कब , क्या कहा माँ ने
भूल जाओ अब
वो सारी नसीहतें
वो हिदायतें
लिखो न अब
खुद की आचार संहिता
अपनी कलम से
अपनी स्याही से
और फिर
सौंप देना बेटी को
वो लिखेगी उसके आगे
अपने हिसाब से
मनचाहे रंगों से
आखिर
क्यों ठिठके रहें हम
चौखटों में सिमटे
सोचते रहें कि...
क्या कहा था माँ ने
दादी या नानी ने
हक है हमारा भी
आसमानी कोनों पर
चाँद-सूरज और
उड़ते परिंदों पर
सतरंगे इन्द्रधनुषी रंगों
सनसनाती उन्मुक्त
शीतल बयारों और
इठलाती बदलियों पर
और ...
जहाँ भी होंगी माँ
भले ही वो
उंगली से बरजेंगी
पर चुपके से
आँखों से मुस्कुराएंगी
यकीन मानो
वो भी
सुकून पाएंगी...!!!
—उषा किरण
(रेखाँकन : उषा किरण )
सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंसकारात्मक परिवर्तन की आवश्यकता का समर्थन करती सटीक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमीना जी बहुत आभार !
हटाएंवाह बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंशुक्रिया बहुत
हटाएंबेहतरीन..
जवाब देंहटाएंसादर..
धन्यवाद!
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