ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

फिल्म समीक्षा लेबल वाली कोई पोस्ट नहीं. सभी पोस्ट दिखाएं
फिल्म समीक्षा लेबल वाली कोई पोस्ट नहीं. सभी पोस्ट दिखाएं

असुर

  बहुत मुश्किल था  एकदम नामुमकिन  वैतरणी को पार करना  पद्म- पुष्पों के चप्पुओं से उन चतुर , घात लगाए, तेजाबी हिंसक जन्तुओं के आघातों से बच प...