कई बार हमारी ज़िंदगी में ऐसे पल आते हैं जब आगे घोर अँधेरा दिखाई देता है और कोई रास्ता नहीं सूझता। तब कुछ लोग गहरे डिप्रेशन में जाकर प्राय: गलत कदम उठा लेते हैl एक्टर सुशान्त सिंह राजपूत और न जाने ऐसे कितने लोग जिंदगी की जंग लड़ते - लड़ते हार गये और कूच कर गये दुनियाँ से।
आजकल दिनेश कार्तिक की कहानी सोशल मीडिया पर बहुत चर्चित है कि कैसे उनके दोस्त व पत्नि ने उनको धोखा दिया और उनके जिम के ट्रेनर शंकर बसु व स्क्वैश खिलाड़ी दीपिका पल्लिकल ने उनको संभाला, सहारा देकर डिप्रेशन से बाहर निकाला और आगे चल कर दीपिका से उन्होंने शादी की। मैंने जब ये कहानी पढ़ी तो बहुत प्रभावित होकर गूगल पर सर्च करके ये कहानी पोस्ट की। कुछ जगह ये कहानी मनगढ़ंत बताई जा रही है…अब क्या सच है क्या झूठ इस डिबेट में न पड़ते हुए मैंने अपनी पोस्ट से वो कहानी हटा दी है वैसे भी गूगल पर सर्च करने से यह कहानी खूब मिल जाती है।
खैर इस पोस्ट को लिखने का मकसद सिर्फ़ यही था कि हम दूसरों के प्रति सजग व सम्वेदनशील बनें। हमारी सतर्कता व सम्वेदना किसी की जिंदगी बचा सकती है।मेरे रिश्ते में बहुत इन्टेलिजेंट होने पर भी एक बच्चे ने तीस साल पहले आत्महत्या कर ली थी क्योंकि वो मेडिकल एन्ट्रेन्स कई बार कोशिश करके भी क्लियर नहीं कर सका जबकि पहले से ही सब उसको डॉक्टर साहब कहने लगे थे। कोई ये समझ ही नहीं सका कि वो बेहद डिप्रेशन में था और जब तक पता चलता तब तक बहुत देर हो चुकी थी। ऐसे ही मेरी एक ब्रिलिएंट स्टुडेंट के फादर नहीं थे। माँ का एकमात्र सहारा व आशा थी वो। न जाने किस कारण डिप्रेशन की शिकार होकर ड्रग एडिक्ट हो गई।उसके असामान्य व्यवहार पर चर्चा तो खूब हुई परन्तु जब तक सब चेतते तब तक उसने जीवन का अन्त कर लिया और हम सबको अफसोस के हवाले कर गई।
उसके बाद मैं सावधान हो गई और अपने स्टूडेंट्स को बारीकी से ऑब्जर्व करने लगी। परिणामस्वरूप बहुत से स्टुडेंट्स ने अपनी पर्सनल प्रॉब्लम्स मुझसे कई बार शेयर कीं । मैं और तो कोई मदद नहीं कर सकती थी लेकिन बस उनको सुनती थी, जितना हो सकता हौसला देती थी और ये सिलसिला रिटायरमेण्ट के बाद भी जारी है । मेरे बच्चे मुझ पर भरोसा करके अपने मन को खोल देते …सब तो नहीं पर कई स्टूडेंट्स की मदद कर सकी। न जाने कितनी कहानियाँ हैं उन सबकी मेरे मन में ।आज भी किसी बच्चे या किसी को भी सुनने के लिए मेरे पास बहुत वक्त है और हृदय के द्वार खुले हैं।
मैं उनको समझाती कि किसी के भी सब दिन एक से नहीं होते। हिम्मत से मुक़ाबला करें तो एक दिन अँधेरे हार जाएंगे और सफलता का सूरज फिर से जीवन में उजाला लेकर आएगा। कई बार बच्चों को छोटी सी उम्र में पारिवारिक ,आर्थिक या करियर की समस्याओं व तनाव का सामना तोड़ देता है। मेरे स्टूडेंट्स क्योंकि हमेशा युवा- वर्ग ही रहे तो उनकी प्रायः समस्या प्यार की भी होती और प्यार है तो धोखा भी मिल सकता है…मैं समझाती कि इससे ज़िंदगी समाप्त तो नहीं होती…जिसने धोखा दिया हो, वो ये तो कतई डिजर्व नहीं करता कि उसकी खातिर तुम खुद को तबाह ही कर लो।
आप भी देखिए चारों ओर…कोई मित्र, कोई बन्धु- बान्धव, कोई पड़ोसी अकेला किसी कोने में सिसक रहा हो तो सम्वेदनशील बनिए …रुक जाइए…आपका वक्त कितना भी कीमती क्यों न हो पर किसी की जिंदगी से तो कीमती नहीं ही हो सकता…बढ़ कर हाथ थाम लीजिए और हौसले की डोर थमा दीजिए ।
सुशान्त सिंह राजपूत के जाने के बाद मैंने लिखा था-
#इससे_पहले
इससे पहले कि फिर से
तुम्हारा कोई अज़ीज़
तरसता हुआ दो बूँद नमी को
प्यासा दम तोड़ दे
संवेदनाओं की गर्मी को
काँपते हाथों से टटोलता
ठिठुर जाए और
हार जाए जिंदगी की लड़ाई
कि हौसलों की तलवार
खा चुकी थी जंग...
इससे पहले कि कोई
अपने हाथों चुन ले
फिर से विराम
रोक दे अपनी अधूरी यात्रा
तेज आँधियों में
पता खो गया जिनका
कि काँपते थके कदमों को रोक
हार कर ...कूच कर जाएँ
तुम्हारी महफिलों से
समेट कर
अपने हिस्सों की रौनक़ें...
बढ़ कर थाम लो उनसे वे गठरियाँ
बोझ बन गईं जो
कान दो थके कदमों की
उन ख़ामोश आहटों पर
तुम्हारी चौखट तक आकर ठिठकीं
और लौट गईं चुपचाप
सुन लो वे सिसकियाँ
जो घुट कर रह गईं गले में ही
सहला दो वे धड़कनें
जो सहम कर लय खो चुकीं सीने में
काँपते होठों पर ही बर्फ़ से जम गए जो
सुन लो वे अस्फुट से शब्द ...
मत रखो समेट कर बाँट लो
अपने बाहों की नर्मी
और आँचल की हमदर्द हवाओं को
रुई निकालो कानों से
सुन लो वे पुकारें
जो अनसुनी रह गईं
कॉल बैक कर लो
जो मिस हो गईं तुमसे...
वो जो चुप हैं
वो जो गुम हैं
पहचानों उनको
इससे पहले कि फिर कोई अज़ीज़
एक दर्दनाक खबर बन जाए
इससे पहले कि फिर कोई
सुशान्त अशान्त हो शान्त हो जाए
इससे पहले कि तुम रोकर कहो -
"मैं था न...”
दौड़ कर पूरी गर्मी और नर्मी से
गले लगा कर कह दो-
" मैं हूँ न दोस्त…मैं हूँ…!!”
—उषा किरण