ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

शनिवार, 16 अगस्त 2025

ॐ श्रीकृष्णः शरणं मम



 सबसे गहरे घाव दिए

उन सजाओं ने—

जो बिन अपराध, बेधड़क

हमारे नाम दर्ज कर दी गईं।


किए अपराधों की सज़ाएँ

सह भी लीं, रो भी लीं…

पर जो बेकसूर भुगतीं,

अवाक कर गईं,

उनका क्या…


नतशिर हूँ…

स्तब्ध, निश्शब्द, आहत !


तोहमतों का कोई उत्तर नहीं 

कहा उससे जाता है जो सुनना चाहे,

सुना उसे जाता है जो कहना चाहे…

बस बेकल सा कोलाहल है

इसलिए सारे कपाट

लो आज बन्द कर दिए…!


काँच पर पत्थरों से आई तरेड़ें

कभी शिकायत कहाँ लिखती हैं!

बस मौन में डूबकर

मौन हो जाना ही चुनती हैं।


नफ़रतों की आरी की

किरकिराहट नहीं सही जाती,

थकाता है शोर।


हे मुरारी! जानती हूँ—

ये चोटें भी तुम्हारी थीं,

हमें अपने और निकट लाने को।

तुम ही रचते हो लीला,

तुम ही हो कारण।


तो सारे उपालम्भ, अपमान, तोहमतें

थाल में सजाकर

तुम्हें अर्पित कर दीं

पुष्प, पात, अर्घ्य बनाकर।


कान्हा…

अब सम्भाल लो, मुक्त करो।

जन्मदिन तुम्हारा मुबारक हमें।


ॐ श्रीकृष्णः शरणं मम 🙏🌼

- उषा किरण 🌱🍃

2 टिप्‍पणियां:

ॐ श्रीकृष्णः शरणं मम

 सबसे गहरे घाव दिए उन सजाओं ने— जो बिन अपराध, बेधड़क हमारे नाम दर्ज कर दी गईं। किए अपराधों की सज़ाएँ सह भी लीं, रो भी लीं… पर जो बेकसूर भुगत...