ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

शुक्रवार, 10 जनवरी 2020

कविता — पराजित


तुमने ये कहा
तुमने वो कहा
तुमने ऐसे क्यों कहा
तुमने वैसे क्यों कहा
तुम तो हो ही ऐसी
तुम तो हो ही वैसी
तुमने दिल दुखाया मेरा
अब मेरे दिल का क्या
मेरी फ़ीलिंग्स का क्या
तुमको ऐसे नहीं कहना था
तुमको वैसे नहीं कहना था
टूट गया रिश्ता
टूट गया दिल
..........
हैरान
परेशान
खड़ी हूँ अपने पराजित
'निन्यानवे ‘के साथ
कटघरे में
सिर झुकाए
और ...
मेरा 'एक’ गर्वित
गौरवान्वित
बड़ी चालाकी से
अर्थों का उलट- फेर कर
खड़ा है मैडल लिए जीत का
मुस्कुराता हुआ
उस पार !!

#निन्यानवेकाफेर

5 टिप्‍पणियां:

  1. निन्यानवे के पास एक प्रतिशत की ही उम्मीद होती है, देर से सही, उम्मीद पूरी होती है । हाँ, कई बार निन्तानवे पर ज़िन्दगी ठहर जाती है ... अब इसे फेर कहें या प्रयोजन, लेकिन एक के पास निन्यानवे प्रतिशत की दूरी होती है, जीत स्वाभाविक होती ही नहीं और ना ही मन को सुकून मिलता है ।

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    1. रश्मिप्रभा जी आपकी सकारात्मक सोच बहुत प्रेरणादायी है ...शुक्रिया!

      हटाएं

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