ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

रविवार, 25 अक्तूबर 2020

पुस्तक -समीक्षा ( ताना- बाना)


   सुप्रसिद्ध लेखिका   " कविता वर्मा “—
 



~सभ्य औरतें चुप रहती हैं~

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सभ्य औरतें शिकायत नहीं करतीं वे ढोलक की थाप पर सोहर गाते ननद सास को ताने देते विदाई गीत और गारी गाते अपने दुखों को पिघला कर कतरा कतरा निकालती रहती हैं लेकिन शिकायत नहीं करतीं। बगल के पृष्ठ पर एक पेड़ की शाख के ऊपर चमकते चाँद की मद्धिम रोशनी में एक औरत ढोलक की थाप पर अपने दुखों को थपकी दे रही है।

अश्वत्थामा को क्षमा करती पांचाली और उसे श्राप देकर अजर-अमर रहने को छोड़ देने वाले श्रीकृष्ण से लेखिका सवाल पूछती है। कवयित्री जो एक माँ है उसके लिये पुत्रवध करने वाले को माफ करना असहनीय है और ऐसे नफरत और प्रतिशोध से भरे लोगों के संसार में जीवित रहने से शिशुओं पर पड़ने वाले खतरे से भयभीत वह स्वयं अस्त्र उठाने की इच्छुक है। दो डरावनी आँखें एक हथेली और एक पंजे से बना प्रतीकात्मक चित्र माँ के भय और अश्वत्थामा के प्रतिशोध को व्यक्त करता है।

माँ - सारे दिन खटपट करती /लस्त पस्त हो /तुम कहतीं एक दिन ऐसे ही मर जाऊँगी /और कहीं मन के किसी कोने में छिपी /आँचल में मुँह दबा /तुम धीमे-धीमे हँसती हो माँ।

गान्धारी से सवाल करती इस कविता में कवयित्री पूछती है

बोलो! क्यों नहीं दी पहली सजा तब /जब दहलीज के भीतर औरत को दी थी पहली गाली? यह सवाल बहुत पहले पूछा जाना चाहिए था हर उस गांधारी से जिसने अपने बेटे भाई पति के जुर्म को अनदेखा कर आँखों पर पट्टी बाँध ली है और शुक्र है कि अब यह पूछा जा रहा है और एक आशा दिखाई देने की उम्मीद है।

ताना बाना उषा किरण जी का कविता संग्रह जो सिर्फ कविताओं से ही नहीं बल्कि इन्हें और मुखर करती लकीरों से भी सजा है। हर कविता के साथ एक रेखाचित्र भावों को परिवेश का साथ देकर और गहन और विस्तृत बनाता है। जितनी अद्भुत उषा किरण जी की वैचारिक क्षमता है उससे कहीं बेहद आगे उनकी उन भावनाओं परिवेश और उनकी उलझन को रेखांकित करने की उनकी क्षमता है। शब्दों और रेखाओं के इस ताने-बाने में पाठक खो जाता है। वह समझ नहीं पाता कि पहले शब्द पढ़कर उसके भाव चित्रों में ढूँढे या पहले रेखाओं को पढ़कर शब्दों को बूझे।

101 कविताओं और उनके रेखांकन से सजे इस संग्रह में स्त्री मन उसके दुख सुख उसका अकेलापन खुद में सिमटे रहने की बाध्यता समाज की वर्जनाएं विडंबना प्रेम विरह धोखा आस उम्मीद समझ कर नासमझ बने रहने का भोलापन स्त्री पुरुष संबंध सुनहरी यादें दोस्ती वादे के साथ ही जीवन के दर्शन को न सिर्फ शब्द दिये गये हैं बल्कि उन्हें रेखाओं में खूबसूरती से उकेरा गया है।

ताना बाना पाठक के मन में भावनाओं और समझ का एक ऐसा अद्भुत वस्त्र बुनता है जिसकी मुलायमियत देर तक महसूस की जा सकती है।

डाॅ उषा किरण को इस अद्भुत संग्रह के लिए हार्दिक बधाइयाँ और उनकी लेखनी और तूलिका के लिए अशेष शुभकामनाएं।

ताना बाना

डाॅ उषा किरण

शिवना प्रकाशन

मूल्य 450/-







8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर समीक्षा।
    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 28 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है।एक बार आकर सभी रचनाएँ पढ़ें और अपना बहुमूल्य मूल्यांकन दें

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  3. प्रभावशाली समीक्षा, पुस्तक पढ़ने के लिए उत्साहित करती है - - नमन सह।

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  4. आदरणीया मैम ,
    बहुत ही सशक्त समीक्षा। आपकी इस अनुपम प्रतिभा को देख कर की आप कितने सशक्त रूप से अपनी लेखनी और तूलिका से अभिव्यक्ति कर एक संगम बना देतीं हैं, मैं आपको वंदन करती हूँ।
    इस समीक्षा में उठायी गयी सभी बातें बहुत वज़नदार और हर स्त्री के हृदय की बात है। सच कहूँ तो महाभारत में कोई भी कार्य ऐसा नहीं किया गया जो किया जाना चाहिए और महर्षि वेद व्यास जी ने भी शायद कुरुवंश की गाथा इसी लिए ही लिखी क्यूँकि इस परिवार में हो रही घटनाएँ समाज कि विद्रूपता को दिखाती है और इस ग्रन्थ को पढ़नेवालों के मन को उद्द्वेलित करतीं हैं।
    सुंदर अनमोल समीक्षा को प्रस्तुत करने के लिए हृदय से आभार।
    मेरा अनुरोध है कि कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आएँ , मैं एक कॉलेज छात्र हूँ और हिंदी में कविताएं लिखती हूँ। आपके आशीष व प्रोत्साहन के लिए आभारी के लिए आभारी रहूँगी।
    kavyatarangini.blogspot.com

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