ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

जेब



दो गज कपड़ा लेकर

सिलवा लेना 

बहुत सी जेबें 

भर लेना उसमें फिर

अपनी पद- प्रतिष्ठा 

मैडल-मालाएं

मेज- कुर्सी 

कोठी-कार

किताबें-फाइलें

बैंक- बैलेंस

नाते- रिश्ते

बोल-बातें

कपड़े- लत्ते

खाने-पीने

गाने-बजाने

जेवर- कपड़े 

चाबी-लॉकर

तेरा- मेरा

गर्व-गुरूर

और.....

अपना  "मैं “भी

तो क्या हुआ

जो आज तक

कोई भी

नहीं ले जा पाया

साथ कफन

शायद 

तुम ले जा सको...!!

                         — उषा किरण 


#सोया_मनवा_जाग_जरा.......

फोटो; Pinterest से साभार

9 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. सोये होने का नाटक करने वालों नहीं जगाया जा सकता..

    सुन्दर रचना
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. शानदार व्यंग्य हैं उस हर प्राणी के लिए जो काल सिराहने खड़ा होने तक भी भौतिक अभौतिक किसी भी वस्तु और भावों की लालसा में घिरा रहता है ‌।
    अप्रतिम रचना‌

    जवाब देंहटाएं

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