23 जुलाई, 2020
ताना - बाना - मेरी नज़र से - 8
धूप दिखाई दे न दे, उतरती है मन के घुप्प अंधेरे में, हौसला बांधती है ... कई छायाचित्र भविष्य के दिखाती है, कहती है - अगर ये हो सकता है, तो वह भी हो सकता है न !
वैसे,
"ये धूप भी पूरी
शैतान की नानी है !"
वैसे,
"ये धूप भी पूरी
शैतान की नानी है !"
नहीं होती धूप समाज द्वारा निर्धारित सभ्य औरत ... खिलखिला उठती है ज़र्रे ज़र्रे में ।
"मेरी सैंडिल पहनती
पर्स से लेकर लिपस्टिक लगाती
गुड़िया को दुलराती ...
कितना उतावलापन होता
आंखों में"
धूप सी बेटियाँ पूरे आँगन में इक्कट दुक्कट खेलती रहती हैं ।
पर्स से लेकर लिपस्टिक लगाती
गुड़िया को दुलराती ...
कितना उतावलापन होता
आंखों में"
धूप सी बेटियाँ पूरे आँगन में इक्कट दुक्कट खेलती रहती हैं ।
धूप सा मेरा मन ...
"हमें मिलना ही था
मेरे जुलाहे ! ... तभी तो,
मेरे होम का धुंआ
तुम्हारी तान में
लीन हो जाता है"
"हमें मिलना ही था
मेरे जुलाहे ! ... तभी तो,
मेरे होम का धुंआ
तुम्हारी तान में
लीन हो जाता है"
"अपना चरखा बन्द मत कर देना
कई पूनी कातनी बाकी हैं अभी"
कई पूनी कातनी बाकी हैं अभी"
.. .... कुछ दूर ही चलना है और ।
क्रमशः
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