ताना बाना
मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले
तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं
और जब शब्दों से भी मन भटका
तो रेखाएं उभरीं और
रेखांकन में ढल गईं...
इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये
ताना- बाना
यहां मैं और मेरा समय
साथ-साथ बहते हैं
सोमवार, 14 मई 2018
एकलव्य
Labels:
कविता
तूलिका और लेखनी के सहारे अहसासों को पिरोती रचनाओं की राह की एक राहगीर.
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जरा सोचिए
अरे यार,मेरी मेड छुट्टी बहुत करती है क्या बताएं , कामचोर है मक्कार है हर समय उधार मांगती रहती है कामवालों के नखरे बहुत हैं पूरी हीरोइन...
फ़र्क़ - कितना गहरा
जवाब देंहटाएंजी...🙏
हटाएंइस फर्क को समझने के लिए नज़र चाहिए । बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ....आपने पढा अच्छा लगा
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