चित्रांगदा की दोस्तों का एक ग्रुप बन गया है ।महिने में एक बार किटी- पार्टी होती है और हर इतवार को वे सब किसी न किसी के घर पर सतसंग के लिए एकत्रित होती हैं और वहाँ पर किसी एक ग्रंथ पर आध्यात्मिक चर्चा होती है।
फ़िलहाल उसी कड़ी में आज का सतसंग चित्रांगदा के घर पर है और श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय का अध्ययन करते हुए मीना जी ने जिनको संस्कृत का व शास्त्रों का बहुत ज्ञान है, सधे व शुद्ध उच्चारण से पढ़ा-
"भूमिरापोऽनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च । अहंकार इत्तीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ।।
इसके साथ ही पंचतत्वों की व्याख्या व विचार- विमर्श शुरु हो गया जो एक घन्टे तक चला। उसके बाद वन्दना व मीना जी व चित्रांगदा ने भजन सुनाए ।
चित्रांगदा ने जलपान की व्यवस्था भी की थी, तो सब हल्की- फुल्की बातचीत के साथ खाने- पीने में व्यस्त हो गए। तभी दो साल की गोल- मटोल ठुमकती हुई परी चित्राँगदा के पास आई और गोद में आने के लिए दोनों हाथ उठाकर ऊँ ऊँ करने लगी। चित्रांगदा लाड़ से उठाकर गोदी में बैठा कर उसे पुचकारने लगी। उसने चित्रांगदा की प्लेट से कटलेट उठाया और मजे से खाने लगी।
" ये कौन है ?” मीना जी ने पूछा।
"ये हैं हमारी नन्ही परी और मैं इनकी दादी” उसने परी के बालों को सहलाते हुए कहा।
" दादी ? पर आपके बेटे की तो अभी शादी नहीं हुई न ?” लता जी ने कहा।
" हाँ…ये रीना की बेटी है “ उसने सामने किचिन में काम कर रही रीना की तरफ इशारा किया।
" अरे , आपकी मेड की बेटी ? आपने गोद में बैठा लिया और आपकी प्लेट से खा रही है…कैसे कर लेती हैं ये आप ?” मीना जी ने घिनियाते हुए कहा।
" तो क्या हुआ ? देखिए न कितनी तो साफ- सुथरी है। रीना मेरे साथ ही आउटहाउस में रहती है। ये दो बार नहा-धोकर बेबी सोप व पाउडर से हर समय महकती हैं , अभी भी नहा कर आई हैं ।देखिए न कितनी साफ- सुथरी रहती है , तो घिन कैसी ?” चित्राँगदा ने आवाज दबा कर धीरे से कहा जिससे किचिन में काम कर रही रीना न सुन ले।
" हम तो गोद में नहीं बैठा सकते ऐसे,चाहें कुछ भी हो यार, है तो मेड की ही बेटी न ! लेकिन तुम्हारा कमाल है भई !”
"अरे अभी कुछ ही देर पहले आप ही ने सुनाया था न वो भजन-
अव्वल अल्लाह नूर उपाया
कुदरत के सब बंदे,
एक नूर ते सब जग उपजाया
कौन भले को मंदे…तो फिर….?”
परन्तु उसकी सातों विदुषी सखियों के मुख- मंडल पर असंतोष व असहमति छायी ही रही ।
सबके जाने के बाद गोदी में सो गई परी के मासूम चेहरे को देखते हुए वह सोच रही थी क्या इस बच्ची के पंच- तत्वों और हम सबके पंच- तत्वों में कोई भेद है ? जब सबकी मिट्टी , हवा, पानी , सबका नूर सब एक ही है, तो फिर ये भेदभाव क्यूँ , वो भी बच्चे के साथ ?
ये कैसा सतसंग…?
—उषा किरण
उपदेश सुनना और उसे आत्मसात कर व्यवहार में लाना दो अलग तरह की बातें हैं समाज में ...
जवाब देंहटाएंदया,क्षमा करूणा,प्रेम ,धर्म कर्म सब कृत्रिम लगता है ऐसी क्षुद्र मानसिकता के आगे।
सार्थक संदेश से युक्त सुंदर लघुकथा।
सादर।
धन्यवाद श्वेता जी !
हटाएंपरोपदेशवेलायां सर्वे .......! सच ही कहा गया है। बहुत ही सुंदर और संदेशपरक रचना!!!
जवाब देंहटाएंहृदय से धन्यवाद आपका !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी !
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8-5-22) को "पोषित करती मां संस्कार"(चर्चा अंक-4423) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
कामिनी जी मेरी रचना शामिल करने का बहुत शुक्रिया 😊
हटाएंगोदी में सो गई परी के मासूम चेहरे को देखते हुए वह सोच रही थी क्या इस बच्ची के पंच- तत्वों और हम सबके पंच- तत्वों में कोई भेद है ? जब सबकी मिट्टी , हवा, पानी , सबका नूर सब एक ही है, तो फिर ये भेदभाव क्यूँ , वो भी बच्चे के साथ ?
जवाब देंहटाएंये कैसा सतसंग…?... Bhavoगोदी में सो गई परी के मासूम चेहरे को देखते हुए वह सोच रही थी क्या इस बच्ची के पंच- तत्वों और हम सबके पंच- तत्वों में कोई भेद है ? जब सबकी मिट्टी , हवा, पानी , सबका नूर सब एक ही है, तो फिर ये भेदभाव क्यूँ , वो भी बच्चे के साथ ?
ये कैसा सतसंग…?
गहनता लिए सराहनीय लघुकथा।
सादर
बहुत धन्यवाद अनीता जी !
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