कुछ रास्ते कहीं भी जाते नहीं हैं
कुछ सफर किसी मंज़िल तक
कभी पहुँचाते नहीं हैं
चल रहे हैं क्यूँकि
चल रहे हैं सब
फितरत है चलना
बस चले जा रहे है...!
जब भी देखा पलट कर
वहीं खड़े थे
जबकि सालों साल
बारहा हम चलते रहे थे
ठीक ,सफर में जैसे
मीलों साथ दौड़कर भी
पीछे छूटे दरख्त
वहीं तो खड़े थे
हाँ उड़ जाते हैं बेशक
सहम कर परिंदे जरूर
क्षितिज के पार चमकती
रौशनी के करीब
माना कि चल रहे हैं साथ
चाँद, सूरज, और सितारे
कहाँ पहुँचे कभी
वहीं खड़े हैं
आज भी सारे
कायनात में शामिल है
हमारा भी नन्हा सा वजूद
कदम मिला हम भी
बस यूँ ही चले जा रहे हैं
कुछ ख्वाबों की परछाइयाँ
आँखों के सागर में
मुसलसल डोलती हैं
कैसे कह दें कि
ख्वाब हम नहीं देखते हैं !
दिल के बागानों में पलती
खुशबुएँ दिखती तो नहीं
हाँ पर साथ चलती हैं
रुकती भी नहीं ...!
ये जानती हूं लेकिन
कुछ मुसाफ़िर
माना कि दिखते नहीं
पर पहुँचते हैं जरूर
बताते हैं ये
पानियों में बन्द सफर
नदिया सागर तक पहुँच
सागर हो जाती है जैसे
खुद एक दिन
कहीं पहुँचने की जिद
हमारी भी कम तो नहीं
पहुँचेंगे जरूर
बस ये जानते हैं
साध लूँ साज पर
आज कोई रुहानी सुर
ख़ामोश पानियों का सफर
चलो आज हम भी करते हैं...!!
—उषा किरण
बहुत सुन्दर और प्रेरक।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व अलहदा सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद
हटाएंबहुत आभार मेरी रचना का चयन करने हेतु
जवाब देंहटाएंअति सराहनीय अभिव्यक्ति उषा किरण जी । मन में कहीं गहरे तक उतर गई ।
जवाब देंहटाएंजितेबजी बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंजितेंद्र जी बहुत आभार.
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