ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

शुक्रवार, 31 मई 2019

कविता— गाँधारी



जब वे
किसी अस्मिता को रौंद
जिस्म से खेल
विजय-मद के दर्प से चूर
लौटते हैं घरों को ही
तब चीख़ने लगते हैं अख़बार
दरिंदगी दिखाता काँपने लगता है
टी वी स्क्रीन
दहल जाते हैं अहसास
सहम कर नन्हीं चिरैयों को
ऑंचल में छुपा लेती हैं माँएं...
और रक्तरंजित उन हाथों पर
तुम बाँधती हो राखी
पकवानों से सजाती हो थाली
रखती हो व्रत उनकी दीर्घायु के लिए
भरती हो माँग
तर्क करती हो
पर्दे डालती हो
कैसे कर पाती हो ये सब ?
कैसे सुनाई नहीं देतीं
उस दुर्दान्त चेहरे के पीछे झाँकती
किसी अबला की
फटी आँखें,चीखें और गुहार ?
किसी माँ का आर्तनाद
बेबस बाप की बदहवासी ?
बोलो,क्यों नहीं दी पहली सजा तब
जब दहलीज के भीतर
बहन या भाभी की बेइज़्ज़ती की
या जब छीन कर झपटा मनचाहा ?
तुम्हारे इसी मुग्ध अन्धत्व ने
सौ पुत्रों को खोया है
उठो गाँधारी !
अपनी अाँखो से
अब तो पट्टी खोलो...!!

16 टिप्‍पणियां:

  1. युद्ध और विजय की कामना ही गांधारी के आँखों की पट्टियां हैं।

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  2. जी...और जिनको अपने भाई,पति, पुत्र के अपराध नहीं दिखते जो हर सही गलत में उनके साथ खड़ी हैं ...वे भी सब अन्धी ममता की पट्टी बाँधे गाँधारी ही हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02 -06-2019) को "वाकयात कुछ ऐसे " (चर्चा अंक- 3354) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत आभार अनीता जी मेरी रचना शामिल करने के लिए🙏

      हटाएं
  4. तुम्हारे इसी मुग्ध अन्धत्व ने
    सौ पुत्रों को खोया है
    उठो गाँधारी !
    अपनी अाँखो से
    अब तो पट्टी खोलो...!!
    बेहद सशक्त लेखन ...

    जवाब देंहटाएं
  5. गाँधारी...तो एक सोच एक डर और धमकी और न जाने क्या क्या है।कभी परिवार की लाज रखने के लिए तो कभी रिश्तों की इज्ज़त बनाए रखने के लिए प्रायःमर्यादा में रहने की धमकी की तथाकथित पट्टी आँखों में बाँध शर्मसार होती रहती है। पर अब ....नहीं आरंभ हो गया है गाँधारी का

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  6. अत्यंत प्रेरक और सार्थक रचना आदरणीय उषा जी | यदि हर माँ पत्नी बेटी परिवार के दुराचारी प्पुरुस्शों को संरक्षण देना छोड़ दे तो समाज से इस तरह के अपराध मिटने में बहुत सहायता मिलेगी |सादर , सस्नेह शुभकामनायें | ब्लॉग बुल्र्तिम के सौजन्य से आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ | बहुत अच्छा लगा आकर |

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