ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

शुक्रवार, 11 अगस्त 2023

पुस्तक समीक्षा- पाँव के पंख

शिवना साहित्यिकी में शिखा वार्ष्णेय लिखित पुस्तक `पाँव के पंख’  की समीक्षा प्रकाशित-




 शिवना साहित्यिकी में शिखा वार्ष्णेय लिखित पुस्तक `पाँव के पंख’  की समीक्षा प्रकाशित-


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