ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

रविवार, 26 मई 2024

खाने की बर्बादी



मेरे घर का एक बच्चा होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहा है। एक प्रतिष्ठित फाइव- स्टार होटल में छह महिने की ट्रेनिंग के बाद छुट्टियों में घर आया हुआ है।वह अपने अनुभव बताता रहता है। आज उसने बताया कि वहाँ पर रोज तीन टाइम बुफे लगता था और बचा हुआ सारा खाना फेंक दिया जाता था। तो हमने पूछा कि अपने स्टाफ को या जो ट्रेनी थे तुम जैसे उनको नहीं देते थे ? उसने कहा नहीं, हमारा अलग से बनता था बहुत ही ऑडनरी सा खाना और महंगी से मंहगी डिश सब डस्टबिन में…।” हमने कलप कर कहा ” अरे तो तुम लोगों को ही दे देते। और होटल में तो देते होंगे ?”

तो उसने कहा कि "नहीं देते, फ़ाइव स्टार पर यही पॉलिसी है सब जगह। बुफे तो रोज लगता है , कई बार तो बहुत कम लोग खाते हैं और काफ़ी ज़्यादा खाना फिंकता है।” उसके साथ के जो और  बच्चे अन्य जगह पर करते आए उन्होंने भी यही बताया।

सुनकर इतना दुख हुआ कि क्या बताएं। सोचिए जरा रोज कितना सारा खाना इन मंहगे होटलों व रेस्टोरेन्ट में फेंका जाता होगा। कम से कम अपने स्टाफ़ को ही खिला दें, फिर बाकी बचा हुआ खाना कुछ ऐसी व्यवस्था करें कि गरीबों में बाँट दिया जाय। 

इस विषय में आपको कुछ जानकारी है,यह सच

आपके क्या विचार हैं इस पर ?

— उषा किरण 

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