ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

सोमवार, 14 मई 2018

एकलव्य

एकलव्‍य 
वे भी थे 
एकलव्‍य ये भी हैं 
फर्क सिर्फ इतना है
वो अंगूठा काट देते थे 
ये अंगूठा
काट लेते हैं।



4 टिप्‍पणियां:

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