो कोई अपना करीबी ही क्यों न हो!
जवाब देंहटाएंकहाँ हर लड़की में इतनी हिम्मत होती है पर काश…..धन्यवाद!
हटाएंबस यही तो समस्या है अपनी बहन की हिफाजत और दूसरी लड़कियों की बेइज्जती...
जवाब देंहटाएंसुन्दर संदेशप्रद लघुकथा।
धन्यवाद सुधा जी
हटाएंइस दोहरेपन ने ही तो समाज का बड़ा बिठा दिया | सार्थक कथा -- विकृत मानसिकता को आईना दिखाती हुई |
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