ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

सोमवार, 2 मई 2022

वसीयत

 



निकलूँ जब अन्तिम यात्रा पर 

तब मेरे सिरहाने सहेज देना 

कुछ रंग शोख तितली से और 

कुछ बुझे-बुझे राख से 

कुछ ब्रश, कुछ स्याही और 

कुछ कलम भी

थोड़े से खाली पन्ने और

कुछ बर्फ से सफेद 

कोरे कैनवास भी

और हाँ…कुछ सुर-ताल 

और कुछ गीत भी

हो सकता है मन कभी 

बहुत ज़्यादा सील जाए 

तो रख देना साथ मुट्ठी भर धूप 

और ताप से मन तप जाए कहीं तो 

रख देना कुछ मलय समीर

और कुछ बारिशें भी…!

ताकि अनजान देश के 

अनजान सफर में 

उमड़ने लगें जब भावों के बादल 

या फिर जब मन करना हो खाली

तब कूक सकूँ कोयल संग 

ढल सकूँ कैनवास पर तब

सुन्दर- सुगन्धित फूल बन या

कोरे पन्नों में कविता बन कर…!

जैसे धरती पर बिछ जाते हैं

फूल हरसिंगार के

चमकते हैं जुगनू

झिलमिलाते हैं सितारे

मचलती हैं लहरें

मैं भी बिछ जाऊँगी तप्त धरती पर 

एक दिन तब सतरंगी किरण या

शीतल ओस बनके…!!!


                        — उषा किरण

26 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 03 मई 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. यशोदा जी बहुत धन्यवाद आपका🙏

      हटाएं
    2. मैं वहाँ गई पर टिप्पणी नहीं हो पा रही है। मेरी रचना शामिल करने का बहुत शुक्रिया

      हटाएं
  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (3-5-22) को "हुई मन्नत सभी पूरी, ईद का चाँद आया है" (चर्चा अंक 4419) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कामिनी जी बहुत आभार आपका🙏

      हटाएं
  3. तब कूक सकूँ कोयल संग

    ढल सकूँ कैनवास पर तब

    सुन्दर- सुगन्धित फूल बन या

    कोरे पन्नों में कविता बन कर…!

    जैसे धरती पर बिछ जाते हैं

    फूल हरसिंगार के

    अति सुंदर,एक कलाकार के मन के भावों की अद्भुत अभिव्यक्ति,निशब्द हूँ
    प्रशंसा के लिए शब्द ही नहीं है,बस नमन है आपकी लेखनी को,सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत धन्यवाद आपका कामिनी जी😊

      हटाएं
  4. सच मानवीय इच्छाएं कभी ख़त्म नहीं होती, ये हमारे साथ चले तो बात ही कुछ और है। बहुत अच्छी कामना व्यक्त की है कविता के माध्यम से आपने

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  5. वाह! कितनी सुंदर वसीयत की है आपने, कुदरत के साथ जीने का यह अंदाज़ निराला है

    जवाब देंहटाएं
  6. लाजवाब रचना । अंतिम यात्रा के कितने पड़ाव लिख दिए । कभी कविता बनना है तो कभी कैनवास पर उतरना है , शोख रंगों में डूबना है तो कहीं हरसिंगार की तरह बिछ जाना है । बहुत खूब । 👌👌👌👌

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    उत्तर
    1. संगीता जी कविता पसन्द करने का बहुत शुक्रिया…यूँ ही हौसला बढ़ाती रहें 😊

      हटाएं
  7. अंतस को भिगोती सराहनीय रचना।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. खूबसूरत ख्वाहिश का खूबसूरत इज़हार ! मुट्ठी भर धूप ......

    जवाब देंहटाएं

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