मत देना मुझे
कभी भी
इतनी ऊँचाई
कि गुरुर में गर्दन
अकड़ जाए
और सुरुर में भाल
झुके न कहीं,
नाक उठा दिखाऊँ
हरेक को
उंगली की सीध में
बस अपने ही फलक
हरेक बात के मायने
अपनी ही
डिक्शनरी में तलाशूं,
हरेक का कद
खुद से बौना लगे
हरेक ऊँचाइयों को
खुद से ही मापने लगूँ
दिखे न मुझे कोई बड़ा
अपने सिवा,
सबका खुदा
खुद को ही मान
मैं खुद को ही सजदे
करने लगूँ...
नहीं ! मत देना मुझे
इतनी ऊँचाई
ऊँचे पर्बत से
जहाँ गिरता हो झरना
उसी अतल गहराई में
नदिया के किनारे
बना देना मुझे
बस एक अदने से
पौधे पर अधखिला
इक नन्हा सा जंगली फूल....!!
— उषा किरण 🍁🍃🌷
चित्र; Pinterest से साभार
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंसशक्त और सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंइतनी सुंदर अभिलाषा ... अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद
हटाएंजी...बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अमृता जी 🌺
जवाब देंहटाएं