ताना बाना
मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले
तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं
और जब शब्दों से भी मन भटका
तो रेखाएं उभरीं और
रेखांकन में ढल गईं...
इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये
ताना- बाना
यहां मैं और मेरा समय
साथ-साथ बहते हैं
शनिवार, 18 अगस्त 2018
...ढ़लने लगी सॉंझ
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कविता
तूलिका और लेखनी के सहारे अहसासों को पिरोती रचनाओं की राह की एक राहगीर.
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खुशकिस्मत औरतें
ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें जो जन्म देकर पाली गईं अफीम चटा कर या गर्भ में ही मार नहीं दी गईं, ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो पढ़ाई गईं माँ- बाप की मेह...
वाह बहुत खूब कविता और तालमेल बिठाती पेंटिंग ,बधाई की पात्र हैं आप 👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अर्चना जी हौसला बढ़ाने के लिए !
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, परमात्मा को धोखा कैसे दोगे ? - ओशो “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
हटाएंआभार अनुराधा जी
जवाब देंहटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पेंटिंग है। कवि पाते तो खुश हो जाते।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
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